सुविचार – ज़िन्दगी 50 की उम्र के बाद – 050

उम्र की दहलीज पर जब सांझ की आहट होती है,,,

तब ख्वाहिशें थम जाती हैं और सुकून की तलाश बढ़ जाती है..!!

आओ किसी का यूँही, इंतजार करते हैं !

चाय बनाकर फिर, कोई बात करते हैं !!

उम्र पचास के पार, हो गई हमारी !

जीवन का, इस्तक़बाल करते हैं !!

कौन आएगा अब, हमको देखने यहां !

एक दूसरे की, देखभाल करते हैं !!

बच्चे हमारी पहुंच से, अब दूर हो गए !

आओ फिर से दोस्तों को, कॉल करते हैं !!

जिंदगी जो बीत गई, सो बीत गई !

बाकी बची में फिर से, प्यार करते हैं !!

ऊपरवाले ने जो भी दिया, लाजवाब दिया !

चलो शुक्रिया उसका, बार बार करते हैं !!

छाती पर पत्थर रखकर जीना सीख लो,

कम बोलो, ज़्यादा सुनो, सामने चल कर किसी को शिछा मत दो,

दिल के ज़ख्म सबको न बताएँ, सबके घर मरहम नहीं होते,

लेकिन नमक सब के घर होता है…

सुकी रोटी भी प्रेम से खाएँ, करोड़ों लोगों को वो भी नसीब नहीं होती,

करकसर से जीओ __ करकसर इंसान को मज़बूत बना देती है..

अकेले जीना सीख लो, अब जोड़ी कभी भी टूट सकती है..

किताबें पढ़ने का शौक रखो, वो अंत तक साथ देंगी…

छाती पर पत्थर रखकर जीना सीख लो,

समय चला, पर कैसे चला…पता ही नहीं चला…

ज़िन्दगी की आपाधापी में, कब निकली उम्र हमारी, यारों

पता ही नहीं चला.

कंधे पर चढ़ने वाले बच्चे, कब कंधे तक आ गए,

पता ही नहीं चला.

किराये के घर से शुरू हुआ था सफर अपना

कब अपने घर तक आ गए,

पता ही नहीं चला.

साइकिल के पैडल मारते हुए, हांफते थे उस वक़्त,

कब से हम, कारों में घूमने लगे हैं,

पता ही नहीं चला.

कभी थे जिम्मेदारी हम माँ बाप की,

कब बच्चों के लिए हुए जिम्मेदार हम,

पता ही नहीं चला.

एक दौर था जब दिन में भी बेखबर सो जाते थे,

कब रातों की उड़ गई नींद,

पता ही नहीं चला.

जिन काले घने बालों पर इतराते थे कभी हम,

कब सफेद होना शुरू कर दिया,

पता ही नहीं चला.

दर दर भटके थे, नौकरी की खातिर,

कब रिटायर होने का समय आ गया,

पता ही नहीं चला.

बच्चों के लिए कमाने, बचाने में

इतने मशगूल हुए हम,

कब बच्चे हमसे हुए दूर,

पता ही नहीं चला.

भरे पूरे परिवार से, सीना चौड़ा रखते थे हम,

अपने भाई बहनों पर गुमान था,

उन सब का साथ छूट गया,

कब परिवार हमीं दो पर सिमट गया,

पता ही नहीं चला.

अब सोच रहे थे, अपने लिए भी कुछ करें,

पर शरीर ने साथ ही देना बंद कर दिया,

पता ही नहीं चला !!!!

समय चला, पर कैसे चला…पता ही नहीं चला…

मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं और हम अकेले हो गए हैं.

बिस्तरों पर अब सलवटें नहीं पड़ती

ना ही इधर उधर छितराए हुए कपड़े हैं

रिमोट के लिए भी अब झगड़ा नहीं होता

ना ही खाने की नई नई फरमाइशें हैं

मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं और हम अकेले हो गए हैं.

सुबह जल्दी उठने के लिए भी नहीं होती मारा मारी

घर बहुत बड़ा और सुंदर दिखता है

पर हर कमरा बेजान सा लगता है

अब तो वक़्त काटे भी नहीं कटता

बचपन की यादें कुछ दिवार पर फ़ोटो में सिमट गयी है

मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं और हम अकेले हो गए हैं.

अब मेरे गले से कोई नहीं लटकता

ना ही घोड़ा बनने की ज़िद होती है

खाना खिलाने को अब चिड़िया नहीं उड़ती

खाना खिलाने के बाद की तसल्ली भी अब नहीं मिलती

ना ही रोज की बहसों और तर्कों का संसार है

ना अब झगड़ों को निपटाने का मजा है

ना ही बात बेबात गालों पर मिलता दुलार

बजट की खींच तान भी अब नहीं है

मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं और हम अकेले हो गए हैं.

पलक झपकते ही जीवन का स्वर्ण काल निकल गया

पता ही नहीं चला

इतना ख़ूबसूरत अहसास कब पिघल गया

तोतली सी आवाज़ में हर पल उत्साह था

पल में हँसना पल में रो देना

बेसाख़्ता गालों पर उमड़ता प्यार था

कंधे पर थपकी और गोद में सो जाना

सीने पर लिटाकर वो लोरी सुनाना

बार बार उठ कर रज़ाई को उढ़ाना

अब तो बिस्तर बहुत बड़ा हो गया है

मेरे बच्चों का प्यारा बचपन कहीं खो गया है

अब कोई जुराबे इधर उधर नहीं फेंकता है..

अब fridge भी घर की तरह खाली रहता है

बाथरूम भी सूखा रहता है

Kitchen हर दम सिमटा रहता है

अब हर घंटी पर लगता है कि शायद कोई surprise है

और बच्चों की कोई नयी फरमाईश है

अब तो रोज मेरी सेहत फोन पर पूछते हैं

मुझे अब आराम की हिदायत देते हैं

पहले हम उनके झगड़े निपटाते थे

आज वे हमें समझाते हैं

लगता है अब शायद हम बच्चे हो गए हैं

मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं और हम अकेले हो गए हैं.

💐समझोता जिदंगी की किताब है 💐

पच्चपन, साठ की उम्र वालो आपको सलाम

सुन लो मेरा ये पैग़ाम ।

बहुत मज़े से कटेगी बाक़ी की ज़िंदगानी,

बहुओं के संग समझौता करना सीख लो।

छोटे – बड़ें सब को मन की करने दो,

मत टोको जो करते है, करने दो।

कम बोलो, ख़ूब सुनो,

कभी सिखाने की कोशिश मत करो,

अपने काम स्वयं करना सीख लो ।

दिल पर पत्थर रखकर, सब नज़ारा देखते रहो ,

मौन रहना सीख लो।

अाप को जानो, आप पहचानो

अपने लिये जीना सीख लो।

नाती पोतो के संग बहुओं के मिज़ाज देखकर प्यार करो,

ज्ञान देने की कोशिश कदापि न करो ।

अपने लिये जीना सीख लो

दिल के ज़ख़्म छुपाकर रखना

कभी बताने की कोशिश मत करना !

मलहम की चाह मे नून छिड़का जायेगा,

पछतावा हो वह काम नही है करना,

रुखी सूखी जो मिल जायें प्रेम से खाकर तृप्त रहो !

बहुतों के नसीब तो घर भी नही,

वृद्धा आश्रम में है रहते, जैसे तैसे समय बीताते,

अपने के संग के लिए हसरतें मन में रख परलोक सिधार जाते,

जो मिला है उस में खुश रहना सीख लो !

अच्छे दोस्तों के साथ समय बिताना सीख लो !

थोड़ा है थोड़े में गुज़ारा करना सीख लो !

अब नही आपके पुराने दिन यह अच्छे से समझ लो !

जीवन साथी आपका है, उसकी क़दर करना सीख लो,

वही अंत तक निभायेगा, प्यार का रिंश्ता सच्चा रिश्ता

बाक़ी रिश्ते मतलब के है यह अच्छे से जान लो !

अपने आप को जानो, अपने को पहचानो, अपने आप मे रहना सींख लो !

कुछ किताबे पढ़ना सीख लो, कुछ लेखन से दिल लगाना सीख लो ।

ख़ाली वक्त के साथी है, ख़ूब प्यार तुम्हें दे जायेंगे,

नया नया ज्ञान भी मिलता रहेगा,

न शिकवा न शिकायत तुम्हें तुम्हारी तरह ही चाहेगी

उनसे दिल लगाना सीख लो।

अंत समय आयेगा कौन किसके पहले जायेगा,

यह बात किसी को नही है पता।

एक दिन अकेले रहने की तैयारी कर लो,

जीवन साथी फुर्र से उड़ जायेगा,

तेरे हाथ कुछ न आयेगा !

जीवन सूना हो जायेगा, कुछ सिमरण रब का कर लो साथ यही जायेगा,

बाक़ी सब मोह माया है, ख़ाली हाथ जाना है ।

पच्चपन, साठ के उम्र वालो अपने लिये जीना सीख लो।

दिल के ज़ख़्मों को, दिल में छिपाना सीख लो,

जिदगीं से समझौता करना सीख लो।

मैं उम्मीद करता हूं कि हम में से बहुत से लोगों की जिंदगी उपरोक्त वर्णन से काफी बेहतर होगी, फिर भी अगर इन बातों को माना जाएगा तो परिणाम अच्छे ही आएंगे.

*पता-ही-नहीं-चला*.

अरे यारों कब 30+, 40+, 50+ के हो गये
*पता ही नहीं चला।*
कैसे कटा 21 से 31,41, 51 तक का सफ़र
*पता ही नहीं चला*
क्या पाया क्या खोया क्यों खोया
*पता ही नहीं चला*
बीता बचपन गई जवानी कब आया बुढ़ापा
*पता ही नहीं चला*
कल बेटे थे आज ससुर हो गये
*पता ही नहीं चला*
कब पापा से नानु बन गये
*पता ही नहीं चला*
कोई कहता सठिया गये कोई कहता छा गये
क्या सच है
*पता ही नहीं चला*
पहले माँ बाप की चली फिर बीवी की चली
अपनी कब चली
*पता ही नहीं चला*
बीवी कहती अब तो समझ जाओ
क्या समझूँ क्या न समझूँ न जाने क्यों
*पता ही नहीं चला*
दिल कहता जवान हूं मैं उम्र कहती नादान हुं मैं
इसी चक्कर में कब घुटनें घिस गये
*पता ही नहीं चला*
झड गये बाल लटक गये गाल लग गया चश्मा
कब बदलीं यह सूरत
*पता ही नहीं चला*
मैं ही बदला या बदले मेरे यार
या समय भी बदला
कितने छूट गये कितने रह गये यार
*पता ही नहीं चला*
कल तक अठखेलियाँ करते थे यारों के साथ
आज सीनियर सिटिज़न हो गये
*पता ही नहीं चला*
अभी तो जीना सीखा है कब समझ आई
*पता ही नहीं चला*
आदर सम्मान प्रेम और प्यार
वाह वाह करती कब आई ज़िन्दगी
*पता ही नहीं चला*
बहु जमाईं नाते पोते ख़ुशियाँ लाये ख़ुशियाँ आई
कब मुस्कुराई उदास ज़िन्दगी
*पता ही नहीं चला*
जी भर के जी ले जी ले भाई , फिर न कहना
*पता ही नहीं चला।*
*अब हम छोटे हो गए*!!

🙏🏻 *अब हम छोटे हो गए !!* *क्योंकि ! हमारे बच्चे बड़े हो गए !*🤗
*ऐसा मत करो, वैसा मत करो*
*ये खाया करो, वो खाया करो*
*दिन भर टीवी मत देखो*
*आखों पर असर पड़ेगा*
*कभी आँगन में ही घूम लिया करो*
*बच्चों से ही सीख लिया करो*
*अब हम बच्चे हो गए !!* *क्योंकि, बच्चे हमारे बड़े हो गए !*
*अब तुम्हारी उम्र बढ़ रही है,*
*बचपना छोड़ो, ज़िंदगी ढल रही है*
*समझदारी की बातें किया करो*
*सबसे ज़्यादा मत बोला करो*
*हम भी हाँ में हाँ मिलाते हैं*
*जैसे सब कुछ सीख जाते हैं*
*अब हम छोटे हो गए !!**क्योंकि, बच्चे हमारे बड़े हो गए !*
*जो काम कर पाओ वही किया करो,*
*नहीं बनता, किसी से कह दिया करो*
*यह सब करने की उम्र नहीं, तुम्हारी*
*कुछ बातें मान लिया करो हमारी*
*कही चोट लग गई तो क्या होगा*
*बिन बात के लफड़ा होगा*
*अब हम छोटे हो गए !! *क्योंकि, बच्चे हमारे बड़े हो गए !*
*खीज जाते हैं कभी – कभी*
*ज़िद में रूठ भी जाते कभी – कभी*
*पर जल्दी ही मान भी जाते है*
*मीठा देख ललचा जाते हैं*
*क्या करें जाएं भी कहाँ*
*अपने तो अपने ही होते है*
*यही सोच फिर जुट जाते है*
*अब हम छोटे हो गये* *क्योंकि! बच्चे हमारे बड़े हो गए !!!!😀*
बढ़ती उम्र में जीवन का आनंद लीजिए, रोज जमा खर्च की चिंता करना छोड़ दीजिए !
*_आप पाँच दशक पूरे कर चुके हैं, आप जान लिजिए…._*

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● *जीवन मर्यादित है और उसका जब अंत होगा, तब इस लोक की कोई भी वस्तु साथ नही जाएगी !*
● *फिर ऐसे में कंजूसी कर, पेट काट कर बचत क्यों कि जाए? आवश्यकतानुसार खर्च क्यों ना करें? जिन बातों में आनंद मिलता है, वे करना ही चाहिए।*
● *हमारे जाने के पश्चात क्या होगा, कौन क्या कहेगा, इसकी चिंता छोड़ दें, क्योंकि देह के पंचतत्व में विलीन होने के बाद कोई तारीफ करें, या टीका टिप्पणी करें, क्या फर्क पड़ता है?*
● *उस समय जीवन का और महत्प्रयासों से कमाए हुए धन का आनंद लेने का वक्त निकल चुका होगा।*
● *अपने बच्चों की जरूरत से अधिक फिक्र ना करें।* *उन्हें अपना मार्ग स्वयं खोजने दें। अपना भविष्य स्वयं बनाने दें। उनकी ईच्छा*
*आकांक्षाओं और सपनों के गुलाम आप ना बनें।*
● *बच्चों पर प्रेम करें, उनकी परवरिश करें, उन्हें भेंट वस्तुएं भी दें, लेकिन कुछ आवश्यक खर्च स्वयं अपनी आकांक्षाओं पर भी करें।*
● *जन्म से लेकर मृत्यु तक सिर्फ कष्ट करते रहना ही जीवन नही है, यह ध्यान रखें।*
● *आप पाँच दशक पूरे कर चुके हैं, अब जीवन और आरोग्य से खिलवाड़ कर के पैसे कमाना अनुचित है, क्योंकि अब इसके बाद पैसे खर्च करके भी आप आरोग्य खरीद नही सकते।*
● *इस आयु में दो प्रश्न महत्वपूर्ण है। पैसा कमाने का कार्य कब बन्द करें और कितने पैसे से अब बचा हुआ जीवन सुरक्षित रूप से कट जाएगा।*
● *आपके पास यदि हजारों एकर उपजाऊ जमीन भी हो, तो भी पेट भरने के लिए कितना अनाज चाहिए? आपके पास अनेक मकान हो, तो भी रात में सोने के लिए एक ही कमरा चाहिए।*
● *एक दिन बिना*
*आनंद के बीते,* *तो आपने जीवन का एक दिन गवाँ दिया और एक दिन आनंद में बीता तो एक दिन आपने कमा लिया है, यह ध्यान में रखें।*
● *एक और बात, यदि आप खिलाड़ी प्रवृत्ति के और खुशमिजाज हैं, तो बीमार होने पर भी बहुत जल्द स्वस्थ होंगे और यदि सदा प्रफुल्लित रहते हैं, तो कभी बीमार ही नही होंगे।*
● *सबसे महत्वपूर्ण यह है कि, अपने आसपास जो भी अच्छाई है, शुभ है, उदात्त है, उसका आनंद लें और उसे संभालकर रखें।*
● *अपने मित्रों को कभी न भूलें। उनसे हमेशा अच्छे संबंध बनाकर रखें। अगर इसमें सफल हुए, तो हमेशा दिल से युवा रहेंगे और सबके चहेते रहेंगे।*
● *मित्र न हो, तो अकेले पड़ जाएंगे और यह अकेलापन बहुत भारी पड़ेगा।*
● *इसलिए रोज व्हाट्सएप के माध्यम से संपर्क में रहें, हँसते हँसाते रहें, एक दूसरे की तारीफ करें। जितनी आयु बची है, उतनी आनंद में व्यतीत करें।*
● *प्रेम मधुर है*, *उसकी*
*लज्जत का आनंद लें।*
● *क्रोध घातक है, उसे हमेशा के लिए जमीन में गाड़ दें।*
● *संकट क्षणिक होते हैं, उनका सामना करें।*
● *पर्वत शिखर के परे जाकर सूर्य वापिस आ जाता है, लेकिन दिल से दूर गए हुए प्रियजन वापिस नही आते।*
● *रिश्तों को संभालकर रखें, सभी में आदर और प्रेम बाँटें। नही तो जीवन क्षणभंगुर है, कब खत्म होगा, समझ में भी नही आएगा। इसलिए आनंद दें, आनंद लें।*
*दोस्ती और दोस्त संभाल कर रखें।*
*जितना हो सके उतना गैट टूगेदर करते रहें!*
🤝🏻🤝🏻🤝🏻🤝🏻🤝🏻🤝🏻🤝🏻🤝🏻
खुद को बढ़ती उम्र के साथ स्वीकारना एक तनावमुक्त जीवन देता है।

हर उम्र एक अलग तरह की खूबसूरती लेकर आती है उसका आनंद लीजिये।
बाल रंगने है तो रंगिये,
वज़न कम रखना है तो रखिये,
मनचाहे कपड़े पहनने है तो पहनिए,
बच्चों की तरह खिलखिलाइये,
अच्छा सोचिये,
अच्छा माहौल रखिये,
शीशे में दिखते हुए अपने अस्तित्व को स्वीकारिये।
कोई भी क्रीम आपको गोरा नही बनाती,
कोई शैम्पू बाल झड़ने नही रोकता,
कोई तेल बाल नही उगाता,
कोई साबुन आपको बच्चों जैसी स्किन नही देता।
चाहे वो कोई भी कंपनी हो …..सब सामान बेचने के लिए झूठ बोलते हैं।
ये सब कुदरती होता है।
उम्र बढ़ने पर त्वचा से लेकर बॉलों तक मे बदलाव आता है।
पुरानी मशीन को maintain करके बढ़िया चला तो सकते हैं, पर उसे नई नही कर सकते।
ना किसी टूथपेस्ट में नमक होता है ना किसी मे नीम।
किसी क्रीम में केसर नही होती, क्योंकि 2 ग्राम केसर भी 500 रुपए से कम की नही होती !
कोई बात नही अगर आपकी नाक मोटी है तो,
कोई बात नही आपकी आंखें छोटी हैं तो,
कोई बात नही अगर आप गोरे नही हैं
या आपके होंठों की shape perfect नही हैं….
फिर भी हम सुंदर हैं,
अपनी सुंदरता को पहचानिए।
दूसरों से कमेंट या वाह वाही लूटने के लिए सुंदर दिखने से ज्यादा ज़रूरी है, अपनी सुंदरता को महसूस करना।
हर बच्चा सुंदर इसलिये दिखता है कि वो छल कपट से परे मासूम होता है और बडे होने पर जब हम छल व कपट से जीवन जीने लगते है तो वो मासूमियत खो देते हैं
…और उस सुंदरता को पैसे खर्च करके खरीदने का प्रयास करते हैं।
मन की खूबसूरती पर ध्यान दो।
आत्मा को जानने का प्रयास करो
पेट निकल गया तो कोई बात नही
उसके लिए शर्माना ज़रूरी नही ।
आपका शरीर आपकी उम्र के साथ बदलता है तो वज़न भी उसी हिसाब से घटता बढ़ता है उसे समझिये।
सारा इंटरनेट और सोशल मीडिया
तरह तरह के उपदेशों से भरा रहता है,
यह खाओ,वो मत खाओ
ठंडा खाओ, गर्म पीओ,
कपाल भाती करो,
सवेरे नीम्बू पीओ ,
रात को दूध पीओ
ज़ोर से सांस लो, लंबी सांस लो
दाहिने से सोइये ,
बाहिने से उठिए,
हरी सब्जी खाओ,
दाल में प्रोटीन है,
दाल से क्रिएटिनिन बढ़ जायेगा।
अगर पूरे एक दिन सारे उपदेशों को
पढ़ने लगें तो पता चलेगा
ये ज़िन्दगी बेकार है
ना कुछ खाने को बचेगा
ना कुछ जीने को !!
आप डिप्रेस्ड हो जायेंगे।
ये सारा ऑर्गेनिक ,एलोवेरा, करेला,
मेथी, में फंसकर
दिमाग का दही हो जाता है।
स्वस्थ होना तो दूर स्ट्रेस हो जाता है।
अरे !
मरने के लिये जन्म लेते हैं,
कभी ना कभी तो मरना है
अभी तक बाज़ार में
अमृत बिकना शुरू नही हुआ।
हर चीज़ सही मात्रा में खाइये,
हर वो चीज़ थोड़ी थोड़ी जो
आपको अच्छी लगती है।
भोजन का संबंध मन से होता है
और मन अच्छे भोजन से ही खुश रहता है।
मन को मारकर खुश नही रहा जा सकता।
थोड़ा बहुत शारीरिक कार्य करते रहिए,
टहलने जाइये, लाइट कसरत करिये
ध्यान करिये, व्यस्त रहिये, खुश रहिये,
शरीर से ज्यादा _ मन को सुंदर रखिये..

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