सुविचार – मृत्यु – मौत – काल – 087

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शुक्र कीजे कि मौत है वरना ज़िन्दगी से हमें बचाता कौन – Shakir Dehlvi
तबियत देने लगी है रोज इशारे, क्यों न सफ़र के लिए सामान समेटा जाए.!!
एक दिन कहानी बन कर रह जाएंगे हम सब, कोशिश करें कि कहानी अच्छी रहे.!!
एक दिन विशिष्ट से तुच्छ हो जाएंगे, मैं, आप, हम सब विलुप्त हो जाएंगे.!!

_ जो लोग चले जाते हैं — वो पलट कर कहाँ आते हैं ?

चाहे जितना उड़ लो.. बस दो दिन की ज़िन्दगी है दो दिन का मेला.!!
अपनी आंखों को आश्चर्य से भर लें, फिर दुनिया देखें,

_ऐसे जिएं जैसे कि “एक दिन, आप इस दुनिया को छोड़ देंगे”;
_ यह किसी भी सपने से ज्यादा शानदार है..!!
हम पैदा होते हैं खाली हाथ और जाते भी वैसे ही हैं,

_ जो इस सत्य को जान लेता है, वह कभी घमंड नहीं करता.!!
हमें लगता है कि आम तौर पर लोग सोचते हैं कि वे मरने से डरते हैं,

_ लेकिन वास्तव में लोग जीने से अधिक डरते हैं.!!

कल की जिसे थी फ़िक्र वो आज चल बसा..!

_ इसलिए आज में जी लो यारों.. कल का किसी को क्या पता..!!

काल के आगे सभी लाचार हैं, ज़िन्दगी का एक कोना दर्द से भरा होता है..

_ फिर भी जीने की जिद में ज़िन्दगी मुस्कुराती ही रहती है.

कई लोग सोचते हैं कि वे आरामदायक जीवन जीने के लिए काम कर रहे हैं,

_ जबकि वास्तविकता में, वे आरामदायक मृत्यु पाने के लिए काम कर रहे हैं !!

कोई इंसान मर जाए तो उसकी कीमत बढ़ जाती है;

_ अगर वह जिंदा रह गया तो दुनिया उसे जिंदा रहने की सजा देती है..!!

अगर आपको पता चल गया ना कि लोग कितनी जल्दी मरने वालों को भूल जाते हैं,

_ तो आप लोगों को प्रभावित करने के लिए जीना बंद कर दोगे..!!

जब हमारा कोई करीबी मरता है तो हमें दुख होता है, लेकिन जब कोई पराया मरता है तो हमें उतना दुख नहीं होता.

_ यानी दर्द की वजह मौत नहीं, बल्कि संबंध होते हैं.!!

जब लोग जीवित रहते हैं लोगों को मुगालता रहता है कि वह सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं.. कि वह नहीं होंगे तो उनका घर, उनका परिवार, उनका कार्य स्थल सब अनाथ हो जाएंगे, बर्बाद हो जाएंगे..!

_ पर कटु सत्य यह है कि कुछ लोगों को छोड़ दें तो आपके होने न होने से कहीं कुछ भी नहीं रुकता, न बर्बाद होता है..
_ जीवन की सबसे अच्छी या सबसे बुरी बात यही है कि यह चलता रहता है, किसी के साथ भी, किसी के बिना भी..!!
उस व्यक्ति के लिए जीवन में कुछ भी भयानक नहीं है जो यह जान लेता है कि मृत्यु में कुछ भी भयानक नहीं है.

There is nothing terrible in life for the man who realizes there is nothing terrible in death.

यदि मरने के बाद मृत्यु आपको कोई पीड़ा नहीं पहुँचाती है, तो अब उसके भय को आपको पीड़ा पहुँचाने की अनुमति देना मूर्खता है.

If death causes you no pain when you’re dead, it is foolish to allow the fear of it to cause you pain now.

अच्छे से जीने की कला और अच्छे से मरने की कला एक ही है.

The art of living well and the art of dying well are one.

मुझे मौत से क्यों डरना चाहिए ?

यदि मैं हूं तो मृत्यु नहीं है.

यदि मृत्यु है, तो मैं नहीं हूँ.

मुझे उस चीज़ से क्यों डरना चाहिए _जिसका अस्तित्व तभी हो सकता है _जब मैं नहीं हूँ ?

मौत के सामने हम लाचार हैं, मजबूर हैं.

_ कोई कितना भी ताकतवर हो, मज़बूत हो वो मौत को नहीं टाल सकता है.
_ बस एक लम्हा आएगा और सब ख़त्म.._ कोई कुछ नहीं कर सकता, कोई किसी को बचा नहीं सकता.
_ये दुनिया फरेब है, ये रिश्ते धोखा हैं._ हकीकत सिर्फ़ ओ सिर्फ़ मौत है, जो सच है.!!
क्षमा करें, लेकिन जब आप मरेंगे तो आपके घर वाले एक ही दोपहर में आपके सारे सामान को कूड़ेदान में फेंक देंगे ;

_वे जल्द से जल्द उस सामान से घर को साफ़ कर देंगे ;
_ वे आपका कबाड़ नहीं चाहते..
—- कुल मिलाकर वे आपका घर और पैसा चाहते हैं ;
_ कड़वी सच्चाई है, लेकिन सच है __ इसलिए _ उनके लिए इसे बचाने का बहाना न बनाएं.
जीवन तो जैसे तैसे सामाजिकता ढ़ोते बीत रहा पर अपनी मृत्यु के लिए मैं बहुत सख़्ती से अपने घरवालों को कहूँगा कि मेरे मरने के बाद शोक संदेश, मृतक भोज और तेरह दिन का टिटिम्मा नहीं करें..

_ मेरी मुक्ति के लिए कोई उपाय करने की ज़रूरत नहीं..
_ क्योंकि जिसपल मेरी मृत्यु होगी मेरी आत्मा उसी पल लोगों से और लोग मुझसे मुक्त हो जाएंगे..
==मैं पलटकर झांकने नहीं आऊंगा,
_क्योंकि मैंने देख लिया है कि परिवार और कुछ नजदीकी लोगों को छोड़कर किसी को भी आपके होने न होने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता..
_हो सकता है कि मेरी बात लोगों को असंवेदनशील लगे पर आजकल शोक को भुनाना ट्रेंड में है..
_अब शोक लोगों को स्तब्ध, अवाक नहीं करता ..बल्कि वह लोगों को न केवल मुखर बना रहा बल्कि नए नए प्रयोग करने को भी उकसा रहा,
तुम्हारे शोकोत्सव से ज़्यादा भव्य मेरा शोकोत्सव है यह चलन में है..
_तेरहवीं में पूरा परिवार एक रंग के कपड़े पहनेगा..दर्ज़नों प्रकार के पकवान बनेंगे..सेल्फ़ी ली जाएगी..मृतक की तस्वीर के इर्द गिर्द की सजावट इतनी भव्य होगी कि जयमाल का स्टेज शरमा जाए..
_स्त्रियाँ पूरे मेकअप में होंगी.. पुरुष उसी तल्लीनता और निश्चिन्तता से राजनीति ,खेल और मौसम पर चर्चा करते हुए ठंडा/गर्म पेय पियेंगे ..जैसे वह ऑफिस,नुक्क्ड़ या किसी अन्य पार्टी में जाने पर करते हैं..
_कुछ लोग वीतरागी की तरह फ़ोन चलाते हुए खाना शुरू होने का इंतज़ार करेंगे..
_बस बच्चे अपने सहज स्वाभाविक रूप में दौड़ते, भागते, खेलते, खाते दिखेंगे..
— यहाँ शोक में गरिमा नहीं होती _ख़ासकर स्त्रियों को देखता हूँ कि ..वह मृतक के घर यह जांचती हैं कि ..कौन कितना चीखकर विलाप किया,
_आप मौन विलाप नहीं कर सकते ..क्योंकि उसमें उन्हें मज़ा नहीं आता..
_ वह आपको रोते चीखते, बेहोश होते देखने को आतुर रहेंगी..
_कई जगह मैंने देखा कि ..मृतक के जीवित रहते उसके नज़दीकी रिश्ते से भले बातचीत तक बन्द रही हो ..पर उसके मरते ही वे बेहोश हो जाते हैं,
_कई तो ऐसे चीखेंगे कि ..आसमान थर्रा उठे और पांच मिनट बाद ही सब ऐसे सामान्य हो जाएंगे ..जैसे कुछ हुआ ही नहीं,
_किन्तु जैसे ही कोई नया रिश्तेदार, नातेदार आया नहीं कि ..फ़िर गगनभेदी चीखें उठने लगेंगी और मृतक के बच्चे कोने में सहमे यह सब तमाशा देखते रहेंगे..
— रिश्तेदार जिस निस्पृह भाव से तिलक बरीक्षा में ऐन मौके पर जीमने पहुंचते हैं, ..उसी तटस्थता से वह तेरहवीं में भी एकदम ठीक समय पर आते हैं,
_रस्मन बातचीत और भोजन के बाद सब निकल लेते हैं..
_पीछे शोक में, थकन में, चिंता में डूबा परिवार अकेला बचता है..
_माँ, बाप, भाई को खोने के समय हमने यह देख लिया कि किसी को हमारी फ़िक्र नहीं थी,
_फ़िक्र थी तो यह कि कब यह संयुक्त परिवार टूटकर बिखरेगा ..क्योंकि परिवार के स्तंभ ढह चुके थे..
— हालांकि लोग मृतक भोज की प्रशंसा यह कहकर कहते हैं कि ..यह व्यवस्था इसलिए बनाई गई ..ताक़ि लोग तेरह दिन इतने व्यस्त रहें कि ..वह अपने दुख को भूले रहें..
_पर अपने माता पिता, पति या पत्नी अथवा बच्चे को खोने के बाद इतनी अधिक सामग्रियों को इकट्ठा करना, इतनी रस्मों को निभाना एक प्रकार की क्रूरता है..
_ दान के राशन, बर्तन, कपड़े, गहने को कहीं नाऊ झगड़ रहा कहीं पंडित..
_कोई न बुलाये जाने पर नाख़ुश है तो कोई परोसा न मिलने पर नाराज़..
_इन सब व्यवहार से वितृष्णा होती है..
_लोग आ रहे, लोग जा रहे तो बस इसलिए कि ..लोकाचार की बही में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवा सकें ..न कि इसलिए कि ..वह आपके दुख से दुखी हैं..
नोट- यह सार्वभौमिक सत्य नहीं है ..बस समाज के बदलते व्यवहार पर एक टिप्पणी मात्र है.
अगर कल आप मर जाते हो तो अंतिम संस्कार में आपके रिश्तेदार चाय पी के चले जाएंगे.

_ एक हफ्ते में ही ऑफिस वाले आपकी पोजीशन के लिए कैंडिडेट ढूंढने लग जाएंगे।
_ दो दिन तक कुछ दोस्तों की इंस्टा स्टोरी में रहोगे.. उसके बाद सबकी अपनी अपनी लाइफ चालू हो जाएगी।.
_ आपका पार्टनर भी आपसे आगे बढ़ जाएगा.
_ आपकी फैमिली भी कुछ टाइम बाद फिर से नॉर्मल हो जाएगी.
_ कुछ पल का मातम फिर हंसते लगेंगे लोग – जीना सीख जाते हैं, किसी के बिना मरते नहीं है हम.
_ आपके म्युचुअल फंड को क्लेम करने नॉमिनीस फॉर्म भरेंगे.
_ डेथ सर्टिफिकेट बनवाने के लिए लाइन में लगेंगे.
_ दुनिया चलती रहेगी..- जैसे चल रही है.
_ धीरे-धीरे आपके परिवार को भी आपकी नामौजूदगी की आदत हो जाएगी.
_ “जो कह रहे थे मर जाएंगे तुम्हारे बिना” देखना उन्हें कितनी जल्दी किसी और से मोहब्बत हो जाएगी.
_ जहां धड़कन रूकी.. वहां आपका नाम भी खत्म.
_ कुछ लोग जिनको आप अजीज समझते हो.. वह आपके अंतिम दिन भी नहीं आएंगे.
_ कुछ लोग तुम्हारी तारीफ के पुल बांध रहे होंगे और कुछ लोग अभी भी आप पर हंस के चले जाएंगे.
_ आप आंगन में पड़े होंगे और बातें पॉलिटिक्स की चल रही होगी,
_ आपको किस डायरेक्शन में लेटाना है.. इस बात पर बहस हो रही होगी.
_ लोग खाना खाकर चले जाएंगे.. किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
_ आप इतने जरूरी नहीं थे.. किसी के लिए.. तब सब पता चलेगा ;
_ इसलिए खुद के लिए जीया करो – किसी और के लिए नहीं.
_ किसी के चले जाने से दुनिया नहीं रुकती..
_ लोग चले जाते हैं.. फिर बस तस्वीर देखकर याद करते हैं लोग – याद में रखना बंद कर देते हैं.
_ तो आज से अपनी खुशी के लिए काम करो.. अपने लिए जियो.
_ खुद को प्रायोरिटी दो.. नहीं तो दूसरों को खुश करते-करते मर जाओगे.!!
अगर हम मृत्यु को ठीक से पहचान लें, तो इस पृथ्वी पर वैर का कारण न रह जाए.
_ जहां से चले जाना है, वहां वैर क्या करना ?
_ जहां से चले जाना है, वहां दो घड़ी का प्रेम ही कर लें.
_ जहां से विदा ही हो जाना है, वहां गीत क्यों न गा लें, गाली क्यों बकें ?
_ जिनसे छूट ही जाना होगा सदा को, उनके और अपने बीच दुर्भाव क्यों पैदा करें ?
_ कांटे क्यों बोए ? थोड़े फूल उगा लें, थोड़ा उत्सव मना लें, थोड़े दीए जला लें !
_ वास्तव में यही सच्चा धर्म है इस पृथ्वी का और उसके मनुष्य का.
_ जिस व्यक्ति के जीवन में यह स्मरण आ जाता है कि मृत्यु सब छीन ही लेगी; यह दो घड़ी का जीवन, इसको उत्सव में क्यों न रूपांतरित करें !
_ इस दो घड़ी के जीवन को प्रार्थना क्यों न बनाएं ! पूजन क्यों न बनाएं !
_ झुक क्यों न जाएं-कृतज्ञता में, धन्यवाद में, आभार में! नाचें क्यों न, एक-दूसरे के गले में बांहें क्यों न डाल लें !
_ मिट्टी मिट्टी में मिल जाएगी.
_ यह जो क्षण-भर मिला है हमें, इस क्षण-भर को हम सुगंधित क्यों न करें !
_ इसको हम धूप के धुएं की भांति क्यों पवित्र न करें, कि यह उठे आकाश की तरफ, ईश्वर की गूंज बने !
– OSHO
जीवन अपने हिसाब से जिएं, यूँ तो जीवन छोटा लगता है, महज साठ – सत्तर बरस की यात्रा – जो सभ्यता के बरक्स बहुत कम कालावधि है, पर जब जीने को हम उतरते है तो एक – एक पल भारी होता है,

_ इसमें हम हर किसी को खुश नहीं रख सकते, हर किसी को नाराज नहीं कर सकते,
_हम हर किसी के हीरो या हीरोइन नहीं बन सकते – ना ही किसी के खलनायक भी
_ एक टेढ़ा – मेढ़ा रास्ता है – धूल, कंकड़, गुबार और अंधड़ से भरा हुआ और बस गुजरना है – अपनी इच्छाओं को पूरा करते हुए या त्याग करते हुए
_ अपने आप से बार बार कहता हूँ कि एक ही जीवन है – बगैर किसी की अपेक्षा पर खरे उतरे या किसी बड़ी महत्वकांक्षा को पूरी करने के ख्वाब को संजोए – बस जी लो, अपने पसंद की कर लो,
_ यदि तुम्हे लगता है कि यह करने से खुशी मिलती है, या संतुष्टि तो कर लो एक बार अपनी वर्जनाएं और डर छोड़कर..
_ मरते समय छाती पर कोई तमगा होगा तो भी धू – धू कर जल जाएगा, बस यह याद रहेगा कि इसने जीवन कैसे जिया, जीवन को कैसे आनंदित भाव से पूर्ण किया – बाकी सब तो माया है,
_ हम जानते ही है, सब छोड़ दो यश, कीर्ति, पताकाएं और वो सब जो जीने से रोकता है.
– Sandip Naik

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