बीते साल की उदासी आज नए साल की सुबह में उतर आई है,
_ मानों वह गुजरना ही नहीं चाह रहा हो.!
_ मन बीते साल की उदासी में खो कर ना जाने कहां भटक जाता है.
_ आज नए साल के आने पर लगता है कि..
_ जिन्दगी ने जो एकमुश्त एक साल दिया था, वह खत्म हो गया है।
_ बाहर कोहरा अपनी बाहें फैलाकर दिन के उजाले को ढ़क लेना चाहता है,
_ बाहर सबकुछ बदल रहा है, हवाएँ सर्द होती जा रही हैं और धूप नर्म..
_ मौसम की सर्द रातें लम्बी हो चली हैं..
_ ये लम्बी राते उस बुढ़ापे की तरह होती हैं, जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेता..
_ दिन जवानी के दिनों की तरह सिमटता जा रहा है..
_ जिन्दगी मे उतार पर तो रिश्ते की गर्माहट भी कमजोर होने लगती है और भावनाएं जम कर ठहर सी जाती हैं.
_ प्रकृति बदल रही है, लेकिन मन ठहरा है.
_ ऐसा लगता है जैसे.. मुझे नया या पुराना जो भी साल हो.. इस से कोई लेना देना नहीं है.
_ जिसने जीवन की नश्वरता को स्वीकार कर लिया हो..
_ बीतता साल प्रतीक है उतरान का, ढ़लान का, अवसान का..
_ जीवन के पड़ाव पर ठहर कर आगे बढ़ने का संकेत है..!!
—- कुछ भी नया नहीं लगता..!!!
_ और ना ही लगता है कि अरे ये क्या हुआ कैसे हुआ,
_ मन पीड़ाओं और तमाम सुखों की अनुभूतियों से ऊपर उठकर उपेक्षा के गर्त में इस कदर डूब चुका होता है कि..
…. ना ही यह चौंकता है ना ही आतंकित और ना ही अचंभित, बस जो भी है अच्छा है.!!