मैं जब सुबह – सुबह नींद से जागता हूँ तो.. जो पहली याद जेहन में उभरती है वो ‘सुबह’ ही होती है.
_ वक्त बदल गया, हालात बदल गए, इंसान बदल गए, पर सुबह अब भी नहीं बदली.
_ ‘सुबह’ अब भी पहले की ही तरह हर सुबह आती है.
_ मैं बालकॉनी के बाहर पेड़- पौधों पर फुदकती -चहचहाती चिड़ियों को निहारता रहता हूँ.. एक ख़ालीपन लिए.!!!
_ ‘सुबह’ मेरे पूरे जेहन में उतरकर खुशियाँ बिखेर देती है और एक मधुर एहसास से भर देती है..
_ ‘सुबह’ एक तुम्हीं तो हो.. जो हर हालात में हर जज्बात में और हर खयालात में साथ बनी रहती हो..!
_ मैं आगे बढ़ता रहा और कितना कुछ जिंदगी से गुजरता चला गया,
_ लेकिन तुम आज भी पूरी शिद्दत से मेरे साथ चल रही हो..
_ सुबह ने मेरी कितनी ही यादों को तह लगाकर मेरे अंदर समेट रखा है..
_ ना जाने कितनी मुलाकातें तुमने मुझमें दर्ज की हैं.
_ कैसे भूल सकता हूँ उन पलों को.. जब अपने एकांत से मैं थक जाता हूँ या परेशान हो जाता हूँ,
_ तब ‘सुबह’ मुस्कुराती हुई आती है और हौले से मेरे कानों में कहती है – पगले, परेशान क्यूँ होते हो ,मैं हूँ ना..!!!
_ “सुबह’ जिंदगी के अनगिनत पलों के ना जाने कितने एहसासों को मैंने तेरे संग जिया है.
_ कहने को तो बहुत कुछ है तुम्हारे बारे में.. लेकिन बस इतना कहूँगा सुःख हो या दुःख तुम हमेशा साथ रहना,
_ चुपके से सच्चे साथी की तरह एहसासों को समेटती रहती हो !!