सुविचार – सुबह की ताकत – 089

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” सुबह की ताकत “

_ दिन की सबसे खूबसूरत शक्ल सुबह होती है. सुबहों का मैं हमेशा से दीदार करता रहा हूँ.
_ अब तक जहां- जहां रहा हूँ, वहां की सुबह बहुत अलग- अलग दर्शन देती रही है.
_कुछ ना कुछ नया हर जगह की सुबह से सीखने को मिलता है.
_हर सुबह को जीवन की नयी शुरुआत मान सकते हैं.
_कल से क्या मतलब. सुबह आपको आज का एहसास कराएगी.
_ अभी आज इसी समय में रहना सुबह होना है.
_ कल के काल में घटी नकारात्मकता से उबारना सुबह होना है.
_हर दिन एक नये जीवन का एहसास करना.
_ जैसे कि जो है वो आज से ही शुरू है, कल चाहे जैसा भी रहा हो, आज अच्छा ही होगा. इसका एहसास सुबह है.
_ऊर्जा का अनंत एकदिशीय प्रवाह जो सिर्फ आपको ताकतवर बनायेगा.
_ आप को कभी कितना भी कमजोर क्यों ना लगे, बस एक बार सुबह में डूब के देखिए
._प्रकृति की तेज बहती हवा में परिश्रम का स्नान सुबह करके देखिये,
_अपने नये होने का एहसास होगा आपको.
मेरी ज़िन्दगी का ..मेरा निजी पसंदीदा हिस्सा इसकी “सुबह” है.

_ “सुबह” के समय भी आपको बहुत सारे लोग दिखेंगे ..लेकिन सुबह के लोगों में एक अनोखी शांति का माहौल होता है.
_ न मोटर का शोर और न तेज़ आवाज़.
– हर ‘सुबह’ प्रकृति के उपहारों की याद दिलाती है, चाहे आप इसे कोई भी नाम दें’
_ हर सुबह यह सोचकर दुख होता है कि ..अगर एक दिन प्रकृति अपने प्राकृतिक तरीकों से काम करना बंद कर दे, ..तो हमारा जीवन कुछ ही क्षणों में लुप्त हो जाएगा.
_सुबह की रोशनी और हवा इतनी जीवंत और जीवन शक्ति से भरी होती है कि यह हजारों शानदार भोजन के बराबर होती है.
[The morning light and air is so alive and full of vitality that it equals the thousand splendid meals.]
_ जब भी आपको शांति की आवश्यकता होगी तो यह आपकी थेरेपी होगी.
[It will be your therapy whenever you need a calm.]
“सुबह और शांति”

___ ‘शांति ऐसी चीज़ है’ जिसे मैं खोना नहीं चाहता,
_ जो शांति मुझे ‘सुबह’ का साथ पाकर मिली..
_ सुबह की रोशनी और हवा जीवंत और जीवन शक्ति से भरपूर होती है.
_ ‘शांति’ जिसे मैं वर्षों से गलत लोगों से दूर रह कर..
_ और सही लोगों का साथ लेकर हासिल कर पाया हूं.
_ मैं अपनी पसंद को खोना नहीं चाहता,
_ मैंने लंबा समय लगा कर इसे हासिल किया है.
_ यही कारण है कि मुझे मेरी पसंद पर.. विश्वास इतना दृढ़ है.
— मैं अब अपनी शांति को खोना नहीं चाहता,
_ क्योंकि इसने मुझे एक उद्देश्य और जिम्मेदारी की भावना के साथ..
_ फिर से जीवन जीने की दिशा दी है.
_ ऐसा नहीं है कि मैं उसके बिना अपना जीवन नहीं जी रहा होता, लेकिन यह दिशाहीन होता,
_ मैं बस उन चीज़ों की तलाश में इधर-उधर भटकता रहता, जो अनावश्यक है.
_ मैं औरों की भांति अपना जीवन खोना नहीं चाहता, जिन्हें सही भी गलत लगता है.!!
– मैं कुछ न कुछ लिखता- पढ़ता रहता हूँ, किसी का ध्यान आकर्षित करने के लिए नहीं..
_ क्योंकि इससे मैं खुश महसूस करता हूँ..
_ बल्कि यह बताने के लिए कि.. मैं वह काम कर रहा हूं,
_ जो किसी ने मेरे लिए नहीं किया.!!
_ मैं अपने लिखने- पढ़ने की भावना को खोना नहीं चाहता;
_ यह एक ऐसी चीज है.. जिस पर मैं हमेशा विश्वास करता हूं..!!
_ शायद इसलिए कि.. मुझे मेरा जीवन इसी में मिलता है.!!
_ मैं अपनी मौलिकता [ originality] के साथ जीना चाहता हूँ..
_ और इसके अलावा, मैं खुद को खोना नहीं चाहता..
_ क्योंकि केवल.. मैं ही खुद को संभाल सकता हूं,
_ और मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहता, कम से कम अब और नहीं..!!
सुबह-सुबह यूँ मन करता कि वक्त यहीं रुक जाए.

_इस सुबह की दोपहर कभी न हो.
_शामें जहां थकान, उलझनों, नींद, ज्यादा खा लेने का सबब है,
_ वहीं सुबहें… ताजगी, उमंग, नए विचार, भूख का प्रतिबिंब है.
_ पसंद है शाम, पर सुबह की चाह हमेशा रही..
_उम्मीद की एक छोटी सी किरण शाम रात के स्याह अंधेरे को छांट देती है.
_ सुबह सकारात्मक है… यह जीवन जीने के लिए बनी है.
सुबह के 6:00 बजे हैं.

_ जो मुझे दिख रहा है, मुझे महसूस हो रहा है, बताऊं..
_ बस लिखूंगा… मुझे खुद नहीं मालूम कि क्यों और क्या लिखूंगा..
_ मौसम में हरा और सलेटी रंग का ..कॉम्बिनेशन..
_ यह जीवन के कई रंगों को जन्म देता है.
_ यह उत्साह को जन्म देता है,
_ यह मन की उमंग को जन्म देता है,
_ यह प्रसन्नता, वैभव, खुशहाली को जन्म देता है.
_ यह सिंबल है आने वाले दिनों की संपन्नता का..!!
_ अभी बालकनी में हूँ, सामने कुछ पछी नजर आ रहे हैं.
_ उछल कर कभी इस डाल पर तो कभी उस डाल पर चले जाते हैं..
_ और ऊपर आकाश में बादल इधर से उधर आ- जा रहे हैं..
– शीतल, मंद हवा चल रही है.. घनघोर घटा छायी है,
_इस छटा का आनंद वही ले सकता है, जो जल्दी उठता हो,
_जिसमें प्रकृति को ग्रहण करने की क्षमता हो.
__ अभी अभी कोई पछी की आवाज आई.
_ कोई बनावटी आवाज सुनाई नहीं दे रही.
_ सिर्फ कुछ पंछियों की आवाज है.
_ किसी ट्रैफिक या रसोई से बर्तन खड़कने की आवाज नहीं.
_ कानों में एक सीटी सी बज रही है, इतनी शांति की आदत नहीं इन कानों को..
_ मै भाग्यशाली हूं ..जो अक्सर ऐसी सुबह ..किसी ऐसी जगह होता हूं..!!
सुबह होने ही वाली है,

_ पेड़ों से चिड़ियों के कलरव की ध्वनि मेरे कानों को गुदगुदा रही है,
_ मेरे चारों और शांति है और मैं अकेला बैठा विचारमग्न हूँ,
_ कभी-कभार अव्यवस्थित मन घबरा उठता है,
_ ऐसे में मेरी डायरी के कोई पन्ने को पढ़ कर मुझे शांति की आश्वस्ति होती है,
_ विचलित मन को आराम सा मिलता है,
_ पढ़ते हुए ऐसा लग रहा है ..
_ जैसे मेरी आवाज़ को सुंदर शब्दों से बुन दिया गया हो..!!
आज सुबह थोड़ी ठंड है, तिसपर आज बारिश भी मेहरबान है ..

_ बालकनी में लगे गमलों में से फूलों कि मिलीजुली गंध मन को मदहोश करने को काफ़ी है,
_ इनके पास जाते ही अतींद्रिय [extrasensory] अनुभव होता है …
_ दवाओं और ध्यान के असर से अब सुख और दुख दोनों में मन थिर रहने लगा है,
_ साथ में अतिव्यस्तता कुछ सोचने का अवसर ही नहीं देती,
_ सुख, दुःख, सदभाव, लाभ, आनंद, उल्लास जैसी अनुभूति होती है.
_ अब न शिकवा, न गिला, न इंतज़ार न उम्मीद ..किसी चीज़ की जरूरत ही नहीं महसूस होती है..
_ अक्टूबर से फरवरी मेरा मौसम होता है,
_ तन के करीब, मन के करीब और जीवन के करीब ..
_ जब मैं अधिक जीवंत और अधिक खुश रहता हूं..
_ हर चीज़ के प्रति कृतज्ञ, हर चीज़ के प्रति प्रेम से भरा..
_ गर्मी मुझे नापसंद, इस मौसम में ..मैं जीवित नहीं रहता हूं, बस जीने का अभिनय करता हूं..
सुबह-सुबह खिले हुए फूल मुझे तेरी याद याद दिलाते हैं..

— सूर्य की चमक की पहली किरण के साथ तुम कितने सुंदर दिखते हो ;
_ मुझे आश्चर्य होता है कि ..मैंने कभी तुम्हारे सुबह के लुक की प्रशंसा कैसे नहीं की,
_ जबकि तुम बिल्कुल स्वाभाविक थे, सुंदर बनने की कोशिश नहीं कर रहे थे..
_ इस अनभिज्ञ दृष्टि ने मुझे झकझोर कर रख दिया कि.. भले ही मुझे पता नहीं हो कि अपना दिन कैसे बिताऊंगा,
_ फिर भी तू मुझे अपने साथ चाहता है.
_ ‘अपने दिन में एकमात्र चीज’ मैं इन पलों को बार-बार जीने में भाग्यशाली महसूस करता हूँ.
_ और मैं उन्हें फिर से जीने के लिए कुछ भी करूंगा, भले ही इसके लिए मुझे ऐसा व्यक्ति बनना पड़े..
_जो दुनिया की पहुंच से बाहर हो ..लेकिन हमेशा तेरे पास हो.
_ क्योंकि मुझे पता है ..तुम चाहोगे कि मैं तुमसे ऊपर रहूँ, जैसा कि तुमने हमेशा किया है.
— इसीलिए फूल मुझे तुम्हारी याद दिलाता है;
_ उन्हें कभी इसकी परवाह नहीं होती कि.. उनकी पत्तियाँ उनके ऊपर हैं,
_ क्योंकि अंदर से वे नहीं जानते थे कि.. यह उनके अपने भले के लिए है.
_ यह उन्हें सूरज की तेज़ किरणों से बचाने के लिए है;
यह सब उनके लिए ढाल बनने के बारे में है.
_ ठीक वैसे ही जैसे मैं तुम्हारे लिए था !!
आज सुबह 5:30 बजे पछियों की आवाज से मेरी आंख खुली..

_ मुझे लगा की ये मुझे बुला रहे हैं, बुला क्या चिढ़ा रहे हैं.
_ और उठकर देखा तो वे इस डाल से उस डाल डोल रहे थे,
_ यूँ लगा जैसे मुझसे कह रहे हों.. ठंड लग रही है क्या ? चाय बनवाऊं.? साथ में बिस्किट भी खा लेना..
_ यही तो है आप इंसानों का…
_ हमे देखो, न कफ़ न बलगम, न जोड़ों का दर्द न सांस फूलने की बीमारी, न पकाने का झमेला न स्वाद की चाहत…
— जाओ.. दिवाली आने वाली है,
_ फिर दिखावे करना..
_ हमारी न ईद न दिवाली… हमारे सिर्फ मौसम त्यौहार हैं,
_ जो असल में ईश्वर ने बनाए हैं.
_ जीवन आपसे कम है पर सुकून है.
_ हमने न सड़क बनाई न मशीनें, न जहाज.
_ शायद हमें जरूरत ही नहीं.
_ हमारे पास पासपोर्ट भी नहीं.
_ हमे किसी की इजाजत भी नहीं चाहिए.
—- वास्तव में उनकी की बातों में सच्चाई है.
_ इंसान ने विकास कर सब बर्बाद कर दिया.
_ परिंदों को न गठिया है न इन्हें स्ट्रोक आता है, और आता भी होगा तो इल्म नहीं.
_ हमने जान कर क्या उखाड़ लिया.
_ लालच बढ़ा, बीमारी बड़ी, समस्या बढ़ी, ईगो बढ़ी, प्रभुत्व बढ़ा… पर हमने अपनी स्वच्छंदता खो दी.
_ हमने अपना मूल खो दिया.
_ अब हम केवल जो सामान बनाया था, उसी को निभा रहे हैं.
_ पहले बीमारी बनाई, फिर उसका इलाज बनाया.
_ अब उस इलाज को अपना विकास बता रहे हैं..!!
आज सुबह उठा तो बाहर अँधेरा है ..पर बिल्कुल अंधेरा भी नहीं है.

_ लग रहा था हवा शीत और पारदर्शी है ..एकदम हल्की फूल जैसी..
_ बॉलकनी में खड़ा हूँ तो ठंडी हवा देह को छूती है और ऐसी मीठी सी सिहरन होती है..
_ जिसे कोई नाम नहीं दिया जा सकता..
_ बिना चिंता, बिना किसी तनाव के बॉलकनी से ठंड को महसूस करते हुए आसमान में धुंधले से दिखते तारों को देखते हुए सोचता हूं कि ..आख़िर सुख क्या है !!
_ इस मीठी, शीतल, निर्भार हवा में चुपचाप आकाश ताकना …क्या सुख नहीं है !
_ ..याकि अलग अलग फूलों की गंध को पहचानने की कोशिश करना सुख नहीं है !!
_ गंध की लिपि को आँखें बंद करके ही पढ़ा जा सकता है,
_ क्योंकि खुली आँखें तो रंग की लिपि में उलझ जाती हैं..
_ आस-पास लगे हजारों पेड़ों की गंध, उसके फूल पत्तों की गंध..
_ सारी गंध एकसाथ गड्ड मड़्ड होकर ..मन को सुख में डुबा देती हैं…,
— मन खुश है, संतुष्ट है, निहाल है,,,
_ क्योंकि यह उसके मन को भाने वाला मौसम है..
_ यह सर्दी का मौसम है…
ये सुबह होते ही नींद का खुल जाना,

_ कई ख्याल मंडराने लगे हैं दिल में,
_ वो ख्याल जो मुझे हर रात सपनों में जगाते रहते हैं…
_ ये घड़ी की टिक-टिक…जो सिर्फ रात को ही सुनाई देती है..
_ ये अँधेरा मुझे वक़्त का एहसास कराता है,
_ और मेरे और आपके बीच की दूरियां..
_ जहाँ मुझे सब कुछ सामान्य दिखता है,
_ जैसे सब आसपास ही घटित हो रहा है,
_ और वो बाहर खिड़की, जहां मेरी नजर अभी अभी गई है,
_ वहां से बहती हुई हवा ..कुछ समझा रही है मुझे..
_ कि किसी को जीवित रखना ..सिर्फ मेरा काम नहीं…
_ तुम्हारा भी योगदान होना चाहिए…
सुबह का जादू हकीक़त है, छलावा नहीं है..

_ ये खूबसूरत और मनमोहक है..
_ मैंने देखा है और महसूस किया है..
_ कि वाक़ई सुबह बेहद हसीन होती है,
_ मैंने महसूस किया है सुबह का स्वाद..
_ सब से आला और निराला होता है,
_ सुबह की हलचल एक अलग दुनियां का एहसास कराता है,
_ मैंने देखा है कि सुबह अपनी जेब में ज्यादा ही ताज़गी रखता है..
_ ये जो प्रकृति है ..ये हर पल जादू कर रही है,
_ ये हर पल अपनी खूबसूरती को और निखार रही है,
_ आपको हर पल बदलते हुए नजारे मिलते हैं,
_ हर जगह अपने आप में खूबसूरत है.. ये जादू है,
_ मैं हर वक्त इस जादुई दुनियां से घिरा रहना चाहता हूं,
_ इसमें जीना चाहता हूं.!!
आज फिर सुबह हो गई..

_ हर रात यही सोचते बीत जाती है कि आखिर ‘मैं यहां क्यों हूं’
_ ज़िंदगी जैसे एक पुरानी, घिसी हुई फिल्म बन गई है,
_ जिसे देखने का मन नहीं करता, लेकिन रुक भी नहीं सकता !!
_ सुबह हो चुकी है..
_ बाहर लोग अपने-अपने काम में लग गए हैं,
_ लेकिन मैं अंदर ही अंदर कहीं अटका हुआ हूँ.
_ शायद खुद से, या शायद उस सवाल से जो हर सुबह मुझे घूरता है..
_ “आगे क्या ?”
सुबह हो गई है,

_ मैं एकांत में शांत बैठा हूँ और हर तरफ बस सन्नाटा है,
_ तभी दिमाग में कोई अनचाहा विचार आ गया, मैंने उसे पूरी शक्ति से भगाना चाहा और वो दोगुनी ताकत से मुझ पर हावी होता है,
_ मैं जब ऐसी बुरी स्मृति को भुलाना चाहता हूँ, और वो सब सामने ऐसे नाचता है..
_ जैसे आज की ही बात हो..
_ अंदर भावनाओं का भूचाल आ जाता है.. हृदय कचोटने लगता है..
_ उस बुरी स्मृति से निकलने की कई सालो की कोशिश क्षण भर में व्यर्थ हो जाती है, खैर !!
मैंने आज सुबह को महसूस किया, आरामदायक लेकिन ठंडा..!!

_ मैं कामना करता हूं कि यह हमेशा ऐसा ही बना रहे, क्योंकि मुझे इसी की जरूरत है.
_ मुझे एक शांतिपूर्ण जगह की जरूरत है,
_ जहां मैं अपना दिमाग बंद कर सकूं और जब चाहूं सो सकूं..
_ मैं जागकर.. लोगों में शांति की तलाश नहीं करना चाहता.
_ बहुत हो गया; मैंने यह किया है; यह मेरे लिए अच्छा नहीं है.
_ तो चलिए.. बस मैं तुम्हारी इतनी प्रशंसा करूंगा, जितनी पहले कभी किसी ने नहीं की.
_ लोग कहेंगे या तो मैं पागल हूँ या सुबह से प्यार करता है.
_ कोई भी सच हो सकता है.
_ आइए एक-दूसरे का ख्याल रखने और एक-दूसरे की शांति बनने के बारे में एक समझौता करें..!!
“सुबह खूबसूरत है”

_ आसमान से खुशनुमा हवा आ रही है और इसे महसूस करते हुए..
_ मुझे फिर से बचकाना होने की याद आती है.
_ जब तुम नहीं होते तो.. मैं नहीं हंसता.
_ ऐसा नहीं है कि मेरे आसपास लोग नहीं हैं; वे हैं.
_ लेकिन मुझे उनके साथ अच्छा नहीं लगता;
_ शायद मैं उनके साथ जीवित महसूस नहीं करता.
_ मुझे तुम्हारे आसपास रहने की याद आती है,
_ जहां हम बिना घड़ी या विषय पर ध्यान दिए.. घंटों तक लगातार बात करते हैं.
_ हमारी बातें अनावश्यक हैं, लेकिन वे जीवन से भरपूर हैं.
_ तुम्हारी मौजूदगी में “मैं अकेले अपने साथ का आनंद भी उठाता हूँ,”
_ इस एहसास के साथ कि तुम यहां हो.!!
_ अब, मैं सब कुछ सिर्फ इसलिए करता हूं.. क्योंकि यह आवश्यक है;
_ कुछ भी करने में कोई मज़ा नहीं है. हर चीज़ समय की बर्बादी लगती है.
“मुझे नहीं पता कि यह कैसे काम करता है,
_ लेकिन मुझे लगता है कि मैं खुद से ज्यादा ‘सुबह’ और ‘आकाश’ से जुड़ा हुआ हूं.”
मैं आज सुबह ऐसी जगह बैठा हूं:

_ जो हर सुबह और शाम पक्षियों के गायन को सुनने के लिए बहुत शांत है.
_ एक ऐसी जगह जो मौसमों से भरी है, और मैं उनमें से हर एक के साथ खुद रह सकता हूं.
_ मैं बहुत ठंडी हवा के साथ अपनी सर्दियों का आनंद ले सकता हूं और फिर भी हर दोपहर सूरज देख सकता हूं.
_ एक ऐसी जगह.. जहां मैं कभी भी, हर समय आकाश देख सकता हूं, और यह हमेशा की तरह सुंदर है.
_ एक ऐसी जगह.. जहां मुझे रोजाना चंद्रमा देखने को मिलता है,
_ यह एक ऐसी जगह है, जहां मुझे ख़ुशी ढूंढने के लिए भागना नहीं पड़ता;
_ वरना हर जगह हर कोई आता है और पूछता है कि.. मैं जीवन में क्या कर रहा हूं.
_ एक ऐसी जगह.. जहां मैं अपनी सुबह का उतना ही आनंद ले सकता हूं,
_ जितना मैं अपने दिन या रात का आनंद ले सकता हूं.
_ एक ऐसी जगह.. जहां मुझे हर शाम खूबसूरत सूर्यास्त देखने को मिलता है.
_ एक ऐसी जगह.. जहां मुझे भागदौड़ या कुछ न कुछ करना नहीं पड़ता.
_ बस बैठ सकता हूं, कुछ नहीं कर सकता और जीना चुन सकता हूं.
_ एक ऐसी जगह.. जो मेरे द्वारा देखी गई दुनिया से भी अधिक जीवंत है.!!
अभी सुबह होने वाली है, हुई नहीं है..!!

_ बालकनी के बाहर बल्ब की रोशनी में आस-पास का धुंधला दिख रहा है..
_ लेकिन मन में उजाला है.!
_ इस समय घरों में सब गहरी नींद सो रहे हैं, रब उनकी सुबह सुंदर करे.
_ अभी थोड़ी देर बाद सूरज दिखेगा.. और आंखें चमक जाएंगी,
_ अभी मन शांत है, बालकनी से आने वाली रोशनी और अंधेरे का खेल देख रहा हूँ.
_ पीठ हजार करवट सोते जागते थक चुकी है..
_ अब आँखों को ठंडक चाहिए.!!
_ आसमान से ओस झर रही है, हवा में ठंडक है..
_ आस-पास के दीखते पेड़ आश्वस्त कर रहे हैं.
_ अब मैं हूँ जमीन पर और मन आसमान पर..!!
सुबह-सुबह धरती पर सूर्य की किरणें बिखर रही हैं,

_ प्यासे पेड़-पौधों पर ओस की बूंदें टपक रही हैं,
_ पत्तियों पर ओस थिरक रही है..
_ चहुं ओर हरियाली महक रही है..
_ बहती हवा में रुनझुन सुनाई दे रही है..
_ डगमगाते मन में उम्मीद भर रही है..
_ याद दिला रही है ‘जीओ मस्ताना जीवन’
_ जी लो अपने आज को, अपने हासिल को..
_ अपना जीवन समझ, जी भरकर जी लो..
_ क्योंकि यह पल, हर पल न रहेगा..!!
“सुबह के गतिशील रंगों का संयोजन”

[“Combination of dynamic colors of the morning”]
… मानो रब आसमान के कैनवास पर हर रोज़ नया चित्र बनाता है.. हमको विस्मित करने के लिए !;
_ आसपास का सन्नाटा ऐसा लगता.. मानो सब कुछ थम गया हो और सिर्फ फुसफुसाहट सुनाई दे रही है..
_ मैं इतना हल्का महसूस कर रहा हूँ कि.. फुसफुसाहट धीमे स्वर में सुनाई दे रही है.. और बहती हवा में जैसे एक मिठास हो..!
_ ऐसा लगता है.. जैसे धरती और आकाश ने दूरियां मिटाकर एक-दूसरे को समेट लिया हो..
_ जब हम अच्छा महसूस करते हैं, तो शब्द कम पड़ जाते हैं ; आंखें भाषा बन जाती हैं.!!
मैं जब सुबह – सुबह नींद से जागता हूँ तो.. जो पहली याद जेहन में उभरती है वो ‘सुबह’ ही होती है.

_ वक्त बदल गया, हालात बदल गए, इंसान बदल गए, पर सुबह अब भी नहीं बदली.
_ ‘सुबह’ अब भी पहले की ही तरह हर सुबह आती है.
_ मैं बालकॉनी के बाहर पेड़- पौधों पर फुदकती -चहचहाती चिड़ियों को निहारता रहता हूँ.. एक ख़ालीपन लिए.!!!
_ ‘सुबह’ मेरे पूरे जेहन में उतरकर खुशियाँ बिखेर देती है और एक मधुर एहसास से भर देती है..
_ ‘सुबह’ एक तुम्हीं तो हो.. जो हर हालात में हर जज्बात में और हर खयालात में साथ बनी रहती हो..!
_ मैं आगे बढ़ता रहा और कितना कुछ जिंदगी से गुजरता चला गया,
_ लेकिन तुम आज भी पूरी शिद्दत से मेरे साथ चल रही हो..
_ सुबह ने मेरी कितनी ही यादों को तह लगाकर मेरे अंदर समेट रखा है..
_ ना जाने कितनी मुलाकातें तुमने मुझमें दर्ज की हैं.
_ कैसे भूल सकता हूँ उन पलों को.. जब अपने एकांत से मैं थक जाता हूँ या परेशान हो जाता हूँ,
_ तब ‘सुबह’ मुस्कुराती हुई आती है और हौले से मेरे कानों में कहती है – पगले, परेशान क्यूँ होते हो ,मैं हूँ ना..!!!
_ “सुबह’ जिंदगी के अनगिनत पलों के ना जाने कितने एहसासों को मैंने तेरे संग जिया है.
_ कहने को तो बहुत कुछ है तुम्हारे बारे में.. लेकिन बस इतना कहूँगा सुःख हो या दुःख तुम हमेशा साथ रहना,
_ चुपके से सच्चे साथी की तरह एहसासों को समेटती रहती हो !!
देर से उठकर सुबह को छोटा मत करो, या उसे अयोग्य कामों या बातों में बर्बाद मत करो; _ इसे जीवन की सर्वोत्कृष्टता के रूप में, कुछ हद तक पवित्र के रूप में देखें.

_शाम बुढ़ापे की तरह है: हम सुस्त, बातूनी, मूर्ख हैं. _ हर दिन एक छोटा सा जीवन है: हर जागता और उठता हुआ एक छोटा सा जन्म, हर ताज़ा सुबह एक छोटी सी जवानी, हर आराम और नींद के लिए जाता हुआ एक छोटी सी मौत.- Arthur Schopenhauer

Do not shorten the morning by getting up late, or waste it in unworthy occupations or in talk; look upon it as the quintessence of life, as to a certain extent sacred. Evening is like old age: we are languid, talkative, silly. Each day is a little life: every waking and rising a little birth, every fresh morning a little youth, every going to rest and sleep a little death. – Arthur Schopenhauer

पक्षियों की चहचहाहट और हवा की फुसफुसाहट के साथ जागना हमेशा सुखदायक होता है, जब आप जागते हैं तो आप कैसे जागते हैं ? क्या आप मौन में जागते हैं, या क्या आप प्रश्नों और करने वाली चीजों की एक सूची के साथ जागते हैं ?

जागने के बारे में मुझे जो सबसे खूबसूरत चीज पसंद है, वह है इससे निकलने वाली खामोशी ; सुबह में, मेरे पास कोई प्रश्न या कोई खोज नहीं है; इसलिए, मैं हमेशा इस क्षण में हूं.

सुबह हमेशा इस बात की याद दिलाती है कि मैं अपनी प्राकृतिक अवस्था में कैसा हूं ; _ अक्सर जब मुझे नहीं पता कि क्या करना है, तो मैं सुबह के क्षण में खुद के बारे में सोचता हूं, और उस शांति की स्थिति से, मुझे हमेशा एक प्रतिक्रिया मिलती है जो सांस लेने या हवा के रूप में स्वाभाविक होती है ;

सुबह हमेशा एक गहरी, अधिक वास्तविक स्वयं की भावना में प्रवेश करने का अवसर बनाती है ;  _ तो, इस तरह सुबह की शुरुआत हुई..

जिनको गहरी नींद नहीं आती वो समझ पाते हैं कि दुनिया में सुबह से अच्छा कुछ होता ही नहीं..
आप जिस तरह से अपने दिन की शुरुआत करते हैं, उससे आपके बाकी दिन पर बहुत फर्क पड़ता है.

_सुबह जल्दी उठने और सुबह अच्छा मूड रखने से आप पूरे दिन खुश महसूस करेंगे ; _ भोर की शांति आपके दृष्टिकोण में अद्भुत आकर्षण का भाव ला सकती है.

भोर दिन का सबसे सुंदर और शांत समय होता है ; _जैसे ही सुबह की हवा आपके चेहरे पर आती है, पक्षियों की गुनगुनाहट सुनने की शांति और दुनिया को रोशनी से भरते देखना आत्मा में एक अकथनीय आशा और शांति लाता है.

“सुबह की रोशनी दिन भर के काम के लिए आपकी भावना और उत्साह को नवीनीकृत कर देती है.”

“भोर एक नए और आशापूर्ण दिन को जन्म देते हुए चमकती है.”

“भोर सभी के लिए एक ताजगी लेकर आती है.” 

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