_उसे जो मिला है_वो उसकी उम्मीद और योग्यता से ज्यादा है.
_ और लापरवाही करने वाले दुःखद स्थितियों को आमंत्रित करते हैं.
_ दूसरे उसी बात के लिए अपनी संकीर्ण बुद्धि से अच्छे संबंध खो देते हैं.!!
_ क्योंकि कई रिश्ते केवल बुलावे के इंतजार मे ही बिखर जाते हैं.!!
_ जिसकी नींव सच्चाई पर ना टिकी हो या जो सच्चाई को बर्दाश्त न कर सके.!
_और इसके बजाय किसी और की जरूरतों को पूरा करने के लिए रिश्तों का उपयोग करना शुरू कर देते हैं,
_ तो हमारे रिश्ते अधिक मजबूत और अधिक संतुष्टिदायक हो जाते हैं.”
_ख़ून के रिश्तों से प्यार के रिश्ते अधिक ज़िंदादिल होते हैं.
_ होता यह है कि ब्लड रिलेशन [ Blood Relation ], अपेक्षाओं [ expectations ] के चरम को छूकर जजमेंटल होने लगते हैं.
_ ब्लड रिलेशन तो हमें मिलते हैं ..लेकिन उनके बीच कभी स्वार्थ और कटुता भी आ जाती है..
_ इसके विपरीत किसी से भी मिले स्नेह संबंध [ Affection Relation ] गहरी आपसी समझ से महककर खिलते हैं..
..कमाये हुए रिश्ते कभी खत्म नहीं होते, उन्हें प्यार से सींचते रहिए बंस..!!
..मेरा दिल तो यही कहता है..!!
हमारे जीवन मे रिश्तों की जो कीमत है वह साधारणतया हम लोग नहीं समझ पाते,
परंतु वास्तव में आपके रिश्ते भी आपकी ताकत होते हैं !
अपने रिश्तों को मजबूती प्रदान कीजिये !
रिश्तों की नींव प्रेम और त्याग पर ही टिकती है !
जितना sacrifice हम दूसरों के लिए करेंगे उतना ही प्रेम प्यार बढ़ता है !
प्रेम के धागे में ही रिश्ते पिरोए जाते हैं और त्याग से उनमें प्रगाढ़ता दी जाती है !
_ ताल्लुक टूटते ही लोग चीख चीख कर कमियां बताने लगते हैं…!!
_ लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम कितनी अच्छी तरह गलतफहमी से बचते हैं.
_इसलिए कुछ कमियों को नजर अंदाज करके रिश्ते बनाएं रखिए ..
_ हमें कुछ गलतियों को अनदेखा करना पड़ता है.. ताकि रिश्ता बना रहे.!!
_ वो न जाने कितनों के आगे नतमस्तक हो रहा है…!!
और निभाना उतना ही कठिन जितना पानी पर पानी से पानी लिखना ॥
इसलिए रिश्ता वही बनाओ जिसे निभा सको.
तो फिर आप सब बताइये, जो रिश्ता एक गलतफहमी से टूट जाये, वो रिश्ता अच्छा कहां से हुआ.
इसका मतलब वो रिश्ता मौका ढूँढ रहा था, सिर्फ एक गलती का.
रिश्ता सच्चा और अच्छा तो वो होता है, जो हजार गलतियों के बाद भी टीका रहे बना रहे..
जबकि सही बुद्धिमत्ता तो इसमें है कि धन के साथ-साथ लोग भी हमसे दिल से जुड़े रहें.
_ चौथाई समझते हैं, शून्य सोचते हैं और दोहरी प्रतिक्रिया करते हैं.
इसलिए सभी को सहेज कर रखिये.
क्योंकि वो इतनी जल्दी बातें नहीं मानते, जितना जल्दी बुरा मान जाते हैं.
_ जिन्हें निभाना पड़े, वो केवल दुनियादारी है !
A relationship is meaningful only if it teaches one to be independent.
_ उतने ही लम्बे समय तक रिश्ता टिका रहेगा !!
_ खो जाने के बाद सिर्फ यादें ही रह जाती हैं.!!
तो समझ लीजिए कि वक्त ने आपसे बड़ी शिदत से रिश्तेदारी निभाई है.
ठीक उस तरह शब्दों का मीठापन मनुष्य के रिश्तों को पकड़ कर रखता है.
उन्होंने मुझे सिखाया कि कोई रिश्ता हमेशा के लिए नहीं होता…
रिश्तों में हमने दिल साफ क्या रखा, उतना ही लोग हमें बेवकूफ समझते गए..
क्योंकि वो किसी के साथ रिश्ता निभा नहीं सकता.
अपना दिल दुखाना पड़ता है दूसरों की ख़ुशी के लिए.
जो खून के रिश्तों को भी काटकर रख देती है..
आपने तो हमें गिरा हुआ समझ लिया.
_ वरना यहां कोई किसी का अपना कब है ..!!
_ ये कैसा रिश्ता है, जिसमे कोई रिश्ता ही नहीं..!!
उम्मीद जितनी ज्यादा, उतनी गहरी चोट..
फिर भी रिश्ता साफ होने की बजाय और मैला हो जाता है.
_ मतलबी लोग किसी के रिश्तेदार नहीं होते..!!
जबरदस्ती किसी से रिश्ता निभवाने की ज़िद मत करना…
_ जब सामने वाले का इरादा ही निभाने का ना हो ..
_ लेकिन हमारे बिना किसी की ज़िंदगी ठहर जायेगी, यह सोचना हमारा वहम है.
रेत सूखी हो हाथों से फिसल ही जाती है.
जिन्होंने तुम्हारे गिरते कदम को संभालने में सहारा दिया है.
ये रिश्ते हैं जनाब, बाजारों में कहाँ मिलते हैं.
रिश्तों की रफ्तार धीमी पड़ जाती है.
_ ज़िंदगी का यही है … पूरा सच !!
_ मगर अपेक्षा के लिए रिश्ते रखना, स्वार्थ है ..
ज्यादा नजदीकियां अक्सर दर्द दे जाती हैं..
दूर तक आती थी जिनकी महक, वो मुरझा गए.!!
क्योंकि हमारी इन्द्रियों का स्वभाव है यदि कोई चीज हमारे लिए हर समय के लिए उपलब्ध हो तो मन उस से ऊब जाता है _
_ रिश्तों के टूटने का एक कारण ये भी बनता है..
_ वही जिंदगी का तमाशा करते है.!!
_ टूटना तकलीफ कम देता है, टूट कर जुड़े रहना ज्यादा तकलीफ देता है..!!
_ उसके बाद वो ना तो रिश्तों को जरूरी समझता है और ना ही अपनों को..!!
_ लेकिन उसी रिश्ते में ख़ुद हर दिन टूटते रहना असहनीय होता है.!!
_ इसलिए रिश्तों पर ध्यान दें.!!
जो रिश्ता हमको रोते हुए छोड़ दे, उससे कमजोर कोई और रिश्ता नहीं.
जिनमें जिंदगी तो होती है मगर उम्र नहीं होती.
_ मगर अपनों के साथ वो सिर्फ़ दूरी बढ़ाती है.!!
रिश्ता सबसे है, मगर वास्ता किसी से नहीं…
और सारी उम्र बीत जाती है एक रिश्ते को बनाने में !
_ रिश्ते झूठ बोलने से संभले रहते हैं और सच बोलने से टूटते हैं.!!
फिर लोग प्रैक्टिकल हुए… भावना का कोई स्थान नहीं था … रिश्तों से फायदा उठाते थे…
अब लोग प्रोफेशनल हो गए हैं, जिनसे फायदा उठाया जा सके सिर्फ वहीं रिश्ते बनाते हैं…..
इमारत को मत तोड़िए, उसकी मरम्मत कीजिए.
क्योंकि, मैंने उन रिश्तों से धोखा खाया है, जिन पर मुझे नाज़ था…
यकीन मानो आप ज्यादा खुश रहोगे,,,
_ गलत रिश्ते की पहचान है कि वो सबसे पहले आपकी मानसिक शान्ति को भंग करेगा !!
_ वह कभी भी आपके जीवन को बेहतर नहीं बना सकता.!!
बस मेरे कुछ अपनों ने मुझे ये प्यारा सा तरीका सिखाया..!!
दूर नहीं होते किसी भी मजबूरी से.
ईमानदारी, भरोसा और अपनापन..
जो आपस में लड़ने के थोड़ी देर बाद फिर दोस्त बन जाते हैं.
लाजवाब मोती कभी किनारों पे नहीं मिलते.
उस रिश्ते में किसी और को मध्यस्थ न बनाएँ.
_थोड़ा अहसास तो सामने वाले को भी होना चाहिए !!
जीवन में आपको वचन, कसम, नियम और शर्तों की कभी जरुरत नहीं पड़ेगी.
इसलिए अगर रिश्ते में दरार आ जाए तो दरार को मिटाइए न कि रिश्ते को.
_सच बोलना चाहिए चाहे रिश्ता रहे या ना रहे कोई फर्क नहीं पड़ता.
_ उन्हें मेरे बारे में कोई खबर नहीं है, मैं भी उनके बारे में कुछ नहीं जानता !!
प्रेम से खाली रिश्ते खाली डिब्बों की तरह केवल बजते रहते हैं.
_ क्योंकि उनके खुद के रिश्तों में खालीपन ज़्यादा होता है.!!
किन्तु इतना भी दूर मत होना कि वो आपके बिना जीना ही सीख ले.
उसे समझने की समझ रखो, रिश्ते कभी नहीं टूटेंगे..
जरुरत पड़े तो भूल का एक पेज फाड़ देना, लेकिन एक छोटे- से पेज के लिए पूरी किताब नहीं.
अपने पास ऐसा जरूर कुछ बचा कर रखिए कि लोग उसे पाने के लिए आपसे जुड़े रहें,
खुद को खाली मत होने देना, क्योंकि लोग खाली चीजों को कचरे के डिब्बे में डाल देते हैं.
क्योंकि जब रिश्तों की मर्यादा टूट जाती है, तो बहुत कुछ खत्म हो जाता है.
अगर अहसास हो तो, अजनबी भी अपने होते हैं.
और अगर अहसास नहीं तो, अपने भी अजनबी होते हैं.
और गलती से जो सुना दो उलझ जाते हैं..!!
अपनों की खुशियों को ताक पर रख देते हैं…
और कहीं पर सिर्फ नाम के ही रिश्ते होते हैं.
अच्छे दिल से कई रिश्ते बनेंगे और अच्छे स्वभाव से वो जीवन भर टिकेंगे.
रिश्ते एक बार बनते हैं, फिर जिंदगी रिश्तों के साथ साथ चलती है.
और बिना धोखे के ख़तम नहीं होते…
किन रिश्तों के सामने कब और कहाँ हारना है,
यह जानने वाला भी विजेता होता है…
किन्तु रिश्तो मे राजनीति नही होनी चाहिए.
अपनों का प्यार और रिश्ते इस पैसे से कहीं अनमोल है.
और कुछ लोग आग बन कर उन्हें जलाते ही जाते हैं.
एक साँस भी तब आती है, जब एक साँस छोड़ी जाती है….!!!
रिश्ते वो बड़े होते है जो दिल से जुडे होते है.
बल्कि ……नाज़ुक समय में हाथ थामने से आता है…!!!
और हां अपने मिथ्या अभिमान को दफना दें, सारे झगडे की फसाद सिर्फ और सिर्फ झूठा अभिमान है.
क्योंकि दिल से मानने वाले लोग कभी कभार हीं मिलते हैं.
तो वक़्त हमारे बीच से रिश्ता निकाल देता है.
_ और गलतियों की आड़ में हम फिर अपना फैसला सुना देते हैं ..जो हम बहुत पहले ले चुके होते हैं…!!
_ ना महसूस हो तो, रिश्ता नहीं रखने में ही भलाई है..
_ और इल्ज़ाम ये लगा कि, हमें निभाना नहीं आता ..
_ बुरे वक़्त में ‘वही’ बात करने से भी कतराते हैं..!!
बदलता है तो बस…..समय, अहसास, और नज़रिया…!!
जो रिश्तों को कपड़ों की तरह बदलते हैं.
पसंद ना आऐ तो उसे पूर्णविराम कर दो,,,
यह तो अहसास के पक्के धागे हैं, जो याद करने से और मजबूत हो जाते हैं.
क्योंकि दोनों को गँवाना आसान है और कमाना मुश्किल है..
वैसे रिश्ते नाम के रिश्ते रह जाते हैं.
सिर्फ बनाने वाले को पता होती है तोड़ने वाले को नहीं.
मगर कुछ रिश्तों में हार जाना बेहतर है.
सच्चे बहुत ढूंढे मगर कहीं पाए नहीं.
बस दो खूबसूरत लोग चाहिए, एक निभा सके और दूसरा उसे समझ सके.
अगर वह पार कर दी तो रिश्ते की अहमियत चली जाती है.
जरा सी आंच तेज क्या हुई, जल भुनकर खाक हो जाते हैं.
वो रिश्ता एक दिन दिल की गहराइयों को छू जाता है…!
दूर हो या पास फर्क नहीं पड़ता, सच्चे रिश्तों का बस अहसास ही काफ़ी है.
जो अपने आप बन जाए और जीवन भर ना टूटे उसका नाम है “संबंध” !!
कि लोग झुकना पसंद नहीं करते.
ग़ुरूर ओढ़े हैं रिश्ते, अपनी फितरत पर इतराने लगे हैं…!
“और” यही वजह थी मेरे हार जाने की.
कभी मान जाया करो तो कभी मना लिया करो.
पर चाहत है कि शुरुआत उधर से हो…
_ कुछ खालीपन अपनों ने ही दिया होगा..
जिनसे हमारा कोई रिश्ता नहीं होता…
यह दिखावे के रिश्ते हैं इसे तोड़ने का इल्जाम ना दो.
रिश्ते ज़ोर से नहीं तमीज़ से थामे जाते हैं.
_ रिश्ते फुर्सत के नहीं, तवज्जो के मोहताज होते हैं.!!
जो आपके कामों को करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं.
ऐसे रिश्ते अनमोल होते हैं.
सिर्फ कुछ लोग ही होते हैं लाखों में.
आनंद तो रिश्तों को जीने में मिलता हैं,
रिश्तों को जिन्दा रखें व रिश्तों में जियें.
” यही हैं जिन्दगी “
दूरी कोई मायने नहीं रखती है.
आधे रिश्ते तो लोग इसी वजह से निभा रहे हैं.
_ गैर भी डूबने वाले को बचा लेते हैं !!
लोगो का आधा वक़्त….’अन्जान लोगों को इम्प्रेस करने,
और अपनों को इग्नोर करने में चला जाता हैं…!
मेरा हिस्सा भी तू ले ले मेरे भाई, घर के आंगन में दिवार न कर.
कि हम अगर आवाज ना दें तो सामने से भी आवाज नहीं आती हैं !
दिल से बनाए गऐ रिश्ते खत्म नहीं होते
बस कभी कभी खामोश हो जाते हैं……..
खुद को खो दिया हमने, अपनों को पाते पाते.
और जिनके पास कोई अपना नहीं, वो अपनों के लिए तरसते हैं.
क्या सिर्फ फुरसतों मे याद करने तक का रिश्ता है हमसे.
रिश्ते उनमें सबसे पहले आते हैं……!!
खोखले रिश्ते हमारी कमजोरी ही बनते हैं.
लेकिन हमें संतुष्टि नहीं दे सकते हैं.
बहुत अच्छे रिश्ते भी टुट जाते हैं.
क्यूंकि एक सही बोल नहीं पाता दूसरा समझ नहीं पाता.
लगाकर भूल जाने से तो पौधे भी सुख जाते हैं.
जीवन एक कारवां है, चलता चला जायेगा.
मिलेंगे कुछ खास, इस रिश्ते के दरमियां.
थाम लेना उन्हें वरना, कोई लौट के न आयेगा
फर्क सिर्फ इतना है, कुदरत में पत्ते सूखते हैं, और हकीकत में रिश्ते.
बल्कि, नाज़ुक समय में हाथ थामने से आता है.
माफ़ी मांगकर वो रिश्ता निभाया जाये….
न अपने हो न पराये हो, न दूर हो न पास हो
न ज़ज़्बात हो
सिर्फ अहसास ही अहसास हो.
छोटी सोच और मन में मैल, रिश्तों को कब ख़त्म कर दे कुछ नहीं पता…..
_ ये संशय संभावित रिश्तों की आत्मीयता को खा जाता हैं !!
_ फिर चाहे वो बातें हों, रिश्तें हों, या फिर बिखरा घर.!
क्यों ना हम जड़ों से सीखे रिश्ते निभाना ॥……
जितना हाथ में लिये हुए पानी को गिरने से बचाना.
कुछ सबक जिन्दगी और रिश्ते सिखा देते हैं..
आईने की तरह सच्चे, फूलों की तरह पाक,
वक्त की तरह अनमोल, रेशम की डोर की तरह नाजुक,
और साँसों की तरह जरूरी होते हैं,
लेकिन फिर भी ऐसे रिश्तों का कोई नाम नहीं होता !!
बिना कसूर के जो सब कुछ सह जाते हैं…
दूर रहकर भी जो अपना फ़र्ज़ निभाते हैं…
वही “रिश्ते” सच में अपने कहलाते हैं…
जिससे बहस तो जीत जाओ लेकिन अपनों को हार जाओ..!
यदि कोई आप के काम आता है तो आप भी उस के काम आएं, रिश्ते मधुर बने रहेंगे.
फूल बन कर हम महकना जानते हैं. मुस्करा कर ग़म भूलना हम जानते हैं. लोग खुश होते हैं हम से क्यों कि, बिना मिले ही हम रिश्ते निभाना जानते हैं.
बहुत मजबूत रिश्ते थे…..बहुत कमजोर लोगों से.
क्योंकि कुछ रिश्ते मुनाफा नहीं देते पर जीवन अमीर जरूर बना देते हैं.
एक दूसरे का इस्तेमाल करने के लिए नहीं..
बड़े- बड़े रिश्ते कमजोर हो जाते हैं.
हर पल बिखरना पड़ता है रिश्तों को संवारने के लिये….
इसके अभाव मे रिश्तों का महल एक दिन ढह जाता है.
तो उस रिश्ते को हमेशा के लिए खो देंगे..
लेकिन जहाँ कदर ना हो वहां निभाने भी नहीं चाहिए.
ना कि केवल अपनी बात समझाने और खुद को सही साबित करने में.
रिश्तों में सबकी अहमियत होनी चाहिए.
क्योंकि सच्चाई देर सबेर सामने आ ही जाएगी..
और धन हो तो रिश्ते, डायरी में लिखे जाते हैं.
जहाँ निभाने की चाहत दोनों तरफ से हो.
ज़िन्दगी की ख़ूबसूरती है चंद सच्चे रिश्तों में.
रेत भी सूखी हो तो हाथों से फिसल जाती है…
और बंधे रिश्तों में आजादी…!!!!
झगड़े कम और नजरिया ज्यादा हो.
अगर रिश्ते न हों तो हम जी भी नहीं पाएंगे, इन्हीं के कारण हमें ठोस आधार मिलता है.
रिश्ते निभाते वक्त, मुकाबला नहीं किया जाता.
तब वो रिश्ते ….खत्म होने की तरफ बढ़ने लगते हैं.
क्योंकि गलतियों पर तर्क करने से अक्सर रिश्ते उलझ जाया करते हैं.
रिश्ते मजबूत बनते हैं दो पल साथ बिताने से..!!
रिश्ते ज़ोर से नही तमीज़ से थामने चाहिए..
बल्कि रिश्ता ‘हवा की तरह’ होना चाहिए, जो खामोश हो, पर हमेशा आसपास हो.
जितना कि गलतफहमियां करती हैं.
क्योंकि…..एक सही बोल नहीं पाता…दूसरा सही समझ नहीं पाता.
जिनकी जरुरत नहीं तोड़ दिए जाते हैं.
हर बार आपको ही झुकना पड़े तो……रुक जाइए…
क्योंकि जरूरत ना हो तो लोग सालो पुराने रिश्ते भूला देते हैं.
क्यूंकि कभी कभी लोग कुछ भटक जाते हैं, जिससे दूर लगते हैं, पर रिश्ते बदलते नहीं हैं, एक दिन फिर सब वापिस जरूर मिलते हैं…
रिश्ते भी वक्त के साथ बदलते हैं, पर जो चीजें नहीं बदलती हैं- वे हैं अपनापन, रिश्तों की गर्मी और किसी के साथ से मिलनेवाली खुशी.
रिश्ता कोई भी कैसा भी क्यों ना हो, बस घुटन ना होने लगे…
शुरुआत कौन करे यही सोचकर बात बंद है.
सच्चाई जानने से रिश्ते अक्सर टूट जाते हैं..।।
सामने वाले की हर बात में बुराई नजर आती है.
उसने बार बार मुझे फालतू होने का एहसास दिलाया है.
बहुत आसान है दूरियां बना लेना,
मुश्किल है हालात समझ पाना.
दर्द का रिश्ता खत्म हो जाता है.
अब फ़र्क़ ही नहीं पड़ता……..
क्योंकि लोग गैरों की बातों में आकर अपनों से उलझ जाते हैं.
क्योंकि एक को मनाने के लिए दूसरा खुद को मना नहीं पाता.
तो फिर रिश्ते होकर भी कोई उमंग का एहसास नहीं रहता है.
रिश्ते निभाने वाले हर हाल मे रिश्ता निभाएंगे और जिन्हे नहीं निभाना होगा, वो बिना वजह ही छोड़ जायेंगे..
भावना देखें संभावना नहीं.
अपनेपन का शोर नहीं मचाया करते…
तो सब अच्छाईयां भी बुराईयां लगने लग जाती हैं…
रिश्ता पुराना हो जाए फिर खो देने का डर,
बस यही तो है जिंदगी का सफ़र.
वह किसी दूसरे के साथ रिश्ता क्या खाक निभाएगा.
जब तक उन्हें आजमाने का अवसर नहीं मिल पाता.
_ ज्यादा समझदारियों से रिश्ते फ़ीके पड़ने लगते हैं.
_ ये छोटा सा सत्य, कितना बड़ा सुख भी है.. और कितना बड़ा दुख भी..!!
और अगर सही जुड़ जाएँ तो, आपका पूर्ण जीवन प्रकाशमान !!
ज़िन्दगी का मज़ा है सच्चे रिश्तों में.
कुछ चुप हैं इसलिए रिश्ते हैं…
लोग गलत इल्जाम भी लगा देते हैं.
होश तो तब आया जब हर रिश्ते को मतलबी पाया..!!
अच्छाई भी बुराई बन जाती है…
खुद जैसा इन्सान तलाश करोगे तो अकेले रह जाओगे !!
किसी की कमियां नहीं, अच्छाइयां देखें…
इसलिए खुद को इतना मजबूत कर लो कि अपना खुद का गम खुद ही उठा सको…
लोग गलत फहमी पाल लेते हैं दोबारा झुकेगा.
दोनों में पहले जैसी मिठास कभी नहीं आती.
पास रह नहीं सकते, और दूर रहा नहीं जाता.
जहां गलती नहीं थी वहां भी हाथ जोड़े हमने !!
जब दोनों की तरफ से खुशबू बिखरी हो !!
वहां से मुस्करा कर चले जाना ही बेहतर होता है.
“वक्त” रहते कर लीजिए__वरना बाद में “सूखे पेड़” को
पानी” देकर “हरियाली” की उम्मीद” करना बेकार” है.
कान के कच्चे लोग अक्सर सच्चे रिश्ते खो देते हैं.
जब हर साजिश के पीछे अपने निकलेंगे.
अगर अपना कोई रूठा है तो खुद ही आवाज लगाइये.
क्योंकि रिश्तों में प्यार कम और स्वार्थ ज्यादा हावी हो गया है.
उसके रिश्तों का दायरा उतना ही विशाल होता है.
कहीं ना कहीं रिश्ते कमजोर पड़ने लग जाते हैं और आखिर में जाकर रिश्ता टूटने के कागार पर आ जाता है.
जिंदगी को हर उमंग और मस्ती से जीना चाहिए और आज में जीना चाहिए,
चाहे हजार बंधन हो मगर अपने लिए पल चुराने चाहिए,
जिंदगी में हमें सुकून के पल मिल सकें उसको पाना चाहिए ll
उसकी हमें माफी मांगनी पड़ती है.
बस इसलिए क्योंकि उस समय हम गलती नहीं बल्कि रिश्ते देखते हैं
कहीं प्यारा सा रिश्ता टूट न जाए.
हम उनके साथ बातों को सुलझाना चाहते हैं, लेकिन पुरानी बातें इतनी निकल आती हैं,
गाँठें खुलने के बजाय और बढ़ जाती हैं, जब गाँठें खोल ना सकें, उन्हें तोड़ दें,
पुरानी बातों को चित्त से मिटाकर, प्यार से एक नई शुरुआत करें.
ज्यादा करीबी रिश्तों को खा जाती है…
फटे हुए रिश्ते को सीया जाए क्या..
वे शुरू में काफी ध्यान और सम्भाल मांगते हैं,
पर जैसे ही वे परिपक्व होते हैं,
आप को छाया और फल से संतृप्त कर देते हैं.
अगर रिश्तों की बनावट में झूठ ना हो !!
जितना मान सम्मान गरीबों के घर पर मिलता है,
उतना अमीरों के घर पर नहीं…
वो मनाने से मान जाते हैं, और जिन लोगों को रिश्तों का मोल ही नहीं होता, वो छोटी सी बातों पर भी रिश्ते तोड़ देते हैं.
और कुछ मसले को समझदारी से सुलझा लेते हैं.
वे धुएँ की तरह दूर खिसक जाते हैं.
रिश्ते वो होते हैं जो पतझड़ में भी बसंत का अहसास कराते हैं..
_ फासले तो थे.. दिलों के दरमियान नहीं थे.!!
क्योंकि कुछ जज्बातों के मोती बिखर ही जाते हैं…
जब गर्म होते हैं तो छूने वाले को जला देते हैं…..
और ठंडे होते हैं तब हाथ काले कर देते हैं…
अच्छे लोग जिंदगी में बार- बार नहीं आते…
जहां लोग एक- दूसरे को समझते हैं, परखते नहीं !
_ बल्कि समय के साथ कमज़ोर होते जाते हैं !!
इसलिए वक्त रहते कदर जरूर समझें, क्यूँकि वक्त निकलते ही पछतावा ही बचेगा…
रिश्ते गुलाब की तरह महकने चाहिए,
जो खुद टूटकर भी दो लोगों को जोड़ देता है.
रिश्ते तो बिना मिले भी सदियां गुजार देते हैं.
“तो टूटना मुश्किल है” और अगर स्वार्थ से हुई है…! “तो टिकना मुश्किल है”
सच्चे बहुत ढूंढे मगर कहीं पाए नहीं !
क्योंकि वक़्त देख कर तो मतलब पूरे किए जाते है, रिश्ते नहीं निभाये जा सकते…
तो समझ जाओ उस रिश्ते ने अपनी उमर पूरी कर ली.
वरना घुटन होने लगती है और घुटन के साथ जीना, जिंदगी बर्बाद करना है.
_ मगर अपनों के साथ वो सिर्फ़ दूरी बढ़ाती है.
और जहाँ रिश्ता है, वहाँ खुशी का पता नहीं…!!!
जिधर प्यार मिले…..उधर ही घूम जाते हैं.
लेकिन वह रिश्ता अच्छा कैसे हुआ, जो सिर्फ एक भ्रम से टूट जाता है…
नतीजे बदल जाते हैं और कभी कभी रिश्ते भी..
वे धुँए की तरह दूर खिसक जाते हैं.
इंसान खुद कमजोर हो जाता है..
तब घनिष्ठता कहीं खो जाती है और रिश्तों में दरार आने लगती है.
न अपना हो, न पराया हो, न दूर हो, न पास हो..
न जात हो, न जज़बात हो,
सिर्फ अपनेपन का एहसास ही एहसास हो…
इसलिए कुछ कमियों.. को नजर अंदाज करके.. रिश्ते अपनाना सीखिए…
तब पूर्णता की शांति रिश्तों को छोड़कर चली जाती है.
धन, तजुर्बा, रिश्ते, सम्मान और सबक सब कमाई के ही रूप हैं.
वे कभी प्रेम, आनंद और सच्ची सफलता प्राप्त नहीं कर सकते.
वही असली रिश्ता होता है…
वो अपनेपन का ! शोर नहीं मचाते !!!
क्योंकि सभी मिट्टी में रिश्तों को उपजाऊ बनाने की आदत नहीं होती.
तब आपके रिश्तों में भी सलीका आएगा.
और अपनों को इग्नोर करने में चला जाता है.
*अगर ढूंढते रहेंगे एक-दूसरे की भूल..*
*यूँ ही नहीं आती* *खूबसूरती इन्द्रधनुष में*
*अलग-अलग रंगो को* *”एक” होना पड़ता है*
रिश्ते हैं, कपड़े नहीं कि रफ़ू हो जायें.
उन लोगो के तरह बिल्कुल भी ना बनिये,
जो कैची ✂ की तरह एक चीज को दो टुकड़े करते हों..बल्कि उन लोगो की तरह बनिये
जो सुई की तरह जो दो टुकड़े को एक करते हों.
वो टिकते हैं साफ दिल और सच्चे विश्वास से..!!
अब दुनियाँ दिल से नहीं दिमाग से रिश्ते निभाती है..
जितना पौधों को वक्त पर पानी देना..
इससे रिश्तों में दरार आ जाती है..
इसलिए कुछ कमियों को नजर अंदाज करके रिश्ते बनाये रखिये..
उनके पीछे क्या वक्त बर्बाद करना ; जो रिश्तों को सिर्फ़ मज़ाक समझते हों..
_उन्हें जितना भी सजा लो, वे कभी अपने नहीं होते.!!
” दिमाग ” लगाओगे तो सब हार जाओगे…!!!
_और बंधे रिश्तों में, आज़ादी..!!
” रिश्तों की असलियत ” बस वक़्त आने पर पता चलती है..
जिसमें स्वाभिमान गिरवी रखने की जरुरत ना पड़े..
तोड़ने तो हर किसी को आते हैं।
सच बताऊ तो रिश्ते कभी भी
खुद नहीं मरते इन्हे हमेशा
इंसान खुद क़त्ल करता है, वह भी
3 तरीको से,
एक नफरत से, दो नजर अंदाज करके,
और तीसरा गलतफमी से
ना तो साथ छोड़ रहे हैं और ना ही साथ निभा रहे हैं ;
ना खामोश हैं और ना ही ढंग से बोल पा रहे हैं..!!
जिनके अंदर आपके लिए कोई अपनापन ही ना हो..
मतलब निकल जाने पर रिश्ते बदल जाते हैं..
कुछ निकले खरे सोने से, कुछ का पानी उतर गया.
पास आंसू तो होते हैं, पर रोया नहीं जाता है.
और ख़तम करना हो तो सच्चाई बयां कर दो.
रिश्तों में कितनी गहराई और कितना अपनापन है.
क्योंकि सच्चाई देर सबेर सामने आ ही जायेगी.
कभी कभी उन्हें ज्यादा संभालने में, हम खुद ही बिखरने लगते हैं….
व्यस्तता के बहाने तो दिखावटी लोग करते हैं.
कभी कभी उन्हें ज्यादा संभालने में हम खुद ही बिखरने लगते हैं…
जिन्होंने समय पर आपका साथ दिया है.
बस निभाने वाले ही #_कमज़ोर हो गए हैं !
” यहाँ झूठ नहीं ” सच बोलने से रिश्ते टूट जाते हैं.
पर रिश्ता तोड़ सकते हैं…..
जो दूसरों के कहने पे #तोड़ दिए जाते हैं..
वरना यूं तो हर रिश्ता अपना सा नजर आता है.
जहां निभाने वाले पर भरोसा होता है.
साहब : रिश्तों को खा जाती है…
तो रिश्ता भी बच जाता है और रास्ता भी निकल जाता है..
लोग गलतफहमी पाल लेते हैं कि अब यह हर बार झुकेगा..
एक तरफ़ा था रिश्ता मेरा, बिना बोले जता दिया
और प्रेम से अजनबी भी बंध जाते हैं..!!
इंसान को हर रिश्ते से गुमराह कर देता है….
मुझे झूठे लोगों से रिश्ता तोड़ने में डर नहीं लगता..
लेकिन हम भूल जाते हैं कि ज़िंदगी रिश्तों से ही सजती-संवरती है ”
कोई दिल से हो मेरा, तो एक शख्स ही काफी है..
क्या सिर्फ फुरसतों मे याद करने तक का रिश्ता है हमसे..
मिल गए तो बात लम्बी…. न मिले तो याद लम्बी…
अच्छे लोग जिंदगी में बार- बार नहीं आते हैं.
हल्की फुल्की “दरारें” नज़र आये तो “ढ़हाइये” नहीं, “मरम्मत” कीजिए.
तो छूने वाले को* *जला देते हैं.. और ठंडे होते हैं तब* *हाथ काले कर देते हैं*
याद हम ना करें तो कोशिश वो भी नहीं करते..
नहीं तो वो रिश्तों को खत्म कर देती है.
जब हद याद नहीं, तो हक़ मिलने की उम्मीद भी बेईमानी है.
जड़ों में चोट लगते ही शाखें सूख जाती हैं.
बेहद खूबसूरत रिश्तो को भी तबाह कर जाता है.
जब सामने वाले का इरादा ही ना हो निभाने का..
मेरे लफ्ज अगर निकले तो सारे रिश्ते बेनकाब होंगे..!!
ज्यादा क़रीब आ जाने से ये मटमैले हो जाते हैं…!!!
लेकिन कोई आपके व्यवहार के कारण आपसे प्रेम करे, यह महत्वपूर्ण बात है !!
बेवजह किसी से रिश्ता रखने की जिद्द करने से बेहतर इस लायक बनें की लोग खुद आपकी ओर खिंचे चले आएं.
प्रीत कीजिए, पर किसी की जकड़न मत बनिए.
साथ चलिए पर गुंजाईश रखिये, अपने मोड़ पर मुड़ जाने की..
क्योंकि, ……..
तुम्हारे हाथ में भी तो ..रिश्ते का एक सिरा होगा..
क्यूँकि क्या पता कल आपके पास समय हो और रिश्ते ना हों…
ये स्वाद इस बात पर निर्भर करता है, की हम प्रतिदिन अपने रिश्तों में मिला क्या रहे हैं.
_ एक ही बात उसको कब तक समझाते, रुठने वाले का रूठना ही बेहतर था.
-“उन रिश्तों का ख़त्म हो जाना ही बेहतर है, जिनमें हर दिन आप टूट रहे हो !!”
मगर_जो _वापिस लौट कर आई_वह मेरी ही_आवाज थी_
सामने वाले की हर बात में ही बुराई नज़र आती है.
तो खामोश रह कर रिश्ते मत बिगाड़ो.
जब हम किसी इंसान की गलतियों को माफ करने लगते हैं
और उसकी इज्जत करने लगते हैं..!!
बाहर से अच्छी सजावट और अंदर से स्वार्थ की मिलावट हो रही है.
बस फ़र्क इतना था कि हमने दिल लगा रखा था और उन्होंने दिमाग लगा रखा था.
_ क्योंकि स्वार्थ पूरे होते ना देख कर यहां हर कोई रास्ता बदल लेता है…
अगर रिश्ता बस नाम का हो तो फिर रोना कैसा।।
जिन्होंने समय पर आपका साथ दिया हो..
*तो समझ लो एक मोड़ लेना है, रास्ते और रिश्ते दोनों में !”*.
जरा सी चूक हुई नहीं कि चुभ कर लहुलुहान कर देते हैं..
बात कह गए तो रिश्ते ढह गए …
स्वार्थ पूरा होते ही रिश्ता फीका पड़ने लगता है..
_ आपके रिश्ते ताश के पत्तियों की तरह ढेर हो जाएंगे..!!!
ना मैंने पलट कर देखा _ न तुमने आवाज दी..
कुछ अपने दिखने वाले भी ” धोखेबाज ” होते हैं !!
_ जिनमें वक्त पड़ने पर स्वार्थ की बू आती हो..!!
_ जिन से मिल कर लगता था, ज़िन्दगी भर साथ देंगे !!
_ उम्र गांठ बांधने में ही बीत गई ..
फिर भी इसे नहीं संभाल पाते…
जिनसे मिलकर लगता था की ये उम्र भर साथ देंगे… !!
_ आंखों के सामने तो सभी वफादार होते हैं..!!
प्रेम, सहयोग, विश्वास, निष्ठा, प्रतिआभार, सुरछा, सहानुभूति और सम्मान
ये सारे ऐसे भाव हैं,_ जो परायों को भी अपना बनाते हैं.
ना कुछ मिट जाने की परवाह, ” वहीं प्रेम है “
खामोश मगर हमेशा आस पास..
_ कुछ निकले खरे सोने से, कुछ का पानी उतर गया..!!
इसलिए कभी कभी खामोशी भी बेहतरीन होती है “…..
_ इस दौर में यारों औकात से रिश्ता है !!
अगर दिल में शिकायत थी, जुबां से बोल देते तुम !
कुछ ऐसे हो गए हैं इस दौर के रिश्ते !
जो आवाज़ तुम ना दो तो बोलते वो भी नही..!!
*बिना कहे सब कुछ समझे,* *वैसे रिश्ते अब कहाँ ?*
*मकड़ी जैसे मत उलझो गम के ताने-बाने में*
*तितली जैसे रंग बिखेरो हँस कर इस ज़माने में..*
_ लेकिन कब तक _ हम उसे अपने पास ताज़ा रख पाएंगे _
_ वही हाल रिश्तों का भी है..!!
_ हद से ज्यादा किसी के बारे में जानकारी और interference [ दखल अंदाजी ] रिश्तों को खराब करती ही है.
_ निरर्थक कहा-सुनी के कारण माहौल बिगड़ जाता है और ‘मुंह चलाए’ बिना हम लोग रह नहीं सकते !!
_ जुबान और दिमाग तेज़ चलाने से रिश्तों की रफ्तार धीमी पड़ जाती है..
_ परिणामस्वरूप धीरे-धीरे रिश्ते बोझ बनने लगते हैं !!
_ इसलिए थोड़ी बहुत दूरी और ignorance आज के time में रिश्तों की ताजगी के लिए जरूरी है.!!
_ दूर रहने पर रोज-रोज की किच-किच नहीं होती, चार दिन का मिलना जुलना हुआ तो _ हंस-बोल कर बीत जाता है _ और प्रेम बना रहता है..!!
_ जिन्हे देख कर लगता था.. ये उम्र भर साथ निभाएंगे.!
_तो रिश्तों में दरार आना तय है..!!
_ विश्वास और भरोसे के बिना, कोई रिश्ता नहीं होता..
_ रिश्ते बनाना तो आजकल आम बात है..!!
_कुछ रिश्ते दिल के भी हुआ करते है..
_ जान पहचान का नहीं, पर कुछ अपना होता है..!!
_ बिगड़ जाती है संबंधों की तह बनते बनते.._ फिर कभी ना सही होने के लिये..!!
_ तनाव अपने ही रूप में हर जगह है..
..और इसे ही तो पकड़ने की चुनौती है.!!
_ सामने वाले को घुटन महसूस कराये,, _ ऐसे रिश्ते का,, क्या भविष्य है ?

very nice suvichar !!
जानते सब है पर निभाता कोई कोई है
आप के शब्द अनमोल है
बहुत ही शानदार और दिल को छू लेने वाले रिश्तों पर सुविचार। आपका धन्यवाद।