सुविचार – पति – पत्नी – 031

“पति–पत्नी के बीच का रिश्ता _ पक्के दोस्तों के समान होना चाहिए”
आपस मेँ निभ जाए तो _ इस संसार मेँ सर्वश्रेष्ठ रिश्ता पति -पत्नी का होता है..
जीवन भर साथ निभाने वाले भी एक-दूसरे को ठीक से समझ नहीं पाते, बहुत कुछ अबूझा रह जाता है, खास तौर से पति-पत्नी का रिश्ता..!!
पति पत्नी को एक दुसरे की छोटी छोटी खुशियों का ख्याल रखना चाहिए.
पति – पत्नी तभी सुखी रह सकते हैं जब वे अपने साथी का ख्याल रखें.
यह रिश्ता ऐसा रिश्ता है जिसमे खुद की हार भी जीत के समान है.
पति – पत्नी होने से ज़्यादा ज़रूरी इस समाज के लिए पति – पत्नी दिखना ज़रूरी है.
पति – पत्नी सुख – दुःख दोनों के साथी होते हैं.
पत्नी बनने का अधिकार उसे है जो लड़के के संघर्ष में भी साथ रहे ना कि सरकारी नौकरी की वजह से साथ रहे..,

_ और पति बनने का अधिकार उसे है जो कभी किसी लड़की के करियर में बाधा न बने और उसे केवल चूल्हे-चौके तक ही सीमित न रखे.

स्त्री सरल होती है, सरलता उसका सौंदर्य है.

_ पुरुष ताकतवर होता है, ताकत उसका सद्गुण है.
_स्त्री के भीतर सरलता के साथ पुरुष जैसी ताकत भी हो,
_ पुरुष के भीतर ताकत के साथ स्त्री जैसी सरलता भी हो,
_ फिर देखिए, संसार कितना सुंदर बनता है.
जब पति-पत्नी दो लोग साथ में होते हैं..

…ये कतई नहीं होता कि 50-50 की पार्टनरशिप हो…
_ यहां पर कोई लेनदेन नहीं होता ..कोई व्यापार नहीं है.
_ जीवन एक वृत्त है ..जिसे दो लोग मिलकर पूरा करते हैं..
_ किसने कितना दिया ..यह मायने नहीं रखता.
_ मगर जरूरी है कि दोनों समझे ..और सच्चाई से समझे..
पति- पत्नी का रिश्ता खून का नहीं होता है, परस्पर सामञ्जस्य और हम खयाली का होता है.

__ छोटी- छोटी बातें परस्पर प्रेम में महत्वपूर्ण कार्य अदा करती हैं..!

कोई जरुरी नहीं कि पति पत्नी के विचार मिलते हों…

_ जरुरी यह है कि दोनों को बेमेल विचारों के साथ रहना आता हो.

पति- पत्नी को समझना चाहिए कि हर इंसान अलग होता है, सोच अलग, विचार अलग..

_ पर साथ तो चाहिए, अकेलापन नहीं _ फिर समझौता बेस्ट है..!!

“शादीशुदा ज़िन्दगी को खुशहाल बनाने के लिए,

_ दोनों को एक दुसरे का साथ देना चाहिए”

पति – पत्नी का रिश्ता कुछ ऐसा होना चाहिए, _

_ कि लड़ाई जब दो में हो तो तीसरे को पता नहीं चलना चाहिए..!

विवाह के बाद पति पत्नी का आपस में गलती तलाशना व बहस करना मूर्खता होती है ;

बुद्धिमानी तो गलतियां सुधार कर गृहस्थी चलाने में होती है, _ बहस से मात्र समस्याएं उत्पन्न होती हैं.

हर व्यक्ति में कुछ गुण कुछ दोष होते हैं ; _ यदि पति- पत्नी एक दूसरे के गुणों को प्रोत्साहित करें और कमियों को नजरअंदाज करें, तो जीवन बेहतर ढंग से जिया जा सकता है !!

_ बार बार कमियों को इंगित करने से परस्पर मनमुटाव बढता है, _और फिर जीवन जिया नहीं गुजारना पङता है.

पति – पत्नी जब समझदार हों तो विचार ना मिलते हुए भी एक दूसरे के विचारों की कद्र करते हैं ना ही कोई हस्तक्षेप करते हैं, _

_ नज़रअन्दाज़ भी ऐसे करते हैं की दूसरे को बुरा ना लगे और इन्ही विचारों के साथ अपनी जिंदगी का पूरा समय हंसी ख़ुशी व्यतीत कर जाते हैं !

कौन कहता है कि हर पुरुष खोजते हैं रूपवती स्त्री…

  • वो भी एक सामान्य स्त्री के तलाश में हैं, जो विषम परिस्थितियों में साथ रहे और…उसे सहारा दे, _ गर रोए तो उसे कायर न समझ कर…श्रद्धा और प्रेमभाव से हर ले _उसके दिल के तमाम दुखों और पीड़ाओं को..
पति के लिए पत्नी से बढ़कर… और पत्नी के लिए पति से बढ़कर कोई दोस्त नहीं हो सकता..!

अगर आपस में मशवरा करके जिंदगी के फैसले मिल कर लिए जाएं तो पूरी जिंदगी सकून से गुजरेगी ..!!

मनुष्य जीवन का एक आश्चर्य यह भी है कि जीवन भर साथ निभाने वाले भी एक-दूसरे को ठीक से समझ नहीं पाते, बहुत कुछ अबूझा रह जाता है,

_खास तौर से पति-पत्नी का रिश्ता ;

_ यह रिश्ता शरीर से होते हुए मन और मन से होते हुए आत्मा से जुड़ता है ;

_ इस जुड़ाव के लिए दोनों का शरीर किसी पुल की तरह काम करता है जो दो छोरों को मिलाता है और मन से आत्मा तक की यात्रा सम्पन्न करवाता है.

जिंदगी के सफर में बगल सीट पर एक ईमानदार इंसान की बहुत जरूरत होती है.

_ वो व्यक्ति जो आपके बारे में बहुत सम्माननीय है..
_ आप उस के साथ बहुत खुश हैं.
_ जिसके साथ आप खुश हो हर पल का आनंद लें सकें,
_ जो आपके साथ वैसा व्यवहार करता है जैसा आप हैं,
_जो आपके पास जो कुछ है उसे मुस्कान के साथ स्वीकार करता है,
_ जिंदगी बहुत छोटी है,
_ अपनों के साथ जिंदगी का एक खूबसूरत पल..
_ हजारों दिन गैरों के साथ बिताने से कहीं बेहतर है.
पत्नी क्या होती है।

मुझसे अच्छा कोई नही जान पाएगा
एक बार जरूर पढ़ें..
“मै डरता नही उसकी कद्र करता हूँ
उसका सम्मान करता हूँ।
-” कोई फरक नही पडता कि वो कैसी है
पर मुझे सबसे प्यारा रिश्ता उसी का लगता है”
माँ बाप रिश्तेदार नही होते’
वो भगवान होते हैं ; उनसे रिश्ता नही निभाते उनकी पूजा करते हैं’
भाई बहन के रिश्ते जन्मजात होते हैं,
दोस्ती का रिश्ता भी मतलब का ही होता है’
आपका मेरा रिश्ता भी जरूरत और पैसे का है’
पर,
पत्नी बिना किसी करीबी रिश्ते के होते हुए भी हमेशा के लिये हमारी हो जाती है
अपने सारे रिश्ते को पीछे छोडकर”
और हमारे हर सुख दुख की सहभागी बन जाती है
आखिरी साँसो तक”
पत्नी अकेला रिश्ता नही है, बल्कि वो पूरा रिश्तों की भण्डार है,
जब वो हमारी सेवा करती है हमारी देख भाल करती है,
हमसे दुलार करती है तो एक माँ जैसी होती है.
जब वो हमे जमाने के उतार चढाव से आगाह करती है,और मैं अपनी सारी कमाई उसके हाथ पर रख देता हूँ क्योकि जानता हूँ वह हर हाल मे मेरे घर का भला करेगी तब पिता जैसी होती है.
जब हमारा ख्याल रखती है हमसे लाड़ करती है, हमारी गलती पर डाँटती है, हमारे लिये खरीदारी करती है तब बहन जैसी होती है.
जब हमसे नयी नयी फरमाईश करती है, नखरे करती है, रूठती है , अपनी बात मनवाने की जिद करती है तब बेटी जैसी होती है.
जब हमसे सलाह करती है मशवरा देती है ,परिवार चलाने के लिये नसीहतें देती है, झगड़े करती है तब एक दोस्त जैसी होती है.
जब वह सारे घर का लेन देन, खरीददारी, घर चलाने की जिम्मेदारी उठाती है तो एक मालकिन जैसी होती है.
और जब वही सारी दुनिया को यहाँ तक कि अपने बच्चों को भी छोडकर हमारे बाहों मे आती है,
तब वह पत्नी, प्रेमिका, अर्धांगिनी , हमारी प्राण और आत्मा होती है जो अपना सब कुछ सिर्फ हम पर न्योछावर करती है”
मैं उसकी इज्जत करता हूँ तो क्या गलत करता हूँ.
चढ़ती उम्र के साथ पतियों को बदलते देखा है
बुढ़ापे की तरफ जब राह हो जाती,
अपनी औलाद ही जब आंखे दिखाती,
तब पतियों को बदलते देखा है,
पत्नियों की कदर करते देखा है.
सारी दुनिया घूम लीं जब, कोई रिश्ता सगा ना दिखा,
भाई बहन सब रुठ गएं _ मां, बाप के हाथ छूट गए,
तब जीवनसाथी का हाथ, सड़क पे पकड़े देखा है,
हां, पत्नियों की कदर करते देखा है.
जवानी जब बीत गई, कमाने की इच्छा भी ना रही,
भागने का जब दम ना बचा, घुटनों का दर्द जब बढ़ गया,
तब पत्नी के घुटनों में, बाम लगातें देखा है,
हां, हम पत्नियों की कदर करते देखा है,
हां, पतियों को बदलते देखा है.
पार्क में जब किसी का दर्द सुन लिया,
साथी किसी का गुजर गया,
उसकी आंख का आंसू देख, घर आकर,
जीवन साथी को हिलते हाथों से गजरा लगाते देखा है
हां, पतियों को बदलते देखा है,
पत्नियों की कदर करते देखा है,
चढ़ती उम्र के साथ, प्यार को भी चढ़ते देखा है..!!
एक बार अवश्य पढ़ें….

🌹👉 *स्वयं का महत्व*👈🌹
इस महिला की सोच सभी के लिये प्रेरकः
प्रसन्नता का गेयर हमेशा अपने हाथ में रखें….✍
वैवाहिक जीवन पर आधारित एक लाइफ स्किल सेशन में स्पीकर ने दर्शकों में उपस्थित एक महिला से पूछा….
“क्या आपके पति आपको खुश रखते हैं ?”
इस प्रश्न पर उस महिला का पति बड़ा ही आश्वस्त था,
क्योंकि उनका वैवाहिक जीवन काफी सफल था। उसे पता था उसकी पत्नी क्या बोलेगी….
क्योंकि पूरी शादी शुदा जिंदगी में उसकी पत्नी ने कभी भी किसी भी बात के लिए कोई शिकायत नहीं की थी।
महिला ने बड़ी ही गंभीर आवाज में जवाब दिया – “नहीं मेरे पति मुझे प्रसन्न नहीं रखते।”
पति बहुत ही चकित था और वहां मौजूद बहुत से दूसरे लोग भी !
परन्तु उसकी पत्नी ने बोलना जारी रखा –
“मेरे पति ने कभी मेरी खुशी का ध्यान नहीं रखा…. और ना ही वे रख सकते हैं, क्योंकि वे बहुत व्यस्त रहते हैं
पर फिर भी मैं खुश हूँ ।
मैं खुश हूँ या नहीं यह मेरे पति पर नहीं बल्कि मुझ पर निर्भर है।
मैं ही एकमात्र व्यक्ति हूँ जिस पर मेरी खुशी निर्भर करती है।
मैं जिन्दगी की हर परिस्थिति और हर पल में खुश रहना पसंद करती हूँ, क्योंकि अगर मेरी खुशी….
किसी दूसरे व्यक्ति, किसी वस्तु या हालात पर निर्भर करती है तो यह मुझे पसंद नहीं और इससे मुझे बहुत तकलीफ होती है।
जीवन में जो कुछ भी है वह हर पल बदलता रहता है।
व्यक्ति, समृद्धि, पैसा, शरीर, मौसम,आपके ऑफिस में बाॅस, सुख-दुख, दोस्त और मेरी शारीरिक व मानसिक अवस्था भी। यह अन्तहीन सूची है और यही हमें प्रभावित करना चाहती है।
मुझे खुश रहने का फैसला करना होगा, चाहे जीवन में कुछ भी हो।
मेरे पास साडियाँ ज्यादा हैं या कम पर मैं खुश हूँ।
चाहे मैं घर में अकेली रहूँ या बाहर घूमने जाऊँ, मैं खुश हूँ।
चाहे मेरे पास बहुत पैसा हो या नहीं पर मैं खुश हूँ। चाहे टीवी पर मेरा पसन्दीदा सीरियल आ रहा है या क्रिकेट मैच, पर मैं सदा खुश हूँ।
मैं शादी-शुदा हूँ पर मैं तब भी खुश थी… जब मैं सिंगल थी।
मैं अपने स्वयं के लिए खुश हूँ।
मैं अपने जीवन को इसलिए प्यार नहीं करती कि वह दूसरों से आसान है, बल्कि इसलिए कि मैने स्वयं खुश रहने का फैसला किया है।
जब प्रसन्न रहने का दायित्व मैं अपने आप पर लेती हूँ तब मैं अपने पति के कंधों से अपनी देखभाल करने का बोझ हल्का करती हूँ।
यह सोच मेरे जीवन को बहुत आसान बनाती है और यह हर किसी को भी बना सकती है, और यही एक मात्र कारण है कि हम बहुत सालों से सफल और प्रसन्न वैवाहिक जीवन का आनन्द ले रहे हैं।
आप भी अपनी प्रसन्नता का गेयर किसी और के हाथ में मत दीजिए।
प्रसन्न रहिए, चाहे जीवन में बहुत गर्मी हो या बरसात, चाहे आपके पास बहुत पैसा न हो, कोई आपको हर्ट करे तब भी…!!
पति चाहे स्टेयरिंग सीट पर बैठे हों और गाड़ी सपाट रोड पर दौड़ रही हो या ऊबड़खाबड़ सड़क पर हिचकोले खा रही हो,
गियर हमेशा प्रसन्नता मोड में ही रखें।
आपको कोई प्यार भी नहीं करेगा …. कोई भी सम्मान नहीं देगा … जब तक आप स्वयं अपने आप को महत्व नहीं देंगी। इसलिये आपको स्वयं को जानना बहुत जरूरी है ।
स्वयं के महत्व की जानकारी बेहद जरूरी है ।
रिश्ते इस संसार में बनते हैं, बिगड़ते हैं. बने हुए रिश्तों को संभालना मुश्किल काम है.
रिश्ते लम्बे समय तक चलें इसके लिए समझदारी के साथ-साथ सद्भावना और धीरज की ज़रूरत होती है.
कई बार कुछ ऊंचा-नीचा हो जाता है, उस वक्त दोनों की समझदारी से संतुलन बनता है.
कई बार उनमें से एक ज़िद में आ जाता है, तब दूसरे का संयत होना आवश्यक होता है.
बात-बिनाबात मनमुटाव हो जाता है, बातचीत बंद हो जाती है, एक-दूसरे की ओर देखना छूट जाता है. ऐसी हालत में क्या किया जाए, यह ऐसी समस्या है जो अब तक अनसुलझी है.
रिश्ते बनाने और निभाने के लिए सकारात्मक सोच जरूरी होता है.
जब दोनों पक्ष एक जैसा सोच रहे हों तब तो सहज रूप से बात बन जाती है लेकिन जब विपरीत विचारधारा से सामना होता है, उस समय बने हुए रिश्ते को निभाना मजबूरी जैसा हो जाता है, जैसा कि पति-पत्नी सम्बंधों में दिखाई पड़ता है.
इन दोनों का पारिवारिक और समाजिक परिवेश अलग-अलग होता है, एक समाजिक अनुष्ठान के अंतर्गत दोनों एक साथ रहने के लिए सहमत हो जाते हैं किंतु दोनों की सोच में विरोधाभास होता है जो धीरे-धीरे उभर कर सामने आता है.
ऐसे में तालमेल बना कर चलना स्वाभाविक नहीं रहता, मजबूरी हो जाता है. इस मजबूरी के चलते आपसी बहस और विवाद भी होते हैं फिर भी रिश्ते आजीवन बने रहते हैं.
( उपन्यास ‘परदेसी…जाना नहीं’ का एक अंश – द्वारिका प्रसाद अग्रवाल)

Submit a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected