सुविचार – कहां थे, कहां पहुँच गये – 1065

” कहां थे, कहां पहुँच गये “

*एक तौलिया से पूरा घर नहाता था।*

*दूध का नम्बर बारी-बारी आता था।*

*छोटा माँ के पास सो कर इठलाता था।*

*पिताजी से मार का डर सबको सताता था।*

*बुआ के आने से माहौल शान्त हो जाता था।*

*पूड़ी खीर से पूरा घर रविवार व् त्यौहार मनाता था।*

*बड़े भाई के कपड़े छोटे होने का इन्तजार रहता था।*

*स्कूल मे बड़े भाई की ताकत से छोटा रौब जमाता था।*

*बहन – भाई के प्यार का सबसे बड़ा नाता था।*

*धन का महत्व कभी कोई सोच भी न पाता था।*

*बड़े का बस्ता किताबें साईकिल कपड़े खिलोने पेन्सिल स्लेट स्टाईल चप्पल सब से छोटे का नाता था।*

*मामा – मामी नाना – नानी पर हक जताता था।*

*एक छोटी सी संदुक को अपनी जान से ज्यादा प्यारी तिजोरी बताता था।*

*~~ अब ~~*

तौलिया अलग हुआ, दूध अधिक हुआ,*

*माँ तरसने लगी, पिता जी डरने लगे,*

*बुआ से कट गये, खीर की जगह पिज्जा बर्गर मोमो आ गये,*

*कपड़े भी व्यक्तिगत हो गये, भाईयो से दूर हो गये,*

*बहन से प्रेम कम हो गया,*

*धन प्रमुख हो गया, अब सब नया चाहिये,*

*नाना आदि औपचारिक हो गये।*

*बटुऐ में नोट हो गये।*

*कई भाषायें तो सीखे मगर संस्कार भूल गये।*

*बहुत पाया मगर काफी कुछ खो गये।*

*रिश्तो के अर्थ बदल गये,*

*हम जीते तो लगते है*

*पर संवेदनहीन हो गये।*

*कृपया सोचें ,*

*कहां थे, कहां पहुँच गये।*

 

 

 

 

 

 

 

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