सुविचार – भीड़ – Crowd – 132

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जो सुकून अज्ञात बन कर रहने में है न, वो भीड़ में कहाँ.!![
भीड़ अब सिर्फ जगहों में नहीं, हमारे जीवन में बस गई है –

हर मोड़ पर धक्का, हर कदम पर हुज्जत, हर दिन किसी न किसी अपमान को निगल जाना..
_ लंबी लाइनों में खड़े होना अब मजबूरी नहीं, हमारी नई आदत बन गई है.
_ अजीब बात यह है कि हम इतने अभ्यस्त हो चुके हैं कि यह सब अब असामान्य भी नहीं लगता.
_ मानो भीड़ सहना ही हमारी सबसे बुनियादी शर्त बन गई हो.!!

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