सुविचार – समाज – 073

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“समाज हमारी ताकत है”

_ समाज का अर्थ होता हैं, एक दूसरे को मदद करने वाले लोगों का समूह,
_ अगर मनुष्य एक दूसरे को समझ कर, एक दूसरे की सहायता करके, जीते हैं तो..
_ वह समाज हमारे लिए ताकत बन जाता है.
__ पर अभी हमने समाज के नाम पर कुछ और ही बना रखा है..
जिस समाज में हम रहते हैं, वह हमसे और आपसे ही बनता है, ऐसे में अगर समाज को बदलना या फिर उसमें नये विचारों को शामिल करना है तो, इसकी पहल हमें खुद करनी होगी.
समाज में लोगों की आदत होती है कि वे बुराइयों पर ज्यादा ध्यान देते हैं.

__ कुछ लोगों में इतनी कुंठा भरी होती है कि वे किसी के भी गुणों की चर्चा नहीं करते है, केवल आलोचना करते हैं.
__ किसी की अच्छाईयों की सराहना करें तो सामने वाले को नई ऊर्जा मिल जाती है,
_बस नजरिया बदलने की जरुरत है.
हम जिस समाज में रहते हैं वहां सिर्फ परफेक्ट लोगों के साथ संबंध रखना बुद्धिमानी नहीं है, क्योंकि हर आदमी में कुछ न कुछ कमी जरूर रहती है. _

_ हमें दूसरों की कमियों को स्वीकार करते हुए उनके भीतर की अच्छाइयों के लिए तारीफ कर अपने दोस्तों- संबंधियों का दायरा बढ़ाना चाहिए.

हम सामाजिक रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, इसलिए तो..

_ कुछ लोग होते हैं ..जिनके चले जाने पर अनजाना गम छा जाता है,
_ बिना कोई जान पहचान हुए, बिना कोई व्यक्तिगत भाव हुए भी…
_ यह दिखाता है कि हम एक दूसरे से कितना जुड़े हुए हैं, संवेदना के तल पर…
_ यह कहना कि किसी का किसी पर क्या फ़र्क पड़ता है गलत साबित होता है…
_ फर्क पड़ता है…बिल्कुल पड़ता है एक दूसरे का…
_ जो ऊपर से नहीं जुड़े वो कहीं न कहीं जुड़े हैं…अदृश्यता में…जीवन बोध में…
रूढ़िवादी विचारधारा एक दिन में नहीं बदली जा सकती.

_ न ही नई वैज्ञानिक विचारधारा कोई ऐसी चीज है, जिसे दूसरों पर जबरदस्ती थोप सकें.
_ वह तो धीरेधीरे किंतु दृढ़ता से विकसित हो रही है और हमारे परिवार और समाज का ढांचा बदलती जा रही है.
_ इसलिए हमें सिर्फ अपने विचारों की चिंता करनी चाहिए कि वे कहाँ तक रूढ़िवाद से मुक्त हो सके हैं और कहाँ तक नए वैज्ञानिक विचारों को ग्रहण कर रहे हैं.
समाज में निःस्वार्थ व्यक्ति कोयले के ढेर में हीरे की तरह है.

_ ऐसे व्यक्ति की पहचान, प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता स्वतः अलग हो जाती है.
_ ऐसा व्यक्ति हर किसी के लिए प्रिय होता है.
_ निःस्वार्थता एक उत्कृष्ट गुण है.
_ अपनी दया और करुणा को यदि निःस्वार्थता से जोड़ दिया जाए, तो आप का व्यक्तित्व दो गुना निखर जाएगा.
_ निःस्वार्थता की भावना को बढ़ाने से आप में अपनाने की छमता बढ़ती रहेगी.
_ कभी भी जीवन में किसी को धोखा देने के बारे में न सोचें,
_ क्योंकि ऐसा करने से आप को चंद मिनटों का आनंद तो मिल सकता है,
_ लेकिन भविष्य में आप को जिंदगीभर का दुख भी मिल सकता है.
_ इसलिए अपने अंदर निःस्वार्थता की भावना को विकसित करें.
_ ऐसा करने से आप के व्यक्तित्व में चमत्कारिक बदलाव होगा.
हर उम्र में हम दो जीवन जीते हैं एक अपनों के लिए, एक समाज के लिए,

_ अब आप तय करें कि आप किस को लगातार जीना चाहते हैं.
_ क्योंकि ज्यादातर लोग लगातार सामाजिक जीवन जीते हैं और दूसरे को तदनुसार बदल देते हैं, लेकिन यह इसके विपरीत होना चाहिए.
_ आप किस के साथ स्थिर रहने के लिए चुनेंगे ?
एक समाज जो इलाज को गुप्त रखता है ताकि वे भारी मुनाफे के लिए दवा बेचना जारी रख सकें, वह वास्तविक समाज नहीं बल्कि एक विशाल पागलखाना है.

A society that keeps cures a secret so they can continue to sell medication for huge profits is not a real soceity but a huge mental asylum.

समाज इतना नकली हो गया है कि सच्चे लोगों को परेशान कर देता है.

Soceity has become so fake that the truth actually bothers people.

कोई कितना भी डेवलप या मॉर्डन हो जाए लेकिन सामाजिक दृष्टिकोण से संकीर्णता के मामले में उबर जाने में अभी और वक्त लगेगा.
— वह जमाना कुछ और था, जो आदेश मिला, चुपचाप मान लिया, जिससे विवाह हुआ, निभा लिया, जो परोस दिया गया वह खुश होकर खा लिया;

_वह वक्त जैसे अब न रहा..
_अब सवाल पर सवाल हैं, मुंहतोड़ जवाब है, गुणा-भाग है, चतुराई है और सबसे ऊपर ‘मेरी मर्जी’
_परिवर्तन शाश्वत है, हर पल आधुनिक समय होता है.
_समय के अनुरूप सोच और रुझान बदलते रहते हैं,
_रिश्तों की गर्माहट में भी परिवर्तन आता है _किन्तु लोग स्वयं को इस तरह स्वकेन्द्रित कर लेंगे तो _सामाजिक निर्वाह की भावना कैसे बचेगी ?
_आश्चर्य यह है कि _व्यवहार के तरीके बदल गए _लेकिन मनुष्य की अनुभूतियाँ यथावत हैं,
_उस समय भी लोग दुखी थे और आज भी दुखी हैं.
जब हम किसी से कुछ उम्मीद करते हैं, तो अक्सर हम निराश होने की संभावना में होते हैं.

_ इसलिए किसी से कुछ भी उम्मीद न करें, जो कुछ भी मिला है उसके लिए आभारी रहें.
-प्रकृति से जुड़ी हर चीज उसका सम्मान करती है और उसकी सबसे ज्यादा परवाह करती है.
– जो कुछ भी प्यार, देखभाल और करुणा के साथ किया जाता है, वह बहुत आगे तक जाता है और यह कई गुना और परिमाण में आता है.
– अगर कोई आपको कुछ नहीं देता है और आपको किसी चीज की सख्त जरूरत है, तो उसकी मदद करें और वह आपके बिना पूछे ही आपकी मदद करेगा.
-अपने आप पर विश्वास करें जैसे कि आप केवल खुद पर विश्वास नहीं करते हैं कि कौन करेगा.
_ हर कोई अपने आयाम में अद्वितीय है,
_ उनके मार्ग में व्यापक अनुभव है, _इसपर विश्वास करो.
_ एक इंद्रधनुष में सात रंग होते हैं,
_ मनुष्यों के पास लाखों और करोड़ों रंग होते हैं _जो विभिन्न प्रकार के लोगों के विभिन्न रंगों से भरे रंगीन जीवन जीने के लिए वास्तव में आवश्यक हैं.
– समाज को कुछ देना शुरू करें
_जैसे कि जब हम कमजोर होने के लिए पैदा हुए हैं और खुद से पूछें कि क्या आप कपड़े का एक टुकड़ा या एक कील भी लाए हैं.
_ नहीं, यह परोक्ष रूप से आपको प्रकृति द्वारा दिया गया है और आप कुछ भी वापस भुगतान नहीं कर सकते हैं बस आप उत्पादन कम कर सकते हैं.
– प्रोत्साहित करने की तुलना में हंसना आसान है और हां मानवता का द्रव्यमान भी ऐसा ही करता है.
_ यदि आप मदद नहीं कर सकते हैं तो उस व्यक्ति और उसके विचारों को अवमानना ​​में न डालें,
_ क्योंकि यह आपके प्रोग्राम किए गए दिमाग के अनुरूप नहीं है, सरल !
– अंत में, चीजों को आसान बनाएं, जीवन आसान है हम इंसान इसे जितना जटिल बना रहे हैं उतना ही जटिल बना रहे हैं.
_ नौकरी के लिए डिग्री की आवश्यकता हो सकती है
_ लेकिन जीवन में पास होने के लिए अनुभवों से सीखने के अलावा कोई डिग्री नहीं है.
— रोहन अग्रवाल [ Hiker ]
समाज का प्रत्येक सदस्य बाकियों की जासूसी करता है और उनके विरुद्ध मुखबिरी करना उसका कर्तव्य है.

_सभी गुलाम हैं और अपनी गुलामी में समान हैं… इसके बारे में सबसे बड़ी बात समानता है… गुलाम समान होने के लिए बाध्य हैं.
Every member of the society spies on the rest, and it is his duty to inform against them. All are slaves and equal in their slavery…
The great thing about it is equality… Slaves are bound to be equal.
– Fyodor Dostoevsky
एक व्यक्ति जो पूरी तरह से अलग-थलग नहीं हुआ है,

_ जो संवेदनशील बना हुआ है और महसूस करने में सक्षम है,
_ जिसने गरिमा की भावना नहीं खोई है, जो अभी तक ‘बिकाऊ’ नहीं है,
_ जो अभी भी दूसरों की पीड़ा सह सकता है,
_ जिसने अर्जित नहीं किया है पूरी तरह से अस्तित्व का तरीका –
_ संक्षेप में, एक व्यक्ति जो एक व्यक्ति बनकर रह गया है और एक वस्तु नहीं बन पाया है
– वह वर्तमान समाज में अकेला, शक्तिहीन, अलग-थलग महसूस करने से बच नहीं सकता है.
A person who has not been completely alienated, who has remained sensitive and able to feel, who has not lost the sense of dignity, who is not yet ‘for sale’, who can still suffer over the suffering of others, who has not acquired fully the having mode of existence – briefly, a person who has remained a person and not become a thing – cannot help feeling lonely, powerless, isolated in present-day society. – Erich Fromm
अधिकांश लोगों का मानना ​​है कि जब तक किसी बाहरी शक्ति द्वारा उन्हें कुछ करने के लिए खुलेआम मजबूर नहीं किया जाता है, तब तक उनके निर्णय उनके हैं,
_ और यदि वे कुछ चाहते हैं, तो वे ही इसे चाहते हैं.
_ लेकिन यह हमारे अपने बारे में मौजूद सबसे बड़े भ्रमों में से एक है.
_ हमारे अधिकांश निर्णय वास्तव में हमारे अपने नहीं होते _ बल्कि हमें बाहर से सुझाए जाते हैं;
_ हम खुद को यह समझाने में सफल हो गए हैं कि यह निर्णय हमने ही लिया है,
_ जबकि हम वास्तव में दूसरों की अपेक्षाओं के अनुरूप हैं, अलगाव के डर से और हमारे जीवन, स्वतंत्रता और आराम के लिए अधिक प्रत्यक्ष खतरों से प्रेरित हैं
Most people are convinced that as long as they are not overtly forced to do something by an outside power, their decisions are theirs, and that if they want something, it is they who want it.
But this is one of the great illusions we have about ourselves.
A great number of our decisions are not really our own but are suggested to us from the outside; we have succeeded in persuading ourselves that it is we who have made the decision, whereas we have actually conformed with expectations of others, driven by the fear of isolation and by more direct threats to our life, freedom, and comfort.
– Erich Fromm

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