कभी कहा जाता था, “मनुष्य केवल रोटी के सहारे जीवित नहीं रह सकता, रोटी चाहिए सिर्फ जीने के लिए, ना कि हम जी रहे हैं रोटी के लिए..
_ “हमारी और भी भूखें हैं” लेकिन आजकल महँगाई और पैसे की कमी को देखते हुए यह कथन बदल कर यूँ हो गया है,
_ “ऐसा कोई मनुष्य नहीं हो सकता जो रोटी के बिना जी सके.
_ पहले पेट तो भरे, बाद में और कुछ सूझेगा”
_ देखते-देखते रुपए का अवमूल्यन कुछ ऐसा हुआ कि रोटी अहम् मुद्दा बन कर रह गई.!!