सुविचार – बेटी – लड़की – 024

जब आप एक लड़की को शिक्षित करते हैं, तो आप देश का चेहरा बदलना शुरू कर देते हैं.

When you educate a girl, you begin to change the face of a nation. – Oprah Winfrey

प्रकृति का नियन्ता जब हमसे बात करना चाहता है, तभी वह हमारे घर एक कन्या शिशु बनकर अवतरित हो जाता है,,, लेकिन हम कहां यह सूक्ष्म बात जान – समझ पाते हैं.

When the controller of nature wants to talk to us, he reincarnated in our house in the form of a girl child, but how are we able to know and understand the subtle thing.

लड़का लोग लड़की से बेहतर है के पीछे कोई साइंस नही बल्कि धूर्तता है. _ चूँकि धूर्त लोगो के शासन का दौर है तो धूर्तता राज कर रही है.
बेटियों को तितली नहीं मधुमक्खी बनाओ, पंख दो मगर डंक भी दो.
लड़की का जॉब करना उसमें भरोसा पैदा करता है कि _वो कुछ कर सकती है.

जॉब सर उठाकर जीना और आत्मसम्मान पैदा करता है,

जॉब दुनिया की समझ कराती है, इंसानों की पहचान कराती है.

जॉब अच्छे बुरे की समझ पैदा करती है और दुनियादारी सिखाती है.

जॉब लड़की को खुद की इज़्ज़त करना सिखाती है, वो आर्थिक रूप से स्वतंत्र रहती है,

उसे वैचारिक रूप से मज़बूत करती है, बहुत कुछ हैं एक लड़की के लिए जॉब के मायने..

उसे सिर्फ पैसों से मत तोलिये, _ अगर आपके पास बहुत पैसा है _तब भी बेटी को जॉब करने दीजिये

_उसे मज़बूत बनने दीजिये..!!

बस इतना ही फर्क रहा लड़के और लड़कियों में,

_ कि लड़कों ने अपनी आजादी से, किताबें और नौकरी चुनी..

_ और लड़कियों ने अपनी आजादी के लिए, किताबें और नौकरी चुनी..!!

घर आने पर दौड़ कर जो पास आये, उसे कहते हैं बिटिया

थक जाने पर प्यार से जो माथा सहलाए, उसे कहते हैं बिटिया

“कल दिला देंगे” कहने पर जो मान जाये, उसे कहते हैं बिटिया

हर रोज़ समय पर दवा की जो याद दिलाये, उसे कहते हैं बिटिया

घर को मन से फूल सा जो सजाये, उसे कहते हैं बिटिया

सहते हुए भी अपने दुख जो छुपा जाये, उसे कहते हैं बिटिया

दूर जाने पर जो बहुत रुलाये, उसे कहते हैं बिटिया

पति की होकर भी पिता को जो ना भूल पाये, उसे कहते हैं बिटिया

मीलों दूर होकर भी पास होने का जो एहसास दिलाये, उसे कहते हैं बिटिया

“अनमोल हीरा” जो इसीलिए कहलाये, उसे कहते हैं बिटिया.

बहुत “चंचल” बहुत “खुशनुमा ” सी होती है “बेटिया”.

“नाज़ुक” सा “दिल” रखती है “मासूम” सी होती है “बेटिया”.

“बात” बात पर रोती है “नादान” सी होती है “बेटिया”.

“रेहमत” से “भरपूर” “खुदा” की “Nemat” है “बेटिया”.

“घर” महक उठता है जब “मुस्कराती” हैं “बेटिया”.

“अजीब” सी “तकलीफ” होती है, जब “दूसरे” घर जाती है “बेटियां”.

“घर” लगता है सूना सूना “कितना” रुला के “जाती” है “बेटियां”

“ख़ुशी” की “झलक” “बाबुल” की “लाड़ली” होती है “बेटियां”

ये “हम” नहीं “कहते” यह तो “रब ” कहता है.

क़े जब मैं बहुत खुश होता हूँ तो “जनम” लेती है

“प्यारी सी बेटियां”

मैं बिल्कुल ठीक हूँ पापा….

रात के नौ बजते ही नजरें आपकी फोन पे होती हैं,
मम्मी बार- बार पूछती है पर आपको भूख नहीं होती है
हालचाल लेकर हमारा, एक सुकून सा पा जाते हैं
बात हो जाने पर ही आप खाने की टेबल पर जाते हैं
इतना सोचा मत करो पापा, आप मस्ती में जीया करो
मैं बिल्कुल ठीक हूँ पापा, मेरी फ़िकर ना किया करो
मेरे रूम की चादरें हर हफ्ते बदलवाते हो
मेरे खिलौने आज तक आप बड़े प्यार से सजाते हो
मेरे एक मामूली सी शर्ट लाने पर, सारे दोस्तों को बताते हो
ये रंग मेरी बिटिया की पसंद का है
पूरा घर उसी रंग से रंगवाते हो
बस हो गई हमारी पसंद, कभी अपने मन का भी किया करो
मैं बिल्कुल ठीक हूँ पापा, मेरी फ़िकर ना किया करो
मौसम है अब आम का, पता नहीं उसे वहाँ मिला या नहीं
मुझे सब मिल जाता है यहाँ पापा, आप मेरे बिना भी कुछ खाया करो
जब याद आये तो बोला करो, अपनी फीलिंग्स न छुपाया करो
मैं आ जाया करुँगी मिलने पापा, आप बिलकुल न घबराया करो
बिना सोचे जब भी दिल करे, मुझे फ़ोन किया करो
मैं बिल्कुल ठीक हूँ पापा, मेरी फ़िकर ना किया करो
हर तरह का वक़्त ये जिन्दगी मुझे दिखाती है
छोड़ आई वो बचपन ये कह कर मुझे चिढ़ाती है
पर सच बोलूँ पापा, आपका साथ है ये सोचकर
खुद को बेहद खुशनसीब पाती हूँ
कोई कितना भी बड़ा महारथी हो,
आपको देख कर मैं खुद को बड़ा अमीर पाती हूँ
बहुत जी लिया हमारे लिए, थोड़ा अपने लिए भी जीया करो
मैं बिल्कुल ठीक हूँ पापा, मेरी फ़िकर ना किया करो
पता है आज भी चोट लगने पर, मैं पापा- पापा चिल्लाती हूँ
लड़ाई जिससे भी हो, मैं आज भी सबको आपके नाम से धमकाती हूँ
वो हमारे नाम के फिक्स डिपाजिट, कभी अपने लिए भी इस्तेमाल किया करो
मैं बिल्कुल ठीक हूँ पापा, मेरी फ़िकर ना किया करो
सोचा था फादर्स डे है, कुछ लिखूं, चलो बचपन की यादों को संवारती हूँ
फिर लिखने बैठी तब अहसास हुआ, सिर्फ एक दिन_बिलकुल नहीं
मैं आप पर पूरी ज़िंदगी वारती हूँ
वो गाने जो साथ में गाते थे, उन्हें गुनगुनाते रहा करो
मैं बिल्कुल ठीक हूँ पापा, मेरी फ़िकर ना किया करो
मैं बिल्कुल ठीक हूँ पापा….
पापा मुझे छोड़ने स्टेशन आया न करो ,

.. आँसू छिपाते हो फेर कर नज़रे,
..इतना झूठा मुस्कुराया न करो ..
पापा मुझे छोड़ने आया न करो
… किफ़ायत में घर भर की लाइट्स बुझाते,
… सोच कर भी न कितने सामान खरीदते,
.. . माइलेज चेक करते रिजर्व में स्कूटर हमेशा
… और मुझे ए टी एम थमाया न करो …
पापा मुझे छोड़ने स्टेशन आया न करो ।
…पानी की बॉटल रखी या नही,
टिकट कही मैं भूली तो नही,
…पर्स में खुले पैसे रखे या नही
..इतना नम प्यार जताया न करो ..
..पापा मुझे छोड़ने आया न करो ।
सीट के नीचे खुद बैग जमाते,
ध्यान रखना अकेली जा रही,
साथ की किसी महिला को बताते,
मेरी फिक्र में खुद को जलाया न करो
…पापा मुझे छोड़ने आया न करो ।
पहुँचते ही कर देना फोन,
अब कब होगा आना फिर तुम्हारा ,
रूह तक को कर दे जो तन्हा इस तरह
सर पर मेरे उदास हाथ फिराया न करो.
.आप स्टेशन आया न करो ।
मैं खामोश रीती हो जाती हूँ,
देर तक गले लगाया न करो,
देखती रहती हूँ खिड़की से प्लेटफार्म
ग़मगीन खड़े हाथ हिलाया न कर ,.. …
..आप स्टेशन आया न करो ।
चप्पा चप्पा कर देते हो वीरान,
रुन्धा गला बेमतलब बातो में छिपाया न करो,
मेरा आगा पीछा सोच सोच,
अपना कलेजा इतना दुखाया न करो,……
मुझे छोड़ने स्टेशन आया न करो
लो बात करो कह फ़ोन माँ को थमा,
बाद में पूछते हो उनसे ब्यौरा सारा,
नया मोबाइल किस काम का कहकर
हमारे नाम पाई पाई के कागज़ बनवाया न करो….
पापा मुझे छोड़ने आप स्टेशन आया न करो।
“बेटी” बनकर आई हु माँ-बाप के जीवन में,

बसेरा होगा कल मेरा किसी और के आँगन में,

क्यों ये रीत “रब” ने बनाई होगी,

“कहते” है आज नहीं तो कल तू “पराई” होगी,

“देके” जनम “पाल-पोसकर” जिसने हमें बड़ा किया,

और “वक़्त” आया तो उन्ही हाथो ने हमें “विदा” किया,

“टूट” के बिखर जाती है हमारी “ज़िन्दगी ” वही,

पर फिर भी उस “बंधन” में प्यार मिले “ज़रूरी” तो नहीं,

क्यों “रिश्ता” हमारा इतना “अजीब” होता है,

क्या बस यही “बेटियो” का “नसीब” होता है ??

●~~”बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती है पीहर”~~●

~~~~ ..बेटियाँ….पीहर आती है..

..अपनी जड़ों को सींचने के लिए..

..तलाशने आती हैं भाई की खुशियाँ..

..वे ढूँढने आती हैं अपना सलोना बचपन..

..वे रखने आतीं हैं….आँगन में स्नेह का दीपक..

..बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर..

..बेटियाँ….ताबीज बांधने आती हैं दरवाजे पर..

..कि नज़र से बचा रहे घर..

..वे नहाने आती हैं ममता की निर्झरनी में..

..देने आती हैं अपने भीतर से थोड़ा-थोड़ा सबको..

..बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर..

.बेटियाँ….जब भी लौटती हैं ससुराल..

..बहुत सारा वहीं छोड़ जाती हैं..

..तैरती रह जाती हैं….घर भर की नम आँखों में..

..उनकी प्यारी मुस्कान..

..जब भी आती हैं वे, लुटाने ही आती हैं अपना वैभव..

..बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर..

“बिटिया तेरी बहुत याद आयेगी”

बिटिया तेरी बहुत याद आयेगी,

पल पल मुझको रुलायेगी।

घर का कोना कोना तुझे पुकारेगा,

कण कण में तेरा चेहरा मुस्करायेगा।

क्या तूने जादु कर रखा था,

जन जन को मोह रखा था।

तुझे टीका लगाते लगाते, मम्मी की भी,

आँखें डबडबाई थी,

मम्मी की रोके नहीं रुकती रुलाई थी।

तुम माँ बेटी हो या सखी सहेली,

मेंरी समझ में कभी ये बात ना आयी।

किचन का menu तेरा, घर का सबका

Dress code था तुम्हारा,

मम्मी कौन सा पार्लर जायेगी,

पापा कहाँ हेयर कलर करायेंगे,

कौन सी साड़ी, कौन सी बिंदी,

कौन सी क्रीम मम्मी लगायेगी,?

पापा की कैसी ड्रेस आयेगी,

कब कौन सा क्या पहनना है ?

सबमें मर्जी तुम्हारी थी,

मम्मी की सारी जिम्मेदारी,

तेरे ही हवाले थी।

कलेजा मेरा फटता है,

कैसे गुजरेंगे दिन तेरे बिन,

ये सोच कर भी दिल फटता है।

आज है मेहन्दी तुम्हारी,

कल फिर जाने की तैयारी,

परसों तुम्हारा गठबंधन, फिर कन्यादान होगा।

सृष्टि के नियम के मुताबिक,

अपने कलेजे के टुकड़े को फिर,

एक बाप, अपने कलेजे से दूर कर देगा।

अब तेरी यादों का ही सहारा होगा,

हर चीज में अक्स तुम्हारा होगा,

भाई तेरा समय से पहले बड़ा हो गया,

मुझसे गम छुपाता है, मेरे सामने बस,

झूठे ही मुस्कराता है,

मुझे मालूम है उस पर भी पहाड़ टूट रहा है,

ऊपर से हँस रहा अन्दर से वो रो रहा है,

तुझे आशीर्वाद है हमारा,

तेरा जीवन सदा हो उजियारा,

हमेशा हँसती हँसाती रहना,

जिस घर जाओ, मन्दिर कर देना,

बड़ों को आदर, छोटों को प्रेम देना ।।

|| पीके ||

तू क्यों रोती है माँ,

बेटी है पराया धन,

ये तुझे भी पता था, माँ

दूर नहीं, तेरे पास हूँ माँ,

तेरे घर के कण कण में ,

मेरा निवास है माँ,

दूर होती तो कैसे में रोज़,

तुझसे बात कर पाती माँ,

तुम मेरे लिए आँसू ना बहाना,

मना लेना दिल को,

पापा को भी समझाना,

कैसे रो रहे थे लिपट कर,

हम बच्चों से भी

छोटा बच्चा बन कर,

टूट ना जाना, उनको हिम्मत बंधाना,

चिरिया थी तेरे घर की

चहक रही थी कोने कोने में,

मुझको तो उड़ना ही लिखा था,

रब ने मेरी किस्मत में, माँ .

किसने ये रीत बनाई,

प्रीत वही, पर बेटी परायी,

अब ना तुझसे झगड़ा करुँगी,

ना अब रूठी को मनाना, माँ,

स्कूल से लौटने में अब कभी,

देर ना होगी माँ,

कपड़ो के लिए अब ना रूठना ,

अब ना तेरा मनाना होगा माँ,

वो मेरी सारी कास्मेटिक,

जिसके लिए में नीत तुझसे,

लड़ती थी माँ,

अब तुम ही रख लेना,

किसी को न देना, माँ,

अब जब भी मेरी डिश बनाओगी,

तुम खा लेना, पापा और भाई को,

खिला देना माँ,

भाई को देखा माँ,

कैसे भैया बनकर मेरे,

मेरे माथे को चूम लिया,

लगा जैसे मुझको सुखी होने का,

आशीर्वाद दिया,

कितना बड़ा हो गया है,

फिर भी वो बच्चा है,

उसको मना लेना, कलेजे से लगा लेना,

तुमको गम कैसा, माँ,

एक घर से निकल कर,

और एक घर मिल गया,

यहाँ भी पापा का साया,

और माँ का आँचल मिल गया,

वहाँ घर की चिरिया थी,

यहाँ मै बुलबुल हूँ,

सबका आशीर्वाद है माँ,

बहुत ही प्यार करनेवाला,

हमसफ़र साथ है माँ …

..PK

” मै बोझ नहीं हूँ “

शाम हो गई अभी तो घुमने चलो न पापा,

चलते चलते थक गई कंधे पे बिठा लो न पापा,

अंधेरे से डर लगता सीने से लगा लो न पापा,

मम्मी तो सो गई,

आप ही थपकी देकर सुलाओ न पापा,

स्कूल तो पूरी हो गई,

अब कॉलेज जाने दो न पापा,

पाल पोस कर बड़ा किया,

अब जुदा तो मत करो न पापा,

अब डोली में बिठा ही दिया तो,

आंसू तो मत बहाओ न पापा,

आप ने मेरी हर बात मानी,

एक बात और मान जाओ न पापा,

इस धरती पर बोझ नहीं मै,

दुनियाँ को समझाओ न पापा,

” मै बोझ नहीं हूँ “

बेटी के प्यार को कभी आजमाना नहीं

वह फूल है, उसे कभी रुलाना नहीं

पिता का तो गुमान होती है बेटी

जिन्दा होने की पहचान होती है बेटी

उसकी आँखें कभी नम न होने देना

उसकी जिन्दगी से कभी खुशियां कम न होने देना

उंगली पकड़ कर कल जिसको चलाया था तुमने

फ़िर उसको ही डोली में बिठाया था तुमने

बहुत छोटा सा सफर होता है बेटी के साथ

बहुत कम वक्त के लिए वह होती हमारे पास

असीम दुलार पाने की हकदार है बेटी

समझो रब का आशीर्वाद है बेटी

पिता :- कन्यादान नहीं करूंगा जाओ,

मैं नहीं मानता इसे,

क्योंकि मेरी बेटी कोई चीज़ नहीं, जिसको दान में दे दूँ ;

मैं बांधता हूँ बेटी तुम्हें एक पवित्र बंधन में,

पति के साथ मिलकर निभाना तुम,

मैं तुम्हें अलविदा नहीं कह रहा,

आज से तुम्हारे दो घर, जब जी चाहे आना तुम,

जहाँ जा रही हो, खूब प्यार बरसाना तुम,

सब को अपना बनाना तुम, पर कभी भी

न मर मर के जीना, न जी जी के मरना तुम,

तुम अन्नपूर्णा, शक्ति, रति सब तुम,

ज़िंदगी को भरपूर जीना तुम,

न तुम बेचारी, न अबला,

खुद को असहाय कभी न समझना तुम,

मैं दान नहीं कर रहा तुम्हें,

मोहब्बत के एक और बंधन में बाँध रहा हूँ,

उसे बखूबी निभाना तुम ……………..

*एक नयी सोच एक नयी पहल*सभी बेटियां के लिए ;

🌿➖बोये जाते हैं बेटे..

🌿➖पर उग जाती हैं बेटियाँ..

🌿➖खाद पानी बेटों को..

🌿➖पर लहराती हैं बेटियां.

🌿➖स्कूल जाते हैं बेटे..

🌿➖पर पढ़ जाती हैं बेटियां..

🌿➖मेहनत करते हैं बेटे..

🌿➖पर अव्वल आती हैं बेटियां..

🌿➖रुलाते हैं जब खूब बेटे.

🌿➖तब हंसाती हैं बेटियां.

🌿➖नाम करें न करें बेटे..

🌿➖पर नाम कमाती हैं बेटियां..

🌿➖जब दर्द देते हैं बेटे…

🌿➖तब मरहम लगाती हैं बेटियां..

🌿छोड़ जाते हैं जब बेटे..

🌿तो काम आती हैं बेटियां..

🌿आशा रहती है बेटों से.

🌿 पर पूर्ण करती हैं बेटियां..

🌿हजारों फरमाइश से भरे हैं बेटे….

🌿पर समय की नज़ाकत को समझती बेटियां..

🌿बेटी को चांद जैसा मत बनाओ कि हर कोई घूर घूर कर देखे..

📍लेकिन📍 ———————– बेटी को सूरज जैसा बनाओ

ताकि घूरने से पहले सब की नजर झुक जाये..

” बेटियां “

चिड़ियों की झुंड सी चहचहाती हैं ” बेटियां “
पगडंडियों पर नीले पीले आंचल उड़ आती हैं ” बेटियां “
आंगन की तुलसी बनकर घर को महकाती हैं ” बेटियां “
हंसी ठिठोली कर सबका मन बहलाती हैं ” बेटियां “
पायल की रुनझुन सी गुनगुनाती हैं ” बेटियां “
पानी सी निर्मल स्वच्छ नजर आती हैं ” बेटियां “
क्यों देखते हैं दोगली निगाहों से इन्हें जमाने वाले –
किसी भी मकान को घर बनाती हैं ” बेटियां”
कुछ बरस बाद बेटी पराए घर चली जायेगी, _यह सोचकर मातापिता कुछ अधिक दुलार लुटाते हैं बेटी पर..कपड़े खिलौने, खाने पीने की ज़िदें पूरी करते हुए निहाल होते हैं कि _देखो जी हम अपनी बेटी को बहुत प्यार करते हैं,

_यह तो हमारी परी है… पर यह तब तक पापा कि परियां हैं..
_ जबतक उनकी इच्छाएं, आकांक्षाएं कपड़े लत्तों, खिलौनों तक हों..
_करियर हो या विवाह _उसमें इन्होंने ज़िद कि नहीं कि _उनके पर कतर दिए जाते हैं..
— बेटे को सहज स्नेह से पालने वाले माता पिता दया मिश्रित गर्व से बेटियों को पालते हैं कि उनका अहम इससे संतुष्ट होता है,
_ वह कहते हैं कि कल को इसे पराए घर चले जाना है सो इसके लाड़ उठा लो, इसकी ज़िदें पूरी कर दो..
_पर यदि बेटी अपनी ज़िन्दगी का कोई निर्णय स्वयं करना चाहे तो _पल भर में इनका प्यार काफ़ूर हो जाता है..
–इस दुनिया में अपना कहीं घर न होने के दर्द को लड़कियां ताउम्र झेलती हैं,
_मायके में उसकी जाने कितनी इच्छाओं को यह कहकर टाल दिया जाता है कि
_जब अपने घर [ ससुराल ] जाना तब वहां पूरी करना..
_और ससुराल में सुनने को मिलता है कि अपने घर से यही सीखकर आई हो क्या ?
–ज़िन्दगी भर ससुराल में मायके की तारीफ़ और मायके में ससुराल की तारीफ़ करके लड़कियां अपने लिए घर नहीं केवल छत जुटाती हैं…
_वह ससुराल में कभी नहीं बतातीं, _अपने साथ मायके में हुए दुहरे व्यवहार को
_और बरसों बरस ससुराल में हुए अत्याचारों को मायके में छुपाती हैं..
– समय आ गया है कि पापा की परियों को प्यार नहीं अधिकार मांगना चाहिए,
_दिखावे, झूठ और दया भरे जीवन के बजाय खुरदुरा सच स्वीकार करना चाहिए..
_पापा की परी के बजाय एक सामान्य इंसान होने पर ज़ोर देना चाहिए..!!
जब तक पिता जिंदा रहते है, बेटी मायके में हक़ से आती है और घर में भी ज़िद कर लेती है और कोई कुछ कहे तो डट के बोल देती है कि मेरे बाप का घर है.

पर जैसे ही पिता मरता है और बेटी आती है तो वो इतनी चीत्कार करके रोती है कि, सारे रिश्तेदार समझ जाते है कि बेटी आ गई है.

और वो बेटी उस दिन अपनी हिम्मत हार जाती है, क्योंकि उस दिन उसका पिता ही नहीं उसकी वो हिम्मत भी मर जाती हैं.
आपने भी महसूस किया होगा कि पिता की मौत के बाद बेटी कभी अपने भाई- भाभी के घर वो जिद नहीं करती जो अपने पापा के वक्त करती थी,
जो मिला खा लिया, जो दिया पहन लिया _क्योंकि जब तक उसका पिता था _तब तक सब कुछ उसका था _यह बात वो अच्छी तरह से जानती है.
आगे लिखने की हिम्मत नहीं है, बस इतना ही कहना चाहता हूं कि _पिता के लिए बेटी उसकी जिंदगी होती है, पर वो कभी बोलता नहीं, और बेटी के लिए पिता दुनिया की सबसे बड़ी हिम्मत और घमंड होता है, पर बेटी भी यह बात कभी किसी को बोलती नहीं है.
पिता बेटी का प्रेम समुद्र से भी गहरा है.
मैं नहीं सिखा पाऊँगी अपनी बेटी को बर्दाश्त करना एक ऐसे आदमी को जो उसका सम्मान न कर सके.

_ कैसे सिखाए कोई माँ अपनी फूल सी बच्ची को कि पति की मार खाना सौभाग्य की बात है ?
_ मैंने तो सिखाया है कोई एक मारे तो तुम चार मारो.
_ हाँ, मैं बेटी का घर बिगाड़ने वाली बुरी माँ हूँ, …..
….लेकिन नहीं देख पाऊँगी उसको दहेज के लिए बेगुनाह सा लालच की आग में जलते हुए.
_ मैं विदा कर के भूल नहीं पाऊँगी, अक्सर उसका कुशल पूछने आऊँगी.
_ हर अच्छी-बुरी नज़र से, ब्याह के बाद भी उसको बचाऊँगी.
_ बिटिया को मैं विरोध करना सिखाऊँगी..
_ ग़लत मतलब ग़लत होता है, यही बताऊँगी..
_ देवर हो, जेठ हो, या नंदोई, पाक नज़र से देखेगा तभी तक होगा भाई..!!
_ ग़लत नज़र को नोचना सिखाऊँगी, ढाल बनकर उसकी ब्याह के बाद भी खड़ी हो जाऊँगी.“
_ डोली चढ़कर जाना और अर्थी पर आना”, ऐसे कठिन शब्दों के जाल में उसको नहीं फसाऊँगी.
_ बिटिया मेरी पराया धन नहीं, कोई सामान नहीं जिसे गैरों को सौंप कर गंगा नहाऊँगी.
_ अनमोल है वो अनमोल ही रहेगी..
_ रुपए-पैसों से जहाँ इज़्ज़त मिले ऐसे घर में मैं अपनी बेटी नहीं ब्याहुँगी.
_ औरत होना कोई अपराध नहीं, खुल कर साँस लेना मैं अपनी बेटी को सिखाऊँगी.
_ मैं अपनी बेटी को अजनबी नहीं बना पाऊँगी.
_ हर दुःख-दर्द में उसका साथ निभाऊँगी,
_ ज़्यादा से ज़्यादा एक बुरी माँ ही तो कहलाऊँगी.
मां

⚜️⚜️
मां… कितना सिखाया तुमने,
रिश्ते के ताने बाने ,
कैसे बताया तुमने,
घर और जिंदगी को सजाने के सलीके.
क्यों नहीं बताया…
दुनिया तुम्हारी तरह सरल नहीं है.
⚜️
कलम किताबें पकड़ के पढ़ना सिखा दिया,
मुझे अपने कॉलेज का टॉपर बना दिया.
क्यों नहीं बताया लोगों के चेहरे,
फरेबी नजरों को पढ़ने का सलीका.
⚜️
बताना था ना मां..
पलट के जवाब देना भी आना चाहिए.
हमेशा चेहरे पर मुस्कुराहट वाली
संस्कारों की चाबुक क्यों थमा दिया .
⚜️
ये मुझे खुद से भी बगावत नही करने देती.
दुनिया के दोहरे चेहरे नही समझने देती
⚜️
लक्ष्मी सरस्वती बता दिया…
क्यों नहीं बताया??
जिंदगी रण क्षेत्र में कभी-कभी काली भी बनना होगा.
⚜️
बेटी हूं.
बहु हूं.
पत्नी हूं.
सब बहुत अच्छी हूं.
मगर मैं एक इंसान हूं
तकलीफ होती है.
मुझे भी थोड़ा बुरा बना देती.
मुझे भी थोड़ा जीना सिखा देती.
⚜️
संस्कारों की गठरी के साथ..
छोटी सी गठरी बदतमीजी की भी देनी थी ना मां.
तो शायद इतनी आहत ना होती.
तुम्हारी….बेटी.
सुनिए बेटियाँ #स्पेशल नहीं होती हैं।

उनके पास कोई #जादू_की_छड़ी नहीं होती है।
वे #परियाँ नहीं होती हैं।
वे #देवियाँ नहीं होती हैं।
वे रुन-झुन का #संगीत बजाने के लिए नहीं पैदा होती हैं।
वे #घर_छोड़ कर जाने के लिए भी नहीं होती हैं।
वे #दूसरा परिवार #गुलज़ार करने के लिए भी पैदा नहीं होती हैं।
बेटियाँ एकदम #वैसी ही होती हैं जैसे #बेटे
वैसी ही आँखें, वैसे ही हाथ, वैसे ही पैर और वैसा ही मन, वैसी ही #इच्छाएँ
न एक रत्ती कम और न एक रत्ती ज़्यादा।
#ख़ास कहलाने की उनकी कोई इच्छा नहीं होती।
ना ही उन्हें ख़ास बनना है।
उन्हें उतना ही #आम होना है जितना बेटे आपके लिए।
उन्हें उतने ही #अधिकार चाहिए जितना उनका #वाजिबन हक़ है और जितना आप अपने बेटों को हँसते-खेलते दे देते हैं।
बेटियाँ #हीरा नहीं है जिन्हें सहेजे जाने की ज़रूरत है।
वे भी वैसा ही अनगढ़ पत्थर का टुकड़ा हैं जैसे लड़के और जिन्हें अपनी मंज़िल ख़ुद तय करनी है अपने बूते।
बेटियों को ख़ास कहकर उनके हाथ से कमान #छीन लेने की दास्ताँ उतनी ही पुरानी है जितनी औरतों को #देवी कहकर उनकी इच्छाओं को दबा देने की।
इतना कीजिए कि अपना ख़ास वाला प्रेम अपने पास रखिए, बेटियों के लिए बस वही #समान_दृष्टि ले आइये, जिससे बेटों को देखते हैं।
इतना #हासिल हो जाए। बाक़ी दुनिया बराबर #अपने_बूते कर ही लेंगी वे।
पीहर से ससुराल……

पीहर में जन्म से मिल जाता हक़ का प्यार,
ससुराल में हर पल जिसका रहता इंतज़ार।
जहां अपनी पसंद की चीजें ही मिली
अब दूसरों के पसंद का रहता ख्याल
कितना कुछ बदलता है कितना कुछ छूटता है
एक लड़की को शादी कर जब ससुराल जाना होता है।
सुबह जहां मन भर सोने की आदत होती,
वहीं अब थोड़ी देर की न इजाजत होती
जहां आदत थी बात बात पर गुस्साने की ,
आज हो गई बिना बात यूहीं सुनने की
कितना कुछ बदलता है कितना कुछ छूटता है
एक लड़की को शादी कर जब ससुराल जाना होता है।
ख्वाहिशें अपनी सारी धूमिल हो जाती
जब खुद से पहले परिवार की बातें आतीं
अब वहां के इच्छाओं को ही अपना बनाना पड़ता है
उठें न संस्कारों पर खुद को जरा दबाना पड़ता है
कितना कुछ बदलता है कितना कुछ छूटता है
एक लड़की को शादी कर जब ससुराल जाना होता है.
आज बेटी दिवस है :

‘तू क्यों चली गई ?
खिलखिलाता बचपन
मुस्कुराती चितवन
तोड़ नेह का बंधन
तू क्यों चली गई ?’
आँगन की छम-छम
चौके की सिहरन
पूरे घर की धड़कन
तू क्यों चली गई ?’
मेज पर करती पढ़ाई
घर में सबसे लड़ाई
लेकर सबकी बड़ाई
तू क्यों चली गई ?’
सहमी सी मेज
सिसकती कुर्सी
सुबकती किताबें
तू क्यों चली गई ?’
कोने से घूरती
धूल भरी सायकल
भौंचक मोपेड
तू क्यों चली गई ?’
पुरानी चप्पलें
तह लगे कपड़े
चुप आलमारियाँ
तू क्यों चली गई ?’
वो उछलकूद
वो गहमागहमी
वो रूठना मनाना
तू क्यों चली गई ?’
हर बात पे गुस्सा
हर बात से आहत
हर बात की चिन्ता
तू क्यों चली गई ?’
बहना से भिड़ंत
लड़ाई-झगड़े अनंत
इस तरह करके अंत
तू क्यों चली गई ?’
ढूंढती सुबह
बेचैन दोपहर
सवालिया शाम
तू क्यों चली गई ?’
खिड़कियाँ सिसकती
दरवाजे चिहुंकते
परदे फड़कते
तू क्यों चली गई ?’
दरकते फर्श
सूनी दीवारें
उदास गलियारे
तू क्यों चली गई ?’
बेचैन हवाएँ
वीरान सा घर
सिसकता आँगन
तू क्यों चली गई ?’
मुरझाई पत्तियाँ
उदास कलियाँ
हैरान अमियाँ
तू क्यों चली गई ?’
बग़ीचे में बढ़ी तुलसी
मोंगरे की सुगंध सी
फागुन की बयार सी
तू क्यों चली गई ?’
पापा के सखा
मम्मी की सखियाँ
सबकी भीगी अँखियाँ
तू क्यों चली गई ?’
तेरा आना पुरवाई जैसा
तेरा रहना शहनाई जैसा
तेरा जाना रुसवाई जैसा
तू क्यों चली गई ?’
अपने भाई को देख
सूनी कलाई को देख
उसकी रुलाई को देख
तू क्यों चली गई ?’
क्या बस इतना ही साथ
स्वप्न सा छोटा सा साथ
इससे तो न होता साथ
तू क्यों चली गई ?’
अब क्या रह गया इस घर में
मम्मी-पापा के जीवन में
सब कुछ सूना एक पल में
तू क्यों चली गई ?’
– द्वारिकाप्रसाद अग्रवाल

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