तब ख्वाहिशें थम जाती हैं और सुकून की तलाश बढ़ जाती है..!!
चाय बनाकर फिर, कोई बात करते हैं !!
उम्र पचास के पार, हो गई हमारी !
जीवन का, इस्तक़बाल करते हैं !!
कौन आएगा अब, हमको देखने यहां !
एक दूसरे की, देखभाल करते हैं !!
बच्चे हमारी पहुंच से, अब दूर हो गए !
आओ फिर से दोस्तों को, कॉल करते हैं !!
जिंदगी जो बीत गई, सो बीत गई !
बाकी बची में फिर से, प्यार करते हैं !!
ऊपरवाले ने जो भी दिया, लाजवाब दिया !
चलो शुक्रिया उसका, बार बार करते हैं !!
कम बोलो, ज़्यादा सुनो, सामने चल कर किसी को शिछा मत दो,
दिल के ज़ख्म सबको न बताएँ, सबके घर मरहम नहीं होते,
लेकिन नमक सब के घर होता है…
सुकी रोटी भी प्रेम से खाएँ, करोड़ों लोगों को वो भी नसीब नहीं होती,
करकसर से जीओ __ करकसर इंसान को मज़बूत बना देती है..
अकेले जीना सीख लो, अब जोड़ी कभी भी टूट सकती है..
किताबें पढ़ने का शौक रखो, वो अंत तक साथ देंगी…
छाती पर पत्थर रखकर जीना सीख लो,
ज़िन्दगी की आपाधापी में, कब निकली उम्र हमारी, यारों
पता ही नहीं चला.
कंधे पर चढ़ने वाले बच्चे, कब कंधे तक आ गए,
पता ही नहीं चला.
किराये के घर से शुरू हुआ था सफर अपना
कब अपने घर तक आ गए,
पता ही नहीं चला.
साइकिल के पैडल मारते हुए, हांफते थे उस वक़्त,
कब से हम, कारों में घूमने लगे हैं,
पता ही नहीं चला.
कभी थे जिम्मेदारी हम माँ बाप की,
कब बच्चों के लिए हुए जिम्मेदार हम,
पता ही नहीं चला.
एक दौर था जब दिन में भी बेखबर सो जाते थे,
कब रातों की उड़ गई नींद,
पता ही नहीं चला.
जिन काले घने बालों पर इतराते थे कभी हम,
कब सफेद होना शुरू कर दिया,
पता ही नहीं चला.
दर दर भटके थे, नौकरी की खातिर,
कब रिटायर होने का समय आ गया,
पता ही नहीं चला.
बच्चों के लिए कमाने, बचाने में
इतने मशगूल हुए हम,
कब बच्चे हमसे हुए दूर,
पता ही नहीं चला.
भरे पूरे परिवार से, सीना चौड़ा रखते थे हम,
अपने भाई बहनों पर गुमान था,
उन सब का साथ छूट गया,
कब परिवार हमीं दो पर सिमट गया,
पता ही नहीं चला.
अब सोच रहे थे, अपने लिए भी कुछ करें,
पर शरीर ने साथ ही देना बंद कर दिया,
पता ही नहीं चला !!!!
समय चला, पर कैसे चला…पता ही नहीं चला…
बिस्तरों पर अब सलवटें नहीं पड़ती
ना ही इधर उधर छितराए हुए कपड़े हैं
रिमोट के लिए भी अब झगड़ा नहीं होता
ना ही खाने की नई नई फरमाइशें हैं
मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं और हम अकेले हो गए हैं.
सुबह जल्दी उठने के लिए भी नहीं होती मारा मारी
घर बहुत बड़ा और सुंदर दिखता है
पर हर कमरा बेजान सा लगता है
अब तो वक़्त काटे भी नहीं कटता
बचपन की यादें कुछ दिवार पर फ़ोटो में सिमट गयी है
मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं और हम अकेले हो गए हैं.
अब मेरे गले से कोई नहीं लटकता
ना ही घोड़ा बनने की ज़िद होती है
खाना खिलाने को अब चिड़िया नहीं उड़ती
खाना खिलाने के बाद की तसल्ली भी अब नहीं मिलती
ना ही रोज की बहसों और तर्कों का संसार है
ना अब झगड़ों को निपटाने का मजा है
ना ही बात बेबात गालों पर मिलता दुलार
बजट की खींच तान भी अब नहीं है
मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं और हम अकेले हो गए हैं.
पलक झपकते ही जीवन का स्वर्ण काल निकल गया
पता ही नहीं चला
इतना ख़ूबसूरत अहसास कब पिघल गया
तोतली सी आवाज़ में हर पल उत्साह था
पल में हँसना पल में रो देना
बेसाख़्ता गालों पर उमड़ता प्यार था
कंधे पर थपकी और गोद में सो जाना
सीने पर लिटाकर वो लोरी सुनाना
बार बार उठ कर रज़ाई को उढ़ाना
अब तो बिस्तर बहुत बड़ा हो गया है
मेरे बच्चों का प्यारा बचपन कहीं खो गया है
अब कोई जुराबे इधर उधर नहीं फेंकता है..
अब fridge भी घर की तरह खाली रहता है
बाथरूम भी सूखा रहता है
Kitchen हर दम सिमटा रहता है
अब हर घंटी पर लगता है कि शायद कोई surprise है
और बच्चों की कोई नयी फरमाईश है
अब तो रोज मेरी सेहत फोन पर पूछते हैं
मुझे अब आराम की हिदायत देते हैं
पहले हम उनके झगड़े निपटाते थे
आज वे हमें समझाते हैं
लगता है अब शायद हम बच्चे हो गए हैं
मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं और हम अकेले हो गए हैं.
पच्चपन, साठ की उम्र वालो आपको सलाम
सुन लो मेरा ये पैग़ाम ।
बहुत मज़े से कटेगी बाक़ी की ज़िंदगानी,
बहुओं के संग समझौता करना सीख लो।
छोटे – बड़ें सब को मन की करने दो,
मत टोको जो करते है, करने दो।
कम बोलो, ख़ूब सुनो,
कभी सिखाने की कोशिश मत करो,
अपने काम स्वयं करना सीख लो ।
दिल पर पत्थर रखकर, सब नज़ारा देखते रहो ,
मौन रहना सीख लो।
अाप को जानो, आप पहचानो
अपने लिये जीना सीख लो।
नाती पोतो के संग बहुओं के मिज़ाज देखकर प्यार करो,
ज्ञान देने की कोशिश कदापि न करो ।
अपने लिये जीना सीख लो
दिल के ज़ख़्म छुपाकर रखना
कभी बताने की कोशिश मत करना !
मलहम की चाह मे नून छिड़का जायेगा,
पछतावा हो वह काम नही है करना,
रुखी सूखी जो मिल जायें प्रेम से खाकर तृप्त रहो !
बहुतों के नसीब तो घर भी नही,
वृद्धा आश्रम में है रहते, जैसे तैसे समय बीताते,
अपने के संग के लिए हसरतें मन में रख परलोक सिधार जाते,
जो मिला है उस में खुश रहना सीख लो !
अच्छे दोस्तों के साथ समय बिताना सीख लो !
थोड़ा है थोड़े में गुज़ारा करना सीख लो !
अब नही आपके पुराने दिन यह अच्छे से समझ लो !
जीवन साथी आपका है, उसकी क़दर करना सीख लो,
वही अंत तक निभायेगा, प्यार का रिंश्ता सच्चा रिश्ता
बाक़ी रिश्ते मतलब के है यह अच्छे से जान लो !
अपने आप को जानो, अपने को पहचानो, अपने आप मे रहना सींख लो !
कुछ किताबे पढ़ना सीख लो, कुछ लेखन से दिल लगाना सीख लो ।
ख़ाली वक्त के साथी है, ख़ूब प्यार तुम्हें दे जायेंगे,
नया नया ज्ञान भी मिलता रहेगा,
न शिकवा न शिकायत तुम्हें तुम्हारी तरह ही चाहेगी
उनसे दिल लगाना सीख लो।
अंत समय आयेगा कौन किसके पहले जायेगा,
यह बात किसी को नही है पता।
एक दिन अकेले रहने की तैयारी कर लो,
जीवन साथी फुर्र से उड़ जायेगा,
तेरे हाथ कुछ न आयेगा !
जीवन सूना हो जायेगा, कुछ सिमरण रब का कर लो साथ यही जायेगा,
बाक़ी सब मोह माया है, ख़ाली हाथ जाना है ।
पच्चपन, साठ के उम्र वालो अपने लिये जीना सीख लो।
दिल के ज़ख़्मों को, दिल में छिपाना सीख लो,
जिदगीं से समझौता करना सीख लो।
मैं उम्मीद करता हूं कि हम में से बहुत से लोगों की जिंदगी उपरोक्त वर्णन से काफी बेहतर होगी, फिर भी अगर इन बातों को माना जाएगा तो परिणाम अच्छे ही आएंगे.