क्यूँ जीते हो आप ऐसी ज़िन्दगी, जिस से हो जाये लोन- क़र्ज़.!
_ जितनी कमाई उतना खर्च, ये हुनर सीख लो ना..,
_ लेकर लोन, अन्जाने में घोट रहा, अपना गला तो नहीं..,
_ बेवजह दुनियाँ को दिखाने के लिए, क्यूँ जरूरतें बढाता है..,
_ जितना कुछ है तेरे पास, क्यूँ उसी में खुश नहीं रह पाता है..,
_ क्यूँ जरूरतें हो जाती है, जिन्दगी पर फिर सवार॥
_ अगर नहीं है सब्जी तेरे घर में, तो नमक से रोटी खा ले..,
_ अगर जरूरतें पूरी करनी है तुझे, तो मेहनत कर कर कमा ले..,
_ क्यूँ जीते हो आप ऐसी ज़िन्दगी, जिस से हो जाये लोन- क़र्ज़..!!