मौन का अर्थ है वाणी की पूर्ण शान्ति.
_ मौन का अर्थ केवल चुप रहना नहीं है.
_ मौन एक गहरी साधना है, जिसके माध्यम से मनुष्य अपने भीतर की परतों को हटाकर अपने वास्तविक स्व रूप का परिचय प्राप्त करता है.
_मौन अपने भीतर के सौन्दर्य और गहराई को निहारने की एक अनूठी प्रक्रिया है.
_ वाणी ही एक ऐसा माध्यम है जिससे मनुष्य अपने आप को संसार से योग करके रखता है.
_ जितना ही वह संसार में लिप्त होता है उतना ही वह स्वयं से दूर हटने लगता है.
_ ज्यों ही हम वाणी को विराम देते है, अहिस्ता -अहिस्ता अपने ही समीप पहुँचने लगते हैं और अपनी पहचान प्राप्त करते हैं.
_ मौन में वह शक्ति है जो प्राणों की ऊर्जा के अपव्यय का समापन करती है.
_ मनुष्य अपनी प्रचण्ड ऊर्जा को अनर्गल बोलकर शब्दों के माध्यम से ह्रास कराता है.
_ इसी ऊर्जा को मौन धारण करके एकत्रित किया जा सकता है.
— नब्बे प्रतिशत मुसीबतें संसार से कम हो जायें, यदि लोग थोडा कम बोलें,
_ लेकिन होता यह है कि मनुष अपने भीतर बैठे हर मनोविकार को वाणी के द्वारा बाहर प्रवाहित करता है और तदनुरूप अपने परिवेश का सृजन कर लेता है.
_ जो विषम परिस्थिति जिह्वा उत्पन्न कर सकती है, वैसा तलवार के माध्यम से भी होना कठिन है.
_ जिह्वा द्वारा दिया गया घाव कभी नहीं भरता..
_ आध्यत्मिक जीवन में जिसने भी ऊँचाइयों को छुआ है, उसने मौन का सहारा अवश्य लिया है.
_ महावीर स्वामी ने बारह वर्ष तक मौन रखा और गौतम बुद्ध ने छ:वर्ष तक, जिसके पश्चात उनकी वाणी दिव्य हो गई.
_ हमारे मन में हर पल विचारों का मेला लगा रहता है.
_ हर क्षण एक नये विचार का उदय होता है.
_ ऐसी स्थिति में मौन का पूरा लाभ नहीं लिया जा सकता.
_ बाहर के साथ-साथ अन्दर से मौन रहना कहीं अधिक आवश्यक है.
— इसलिये संसार के कुतूहल से जब मन अत्यधिक विचलित हो जाये,
_ तो प्रयास करना चाहिए कि लोगों के भीड से दूर प्रकृति के बीच में जाकर बैठे.
_ हर समय प्रकृति एक नया सन्देश देती है.
_ उसके कण कण में एक दिव्य संगीत की धुन सुनाई देती है.
_ जितना ही हम भीतर से शान्त होते जाते है, उतना ही हम प्रकृति के हर शब्द को अपने भीतर अनुभव करते हैँ.
_ भ्रमरों के गुंजार में हमें अनन्त की ध्वनि सुनाई देने लगती है.
_ डालों पर बैठे पक्षियों के चहचहाने में हमें राग दीपक या भैरवी के स्वरों का आभास होता है.
_ प्रकृति को यदि समझना है तो अपने भीतर के सुनहरे मौन को जाग्रत करना आवश्यक है.
— मौन वास्तव में वह संजीवनी शक्ति है जिससे व्यक्ति के प्राणों की ऊर्जा का पुन:विकास एवं उत्थान होता है.
_ नित्यप्रति तीन या चार घंटे का मौन रखना अत्यन्त लाभदायक है.
_ मौन के निरन्तर अभ्यास से वाणी पवित्र होने लगती है और उसमें सत्यता जाग्रत होती है.
_ ऐसा व्यक्ति वाणी से जो भी बोलता है, वह सच होने लगता है.
_ उसके व्यक्तित्व में गंभीरता आने लगती है और मन एकाग्रता की ओर वढता है.
— मौन जब पूर्ण रूप से सिद्ध हो जाये तो मन का लय हो जाता है जैसे कोई विचार है ही नहीं है.
_ क्या आपने शान्त सागर को ध्यान से देखा है ?
_ उसमें कभी कोई लहरे नहीं उठती.
_ वह एक रस में बहता चला जाता है.
_ मौन में लहरों की भांति उठने वाले विचार विलीन हो जाते हैं.
_ व्यक्ति को अहसास होता है कि जो ‘मै’ था वह केवल जड की अनुभूति थी.
_ अब मैं एक चेतना का सागर हूँ,
_ परिपूर्ण मौन शान्ति के जल में मन की आहूति है.
‘मौन शान्ति का सन्देश है’
___ यह स्वयं को रब से जुडने का सबसे सरल उपाय है.
_ इसलिए जहाँ भी आप हों जो भी आप कार्य करतें हों,
_ प्रयास कीजिये कि अपने व्यस्त दिनचर्या में से कुछ क्षण निकालकर संकल्पबद्ध होकर मौन में उतरकर परम शान्ति का अनुभव करें.