सुविचार – खामोशी – खामोश – 007

हौसला कम न होगा, तेरा तूफानों के सामने. _ मेहनत को इबादत में, बदल कर तो देख.

खुद ब खुद हल होंगी, ज़िन्दगी की मुश्किलें. _ बस खामोशी को सवालों में, बदल कर तो देख.

” ख़ामोश ” हो जाने का मतलब ” दब जाना ” या ” डर जाना ” नहीं होता,

बल्कि ” कुछ लोग ” हमारी प्रतिक्रिया के योग्य भी नहीं होते..

कुछ लोगों को लगता है उनकी चालाकियाँ मुझे समझ नहीं आती,

मैं बड़ी खामोशी से देखता हूँ…उनको अपनी नजरों से गिरते हुए.

लफ़्ज़ों के बोझ से थक जाती है…’ज़ुबान’ कभी कभी…

_ पता नहीं खामोशी …’मज़बूरी’ है.. या समझदारी…!!

मुँह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन …

_ आवाज़ों के बाज़ारों में खामोशी पहचाने कौन ..!

असलियत तो ख़ामोशी बयां करती है, _

_ अक्सर इंसानों को देख कर अल्फाजों को बदलते देखा है..

ख़ामोशी का मतलब लिहाज़ भी हो सकता है,

_ इसे किसी की कमज़ोरी समझने की भूल ना करें.

दस्तक और आवाज़ तो कानों के लिए है _

_ जो दिल को सुनाई दे, उसे ख़ामोशी कहते हैं !!!

ख़ामोशी में बड़ी राहत है, _

_ लफ़्ज़ों का सफर इंसान को थका देता है ..

जुबान बोले न भी बोले, तो मुश्किल नहीं,_

_ मुश्किलें तब होती हैं, जब खामोशी, भी बोलना छोड़ दे…

कुछ ही देर की खामोशी है…. फिर कानों में शोर आएगा…

तुम्हारा तो सिर्फ वक्त है…. हमारा दौर आएगा..

मोहब्बत में नुमाइश की ज़रूरत नही होती……

ये वो ज़ज़्बा है जिसमे ख़ामोशी भी गुनगुनाती है……..

मेरी खामोशी से उसे कभी कोई फर्क नहीं पड़ता,

शिकायत में दो लफ़्ज कह दूं तो चुभ जाते हैं…..!!

मेरे रूठ जाने से अब उनको फर्क नहीं पड़ता,

बैचेन कर देती थी, कभी जिनको खामोशी मेरी.

रुतबा तो खामोशियों का होता है ; अल्फ़ाज़ों का क्या है,

वो तो मुकर जाते हैं हालात देख कर..

ख़ामोशी ख़ुद अपनी ज़ुबाँ हो, ऐसा भी हो सकता है ;

सन्नाटा ही गूंज रहा हो, ऐसा भी हो सकता है.

एक नया व्यापार करता हूं ;

_ ख़ामोशी बेच कर _ सकून खरीदता हूं ..

बेवकूफ की सब से बड़ी अक्लमंदी ख़ामोशी है. _

_ अक्लमंद का ज्यादा देर तक खामोश रहना बेवकूफी है…

जितना हो सके ख़ामोश रहना ही अच्छा है, _

_ क्योंकि सबसे ज़्यादा गुनाह इंसान से जुबान ही करवाती है….

हम पर लगे इल्ज़ामों के, जवाब तो बहुत थे ! _

_ मगर खत्म हुए किस्सों की, हमें ख़ामोशी ही बेहतर लगी !!

अच्छी लगने लगी है ये ख़ामोशियाँ भी, _

_ अब हर किसी को जवाब देने का सिलसिला ख़त्म हो गया..!

कुछ दर्द ऐसे भी होते हैं, _जिन्हे बयान करने के लिए शब्द नहीं, _

_ बस एक खामोशी ही काफी होती है.

अपने खिलाफ बातें मैं अक्सर ख़ामोशी से सुनता हूँ. _

_ जवाब देने का हक मैंने वक्त को दे रखा है….

जब गिला शिकवा अपनों से हो तो ख़ामोशी भली, _

_ अब हर बात पर जंग हो जरूरी तो नहीं !!!!

चुप थे तो चल रही थी जिंदगी लाजवाब… _

_ खामोशियाँ बोलने लगीं…तो बवाल हो गया…!!

खामोशी की तह में छुपा लो सारी उलझनें, _

_ शोर कभी मुश्किलों को आसान नहीं करता….!!

रिश्तों में शिकायते कर के क्यों घटाया जाए रूतबा अपना;

_ करने दीजिए खामोशियों को खामोशी से काम अपना !!

खामोशियाँ इस कदर बढ़ गयी है की, अब जाने पहचाने लोग भी ..!!_

_ अनजाने से लगते हैं …!!

वक़्त रहते सीख ले ख़ामोश रहने का फ़न, _ एक दिन वरना जुबां की ज़द में सर आ जायेगा.
लाखों हैं मेरे अल्फाज के दीवाने, _

_ मेरी खामोशी सुनने वाला कोई होता तो क्या बात होती.

मेरी खामोशी हज़ारों जवाबों से बेहतर है, _

_ क्योंकि ये अनगिनत सवालों की इज्जत रखती है.

खामोशी को हमेशा दर्द से जोड़ कर ना देखो, _

_ खामोशी सुकून का दूसरा रूप भी होती है.

हम अपने आसपास चहकते-खिलखिलाते लोगों की ख़ामोशी को नोटिस क्यों नहीं करते…
खामोशियों में रहने का शौक नहीं ! कुछ ऐसी वजह होती !! जो खामोश कर देती है ..!!!
बेवजह शोर मचाने से सुर्खियां नहीं मिलती, _ कर्म करो ख़ामोशी भी अखबारों में छपेगी.
आवाज़ की पहुंच तो बस होती है कान तक, ख़ामोशी पहुंच जाती है दूर आसमान तक..
ख़ामोशी में चाहे जितना बेगानापन हो, _ लेकिन इक आहट जानी-पहचानी होती है…
मेरी ख़ामोशी को मेरी हार मत समझना, _ मैं कुछ फैसले ऊपर वाले पर छोड़ देता हूँ..
*खामोशी से बनाते रहो पहचान अपनी* __ *हवाएँ ख़ुद गुनगुनाएँगी नाम तुम्हारा*..
कुछ बातों का जवाब सिर्फ ख़ामोशी होती है और ख़ामोशी बहुत ख़ूबसूरत जवाब है !
खामोशी का मतलब लिहाज भी होता है, पर कुछ लोग इसे कमजोरी समझ लेते हैं !!
लोग कहते हैं ज्यादा बोलता नहीं मैं, _ पर कहूं ऐसा क्या जो खामोशी से बेहतर हो.
खामोशियाँ भी सुनाई पड़ती है साहब _ बस कान से नहीं दिल से सुनकर देखिये..!!
खामोशी इतनी गहरी होनी चाहिए कि _ बेकद्री करने वालों की चीखें निकल पड़े !!

हजार जवाबों से अच्छी है खामोशी, _ ना जाने कितने सवालों की आबरू रखती है.

रुतबा तो.. ख़ामोशीयों का होता है, _ अलफ़ाज़ तो बदल जाते हैं लोग देखकर.
खामोशी ….कभी खाली नहीं होती _ यह ढेरों जवाबों से लबालब होती है…..!!
जितना ही खामोश रह सकोगे, _ उतना ही तुम सुनने में ज्यादा सछम हो सकोगे.
खामोश जिंदगी जो बसर कर रहे हैं हम, _ गहरे समुन्द्रों में सफर कर रहे हैं हम…
खामोशी का अपना अलग ही मजा है, _ पेड़ों की जड़े फड़फड़ाया नही करती.!
जिन्हें बात करने का सलीका होता है, _ उन्हें खामोशिया ज्यादा पसंद होती हैं.
कोई सुनता नहीं किसी की यहाँ _ अपना खामोश रहना ही बेहतर है यहाँ_.!
जब कोई आपकी बात का यकीन ना करे, तो खामोश रहना बेहतर है..
ख़ामोशी बहुत कुछ कहती है, _ कान लगाकर नहीं, दिल लगाकर सुनो !!
छोड़ दिया सबसे बात करना, _अब खामोश रहना ही अच्छा लगता है…
जिन्हे वाकई बात करना आता है, _ वो लोग अक्सर ख़ामोश रहते हैं…
सम्मान कीजिए हमारी ख़ामोशी का, ..आपकी औकात छुपाए बैठे हैं.!!
मेरी ख़ामोशी एक दिन शोर… मचाएगी _ आज अकेला हूँ तो क्या…
जिन्हें एक बार खामोशियाँ रास आ जाएँ, फिर वे बोला नहीं करते !!
ये जो तुम मुझ में ख़ामोशी देख रहे हो, दरअसल ये मेरा सुकून है.
मेहनत इतनी खामोशी से करो की _ कामयाबी शोर मचा दे…..
बढ़ती हुई समझदारी, _ जीवन को मौन की तरफ ले जाती है.!!
खामोशियां जिसे अच्छी लग जाएं, वो फ़िर बोला नहीं करते.!!
उनकी खामोशी बता रही है कि … अब उनको बात नहीं करनी !
लफ्ज़ अब बड़े महँगे हो गए, आओ ख़ामोशी का सौदा करें…
खामोशी जरा देर से सुनाई देती है, लेकिन असरदार होती है..
कभी- कभी खामोशी से बेहतर, और कोई जवाब नहीं होता.
शोर की तो उम्र होती है, _ खामोशी तो सदाबहार होती है..
खामोशी की चीख़… चिल्लाने से भी अधिक होती है….!!!
ख़ामोशी तुम समझ नहीं रहे, _ अल्फ़ाज़ अब बचे नहीं.
एक शोर है मुझमें, _ जो खामोश बहुत है..

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