सुविचार – मौन – चुप – 006 *

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मौन, हाँ, लेकिन कैसा मौन ! क्योंकि मौन रहना तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन व्यक्ति को यह भी विचार करना होगा कि वह किस प्रकार का मौन रखता है.

Silence, yes, but what silence! For it is all very fine to keep silence, but one has also to consider the kind of silence one keeps. – Samuel Beckett

मौन को उसकी ताकत के साथ अपनाएं, अपनी कमजोरी न बनने दें. उसे इस तरह न अपनाएं कि वह आपको दीमक की तरह भीतर ही भीतर खाने लगे और भावनात्मक रूप से खोखला कर दे.

बेवजह के टकराव से बचने के लिए चुप्पी एक सटीक तरीका है, लेकिन अगर कोई आप पर प्रहार कर रहा हो, तो उस पर चुप रहने को समझदारी नहीं माना जाएगा. इसलिए मौन को कमजोरी कतई न बनने दें.

मौन में बड़ी ताकत होती है इसलिए हमें मौन ही रहना चाहिए और जहां हमें बोलने की आवश्यकता न हो, वहां तो विशेष रूप से चुप रहना ही बेहतर होता है. और वैसे भी ज़िन्दगी में कई ऐसे मोड़ आते हैं, जब हमें मौन रहना ही पड़ता है. जब हम मौन रहते हैं तो अपनी क्षमता से अधिक सोच सकते हैं, जिससे न होने वाले काम भी आसानी से हो जाते हैं.

चुप रहना एक ऐसी शक्ति है, जो हमें किसी भी बात को गहराई से समझने की एवं काम करने की ऊर्जा प्रदान करती है. मौन रहने से हमारा मस्तिष्क ज़्यादा काम करता है और हम सही समय पर सही निर्णय लेने में भी सफल होते हैं. जितना हम स्वयं को मौन रख पाते हैं उतना ही हमारा दिल अंदर से अपने को खुश महसूस करता है और यह ख़ुशी ही हमारे जीवन की वास्तविक ख़ुशी होती है.
किसी भी विवादित स्थान पर चुप रहना हमें विजय दिला सकता है बशर्ते हम मौन रहें. यह हमारी मनोवैज्ञानिक शक्तियों को भी मजबूत करता है. मौन हमारे कार्य में एकाग्रता लाता है जिसकी वजह से हम अधिक सोच पाते है. इसलिए हमें अधिक से अधिक मौन रहने का संकल्प लेना चाहिए तथा आवश्यक हो तभी बात करनी चाहिए.
इस दुनिया में वही व्यक्ति सबसे अधिक सुखी और समृद्ध है, जो क्रोध आने पर भी स्वयं को मौन रखता है. हालांकि मौन रहना कोई आसान कार्य नहीं है, इसके लिए भी साहस और धैर्य की आवश्यकता होती है. यदि हम यही सीख लें कि कब और कहां मौन रहना है, तो हमारे जीवन की आधी समस्याएं स्वतः ही खत्म हो सकती हैं.
जो आदमी मौन रहने में असमर्थ है, उसे जानना चाहिए कि उसके भीतर कुछ न कुछ पागलपन है ;

जो आदमी बिना बात किए रहने में असमर्थ है, जानना चाहिए, उसके भीतर कोई रोग है ;

सारी दुनिया बात कर रही है, सुबह से शाम तक बात कर रही है,

कौन सी बातें हैं ? शायद हमने कभी खयाल भी न किया हो कि कौन सी बातें कर रहे हैं ! – ओशो

बोलना कम करो, ज्यादा बोलने से एनर्जी और दिमाग दोनों खराब होते हैं,_

_ कोई आप को शांति नहीं दे सकता _ सिवाय आप के दिमाग के..

क्या बोलना है इंसान को ये भले न पता हो,_ लेकिन ये अच्छे से पता होना चाहिए कि क्या नहीं बोलना है.

अफ़सोस ये कि ज्यादातर लोगों ने चुप रहना नहीं सीखा है ; _हर मामले में बोला नहीं जाता है.

शायद चुप्पी हमें अपनी आंतरिक आवाज सुनने को मजबूर करती है, _जिससे हममें से ज्यादातर लोग डरते हैं _और इसलिए हम शोर को अपनाना पसंद करते हैं.

“शांत समय वास्तव में हमारे स्वास्थ्य और विवेक के लिए महत्वपूर्ण है.”

लोग बहुत बोलते हैं.

यहां खूबसूरत पेड़ हैं, पहाड़ हैं, जंगलों का सन्नाटा है, पक्षियों की आवाजें हैं, धरती की फुसफुसाहट है और उनकी अपनी आवाज है.

लेकिन लोग इतना बोलते हैं. मैं चाहता हूं कि एक बार लोग मौन में चल सकें और एक बार इस जादू को महसूस कर सकें.

People speak a lot.

There are beautiful trees, mountains, the silence of forests, the voices of birds, the whisper of earth, and their own voice. But people speak so much. I wish for once people can walk in silence and feel the magic for once.

एक बार जब आप परिपक्व हो जाते हैं तो आपको एहसास होता है कि किसी बात को साबित करने की तुलना में चुप्पी अधिक शक्तिशाली है.

Once you mature you realize that silence is more powerful than proving a point.

व्यक्ति शब्दों के जाल में फंसा हुआ है. वह दूसरों को भी इस जाल में फंसाने की कोशिश करता है. वह अपना बहुमूल्य समय व्यर्थ की बातों को सोच कर नष्ट कर देता है. किसने किससे क्या कहा ? किस बारे में कहा ? ऐसा क्यों कहा होगा ? आदि. आपको ध्यान रखना है कि आप स्वयं को इस प्रकार की उलझनों से दूर रखें. अपनी ऊर्जा का उपयोग अनावश्यक बातों अथवा वार्तालाप में न गंवाएं. स्वयं को मौन में जाने का अवसर दें. उतना ही बोलें जितने की जरुरत हो. मौन की गहराई ही आपको सही और गलत को पहचानने में मदद करेगी.
ख़ामोशी की ताकत से अनभिज्ञ हम एक वाचाल दुनिया में रहते हैं. बहुत से लोग खामोशी को अकेलेपन और बोरियत से जोड़ कर देखते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि हम अगर दूसरों की नकारात्मकता को लेना नहीं चाहते, तो चुप रहना ही सबसे सही नीति है. दिन में कम- से- कम कुछ देर अपनी खामोशी के साथ रह कर देखें, बेवजह बोलते रहने से बचें, क्रोध के छणों में चुप रहें, आपको कुछ समय बाद जिन्दगी में कई तरह के सकारात्मक बदलाव दिखाई देंगे.
आप बोल कर भी कई बार सामने वाले व्यक्ति को अपनी बात नहीं समझा पाते. लिख कर बताना भी जब असफल रहता है तब मौन रहने का विकल्प बचता है और अक्सर खामोशी कारगर जरिया साबित होती है. आप चुप रह कर समय देते हैं लोगों को आपकी बात समझ पाने का.
जिसने मौन को साध लिया, उसने धैर्य को पा लिया. बोलने से जीवन की कई मुश्किलें हल हो जाती हैं, मन भी हल्का हो जाता है. लेकिन बिना सोचे- समझे जल्दीबाजी में बोल कर प्रतिक्रिया दे देना उग्रता की निशानी है. अगर आप ऐसी स्थितियों से खामोशी से गुजर जाने की कला सीख जाते हैं, तो आप अपने भीतर धैर्य का गुण विकसित कर पाएंगे, जो कि आपकी जिन्दगी में बहुत काम आएगा.
हम सुबह जागते ही एक शोर भरी दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं. घर में सब बोलना शुरू कर देते हैं, टीवी या रेडियो चल पड़ता है, घर से निकलते ही वाहनों के शोर से घिर जाते हैं. इस शोर से हमारी सोचने की छमता प्रभावित ही नहीं होती, कई बार खत्म भी होने लगती है और नये विचारों के आने का क्रम टूट जाता है. अगर आप अपनी दिनचर्या में से थोड़ा सा वक़्त नीरवता के साथ बिताते हैं, तो आपका मौन आपको नये विचारों तक ले जाएगा.
कम से कम बोलें—इतना कम, जितना जरूरी हो— टेलीग्रैफिक। जैसे तारघर में टेलीग्राम करने जाते हैं तो देख लेते हैं कि अब दस अक्षर से ज्यादा नहीं। अब तो आठ से भी ज्यादा नहीं। तो एक दो अक्षर और काट देते हैं, आठ पर बिठा देते हैं। तो टेलीग्रैफिक! खयाल रखें कि एक—एक शब्द की कीमत चुकानी पड़ रही है। इसलिए एक—एक शब्द बहुत महंगा है; सच में महंगा है। इसलिए कम से कम शब्द का उपयोग करें; जो बिलकुल मौन न रह सकें वे कम से कम शब्द का उपयोग करें।
परिपक्वता मौन की ओर ले जाती है… जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है हम मितभाषी बनते जाते हैं.. हम बाहरी भावों को नियंत्रण करना सीख लेते हैं… किसी भी बात का फर्क पड़ना बन्द हो जाता है… आँसुओ को पीने लगते हैं, सामयिक लोगों को अपनी जिंदगी से दूर फेंक देते है और सुकून की तलाश में रहते हैं.
खयाल रखें कि एक एक शब्द की कीमत चुकानी पड़ रही है, इसलिए एक एक शब्द बहुत महंगा है ;

इसलिए कम से कम शब्दों का उपयोग करें ; जो बिलकुल मौन न रह सकें, वे कम से कम शब्दों का उपयोग करें.

“लोगों को तर्क से कभी मत जीतो, बल्कि अपनी चुप्पी से उन्हें हराओ… क्योंकि जो लोग

हमेशा आपसे बहस करना चाहते हैं, वे आपकी चुप्पी बर्दाश्त नहीं कर सकते…”चुप रहो, समझदार बनो”

चुप्पी हमेशा कायरता नहीं होती है. यह तो भावनाओं की भाषा होती है, जो आप शब्दों से नहीं बोल सकते, वह आप अपने मौन से बोल सकते हैं.

वैसे भी जब मौन बोलता है, तो उसकी आवाज भले ही देर में सुनायी दे, पर बहुत दूर तक सुनायी देती है.

इतना मत बोलिए, की लोग चुप होने का इंतजार करें,_ बल्कि इतना बोल कर चुप हो जाइए की लोग आपके दोबारा बोलने का इंतज़ार करें..
जरुरत से ज्यादा बोलने वालों के साथ _ जरुरत से कम सम्बन्ध रखना ही उचित समझदारी है..!!
आप जितना कम बात करेंगे, लोग आपकी बातों के बारे में उतना ही अधिक सोचेंगे.

The less you talk the more people think about your words.

मौन का अर्थ यह नहीं होता की हम केवल बाहरी दिखावे के लिए चुप रहें..

..हमे अंतर्मन को भी खामोश करना पड़ता है…!!!

“मुंह से कुछ ना बोलना ही मौन नहीं है,

भीतर से भी कुछ ना बोला जाए, उसे मौन कहते हैं, “

जो घड़ा आधा भरा होता है, वह ज्यादा बजता है.

जो पूर्णता भरा होता है, वह मौन रहता है..!!

सुकून, खुशी व जीवन आपके अंदर छिपा है, दुसरो में केवल उलझने ही मिलेंगी,

इसलिए मौन होकर खुद को जानो…

बीज बिना किसी आवाज के बढ़ता है, लेकिन एक पेड़ भारी शोर के साथ गिरता है.

विनाश शोर करता है, लेकिन बढ़ने वाला मौन रहता है, यह मौन की शक्ति है !

हमेशा चुप रहना तो कोई हल नहीं है ! अपने मन की बात और सही बात कहना भी उतना ही जरूरी है ;

_ क्योंकि अगर आप हमेशा चुप रहेंगे तो गलत चीजें सिर्फ बढ़ती हैं..!

कमज़ोर परिस्थितियों में मौन रहना सीख लो और सही वक्त आने पर दुनिया को दिखा दो की तुममें कितनी गर्जना है…!!!
ह्रदय से जो दिया जा सकता है वो हाथों से नहीं, _ और जो मौन से कहा जा सकता है वो शब्दों से नहीं.
कई बार निःशब्द [ मौन ] होना शब्दों से कहीं आगे का संवाद होता है,

_ जीवन के महत्वपूर्ण पड़ावों पर शायद हम निःशब्द [ मौन ] ही संवाद करते हैं..!!

मैं अगर कभी कुछ बना पाया तो ऐसी लिपि बनाऊँगा, _ जिसमें लोगों का मौन पढ़ा जा सके.!

“मौन और चुप्पियों को पढ़ना हर किसी को नहीं आता !!”

अब चुप रहना ही सही लगता है, क्योंकि समझने वाला कोई नहीं है, और जो समझने वाले हैं, वो बातों का अलग मतलब निकाल लेते हैं ..!!
कुछ भी सुनने और समझने के लिए, _ ” मन ” का मौन रहना आवश्यक है !!
मौन होना रूठना नहीं होता _ जैसे नहीं होता _ ढ़ेर सारी बातें करने का अर्थ संवाद …
मै चुप नही हूं, मेरा “मौन” बहुत कुछ कह रहा है, तुम सुन पाने में असमर्थ हो !
मौन एक मित्र है, जिसका साथ आपको पछतावे की आग में कभी जलने नहीं देगा…
मैं केवल इतना समझ पाया हूँ, _ मौन शब्दों से ज्यादा सार्थक है.
” संवाद तो मौन में भी हो जाता है बस, दिल के तार जुड़ना जरूरी है,”
मौन का अर्थ है बाहर से भी चुप हो जाना और भीतर से भी चुप हो जाना.
मौन को सुनने वाले कान नहीं मिलते, इसलिए शब्दों से परोसता हूं.
अक्सर बढ़ती हुई समझ…..जीवन को मौन की ओर ले जाती है…
मौन की भाषा वाणी की भाषा की अपेछा अधिक बलवती होती है.
आदमी चुप रहना सीख जाए तो अधिकांश शिकायतें खत्म हो जाएं.
महान लोग प्रायः चुप रहते हैं, बुद्धिमान बोलते हैं, मूर्ख बहस करते हैं.
किसी व्यक्ति को उसकी ऊँची आवाज़ से नहीं, बल्कि उसके मौन की गहराई से जानें.
वाणी का अफसोस अनेक बार होता है मौन का कभी नहीं.
अप्रिय शब्द बोलने से मौन रहना अच्छा है.
दूसरों को चुप करने के लिए, पहले स्वयं चुप हो जाओ.
हर एक शब्दों का तोड़ है, पर मौन का कोई तोड़ नहीं
बेवजह के सवालों का सबसे बड़ा उत्तर है … ” मौन “
कुछ पल मौन रह कर आत्म- निरिछण करना चाहिए. 
कभी- कभी मौन रह जाना सबसे कटु आलोचना है.
जब आपका वक्त बुरा चल रहा हो..तो मौन हो जाने से सुंदर और कुछ नहीं..!!!
खुश रहना है तो मौन रहना सीखो, _ क्योंकि खुशियों को शोर पसंद नहीं है.
मौन सबसे कठोर तर्क है, जो आप कभी- कभी अपने शत्रु को देते हैं.
मौन रहना अच्छा है, परंतु जब अन्याय हो, तब नहीं…
“मौन” क्रोध की सर्वोत्तम चिकित्सा है…!
मूर्ख की बात का उत्तर मौन है.
जब आपके पास कहने को कुछ न हो, तब कुछ मत कहो.
दूरदर्शी व्यक्ति हमेशा मौन की शक्ति धारण कर सकता है.
बोलने लायक हो कुछ तो ही बोलो, _ नहीं तो मौन बहुत सुंदर है.
मौन रहना एक साधना है _ पर सोच समझ कर बोलना एक कला है.
मौन आपको दूसरों को ध्यान से सुनने की छमता देता है.
मौन भी कई मौकों पर संवाद का माध्यम बन जाता है.!
मौन ही बेहतर है, क्योँकि बातों से ही बातें बिगड़ती हैं !
मौन के आगे क्रोध की शक्ति असफल हो जाती है..
गहरी पीड़ा आँसू नहीं केवल मौन देकर जाती है.
कम बोलने और ज्यादा समझने में ही भलाई है.
कुछ स्थितियों में चुप रहना ही बेहतर होता है..

In some situations it’s better to remain silent..

मौन मन और शरीर दोनों को आराम देता है..
गहरे दुःख हमेशा निःशब्द और मौन होते हैं.!
मौन बात – चीत की एक महान कला है.!!
बहुत अच्छा नहीं कह सकते तो, चुप रहें.
मौन खाली नहीं है, _ यह उत्तरों से भरा है..
मन की वृत्तियों को रोकने का नाम मौन है.!
झूठे आरोपों का सर्वोत्तम उत्तर मौन है.
मौन सबसे शक्तिशाली चीख है, _

_ Silence is the most powerful scream.

एक समझदार आदमी तब बोलता है,

_ जब दूसरे अपने शब्दों का इस्तेमाल कर चुके होते हैं.

अगर आप मौन का अभ्यास शुरू करेंगे _

_ तो पाएंगे कि इसमें मानसिक विकारों को समाप्त करने की शक्ति भी मौजूद है.

मौन भी एक प्रकार का संवाद है, _

_ जो ये जान गया, उसके लिए बोलने या चुप रहने का भेद मिट जाता है.

हर किसी के सामने अपने शब्दों को फ़िज़ूल जाया मत करिए, _

_ मौन रह कर भी आप जवाब दे सकते हैं ..!!!!

चुप रहना ही सही लगता है, क्योंकि समझने वाला कोई नहीं है ;

_और जो समझने वाले हैं, वो बातों का अलग ही मतलब निकाल लेते हैं..!!

एक दिन आपको अपने बोले हुए शब्दों का अफ़सोस हो सकता है..

_______लेकिन चुप रहने का कभी नहीं ..!

हजारों खोखले शब्दों से बड़ा एक मौन होता है,

क्योंकि वह अपने साथ शांति लेकर आता है.

शब्द तो यदा- कदा चुभते ही रहते हैं,

पर किसी का मौन चुभ जाए तो संभल जाना..

सारा दिन मुँह नहीं चलाना चाहिए, बोलने पर नियंत्रण जरुरी है.

_ ज्यादा बोलने से समस्याएं बढ़ती हैं.

जहां अपने शब्दों का कोई महत्व नहीं, _

_ वहां मौन से अच्छा कोई विकल्प नहीं..

व्यक्ति जब मौन को प्राथमिकता देने लग जाता है, _

_ तब उसका एक अलग व्यक्तित्व का निर्माण होता है .!!!

जिस तरह घोंसला सोती हुई चिड़ियों को आश्रय देता है,

_ उसी तरह मौन तुम्हारी वाणी को आश्रय देता है.

कभी – कभी अच्छा लगता है कि किसी से कुछ भी बात न करें…

Sometimes it feels better not to talk at all…about anything, to anyone.

मौन का अर्थ है वाणी की पूर्ण शान्ति।

मौन का अर्थ केवल चुप रहना नहीं है। मौन एक गहरी साधना है जिसके माध्यम से मनुष्य अपने भीतर की परतों को हटाकर अपने वास्तविक स्व रूप का परिचय प्राप्त करता है। मौन अपने भीतर के सौन्दर्य और गहराई को निहारने की एक अनूठी प्रक्रिया है।
वाणी ही एक ऐसा माध्यम है जिससे मनुष्य अपने आप को संसार से योग करके रखता है। जितना ही वह संसार में लिप्त होता है उतना ही वह स्वयं से दूर हटने लगता है। ज्यों ही हम वाणी को विराम देते है, अहिस्ता -अहिस्ता अपने ही समीप पहुँचने लगते हैं और अपनी पहचान प्राप्त करते हैं।मौन में वह शक्ति है जो प्राणों की ऊर्जा के अपव्यय का समापन करती है।मनुष्य अपनी प्रचण्ड ऊर्जा को अनर्गल बोलकर शब्दों के माध्यम से ह्रास कराता है। इसी ऊर्जा को मौन धारण करके एकत्रित किया जा सकता है।
नब्बे प्रतिशत मुसीबतें संसार से कम हो जायें, यदि लोग थोडा कम बोलें। लेकिन होता यह है कि मनुष अपने भीतर बैठे हर मनोविकार को वाणी के द्वारा बाहर प्रवाहित करता है और तदनुरूप अपने परिवेश का सृजन कर लेता है।
जो विषम परिस्थिति जिह्वा उत्पन्न कर सकती है, वैसा तलवार के माध्यम से भी होना कठिन है। जिह्वा द्वारा दिया गया घाव कभी नहीं भरता।
आध्यत्मिक जीवन में जिसने भी ऊँचाइयों को छुआ है, उसने मौन का सहारा अवश्य लिया है। महावीर स्वामी ने बारह वर्ष तक मौन रखा और गौतम बुद्ध ने छ:वर्ष तक, जिसके पश्चात उनकी वाणी दिव्य हो गई।
हमारे मन में हर पल विचारों का मेला लगा रहता है। हर क्षण एक नये विचार का उदय होता है। ऐसी स्थिति में मौन का पूरा लाभ नहीं लिया जा सकता । बाहर के साथ-साथ अन्दर से मौन रहना कहीं अधिक आवश्यक है.
इसलिये संसार के कुतूहल से जब मन अत्यधिक विचलित हो जाये, तो प्रयास करना चाहिए कि लोगों के भीड से दूर प्रकृति के बीच में जाकर बैठे । हर समय प्रकृति एक नया सन्देश देती है। उसके कण कण में एक दिव्य संगीत की धुन सुनाई देती है। जितना ही हम भीतर से शान्त होते जाते है, उतना ही हम प्रकृति के हर शब्द को अपने भीतर अनुभव करते हैँ। भ्रमरों के गुंजार में हमें अनन्त की ध्वनि सुनाई देने लगती है। डालों पर बैठे पक्षियों के चहचहाने में हमें राग दीपक या भैरवी के स्वरों का आभास होता है। प्रकृति को यदि समझना है तो अपने भीतर के सुनहरे मौन को जाग्रत करना आवश्यक है।
मौन वास्तव में वह संजीवनी शक्ति है जिससे व्यक्ति के प्राणों की ऊर्जा का पुन:विकास एवं उत्थान होता है।नित्यप्रति तीन या चार घंटे का मौन रखना अत्यन्त लाभदायक है।
मौन के निरन्तर अभ्यास से वाणी पवित्र होने लगती है और उसमें सत्यता जाग्रत होती है।ऐसा व्यक्ति वाणी से जो भी बोलता है, वह सच होने लगता है। उसके व्यक्तित्व में गंभीरता आने लगती है और मन एकाग्रता की ओर वढता है।
मौन जब पूर्ण रूप से सिद्ध हो जाये तो मन का लय हो जाता है जैसे कोई विचार है ही नहीं है। क्या आपने शान्त सागर को ध्यान से देखा है ? उसमें कभी कोई लहरे नहीं उठती । वह एक रस में बहता चला जाता है। मौन में लहरों की भांति उठने वाले विचार विलीन हो जाते हैं। व्यक्ति को अहसास होता है कि जो ‘मै’ था वह केवल जड की अनुभूति थी। अब में एक चेतना का सागर हूँ। परिपूर्ण मौन शान्ति के जल में मन की आहूति है।
मौन शान्ति का सन्देश है।
यह स्वयं को रब से जुडने का सबसे सरल उपाय है। इसलिए जहाँ भी आप हों जो भी आप कार्य करतें हों, प्रयास कीजिये कि अपने व्यस्त दिनचर्या में से कुछ क्षण निकालकर संकल्पबद्ध होकर मौन में उतरकर परम शान्ति का अनुभव करें।
कब मौन रहना बहुत जरूरी होता है ?

1 😷 मौन रहे — जब तक आप के पास प्रमाण न हो.

2 😷 मौन रहें — जब आप को लगता है कि आप बिना चीखे

कुछ बात नहीं बोल सकते.

3 😷 मौन रहें — अगर आप के शब्दों से, वाणी से त्रुटि पूर्ण भावों का प्रचार प्रसार हो रहा हो.

4 😷 मौन रहें — अगर आप आक्रोश के आवेग में आ रहे हो.

5 😷 मौन रहें — जब आप को लगता है कि कोई महत्वपूर्ण दोस्ती आपके बोलने की वज़ह से टूट सकतीं हैं.

6 😷 मौन रहें — जब आप को लगता है कि किसी व्यक्ति को आपके शब्द चुभेगे.

7 😷 मौन रहें — अगर आप को लगे कि मुझे ऐसा नहीं बोलना चाहिए था.

8 😷 मौन रहें — जब आप को स्वयं के प्रति आत्म ग्लानि से भरे हुए हो.

9 😷 मौन रहें — जब श्रवण का समय हो.

10 😷 मौन रहें — तब जब आपको लगता है कि निरर्थक शब्दों के उपयोग से बचना ही उचित है.

चुप रहो

——–
चुप रहने से घुटन हो तो हो
लेकिन टूटन बच जाती है
मुरझाते रिश्ते फिर पनप जाते हैं
इसलिए चुप रहो।
मालूम है?
छुपाना जरूरी है
क्योंकि खुले घाव से बदबू फैलती है
खुला घाव सबको दिखेगा
सब जान जाएंगे
कहेंगे, कुछ करते क्यों नहीं?
घाव अंदर फैलता है तो फैलता रहे
दिखेगा तो कुछ करना होगा
हम कुछ कर नहीं सकते
इसलिए चुप रहो।
लेकिन उसने कुछ नहीं कहा
बस, चुप रह गया
क्योंकि यह उसका खुद का फैसला था
कि किसी से कुछ मत कहो
चुप रहो।
-द्वारिकाप्रसाद अग्रवाल

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