सुविचार – नवाब – बादशाह – अलमस्त – फ़क़ीर – फ़कीर – फकीर – फ़क़ीरी – फकीरी – 082

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फकीरों को कोई बर्दाश्त नहीं करता, असल में सच्चे फकीर कहीं भी बर्दाश्त नहीं किये जाते _ क्योंकि सच्चे फकीरों की सच्चाई लोगों को काटती है ;

उनकी सच्चाई से लोगों के झूठ नंगे हो जाते हैं, उनकी सच्चाई से लोगों के मुखौटे गिर जाते हैं.

किस्मत भी बादशाह उसी को बनाती है ; जो खुद कुछ करने का हुनर रखता है.
दिल अगर फ़क़ीरी पे उतर आए,,,_तो उलझ पड़ता है बादशाहों से….!!!
“मुझे भीख की खुशियां मंजूर नहीं, _ मैं जीता हूँ अपनी तकलीफों में भी नवाबों की तरह.”

_ किस्मत की गुलामी नहीं करता मैं, _ अपनी मेहनत का नवाब हूं मैं !

हम फकीरों की सूरत पर ना जाना, _ _ हम कई रूप धर लेते हैं !
अमीरी में क्या है जो फकीरी में नहीं, _ दुनिया मेरी है नहीं तो दुनिया तेरी भी नही.
हर मांगने वाले को फ़क़ीर कहते है पर इसका मतलब ये नही है के जो सिर्फ सड़को पर गली मोहल्लों में फिर कर मांगते हैं, _ वही सिर्फ फ़क़ीर कहलाते हैं,

असल में फ़क़ीर तो हम सब हैं जो कुछ न कुछ हर रोज़ खुदा से मांगते हैं, _ कभी अपनी ज़रूरतों की चीज़ें कभी अपनी ज़िंदगी की भीख, कभी अपनी खुशी की भीख,,,, तो फ़क़ीर हम सब हैं

_ बस हमारा मांगने का तरीका उन मांगने वालो से थोड़ा अलग है जो सड़को पर मांगते हैं और हम दिल मे मांगते हैं तो हम सब फ़क़ीर हैं.

जीवन को तो बेशर्त ही जिया जा सकता है, दूसरों की तो छोड़ें _ जीवन को अपनी भी शर्तों पर नहीं जिया जा सकता है.

जीवन की अपनी ही मौज है, और अपनी मौज में ही जीवन जिया जा सकता है, दूसरों की मौज में नहीं.

दूसरों की शर्तों पर सम्राट बनने से तो बेहतर है कि अपनी ही मौज में फ़क़ीर हो जायें. दूसरों की शर्तों पर सम्राट बन कर कभी आनन्द उपलब्ध नहीं हो सकता, अपनी मौज में फ़क़ीर बन भी वो आनन्द मिलता है, जो दूसरों की शर्तों पर सम्राट बनने से नहीं मिलता.

जरूरतों के मुताबिक जियो, _ ख़्वाहिश मुताबिक नहीं. _ क्यूंकि

_ जरुरत फ़क़ीर की भी पूरी हो जाती है, _ ख्वाहिश बादशाह की भी अधूरी रह जाती है.

” हम अपनी फ़क़ीरी में भी बादशाह रहे, _ यह उन लोगों को बहुत अखरा,

_ जो दौलत कमा कर भी गरीब रहे और हम, _ आज भी बादशाह हैं,”

ज़िन्दगी सब कुछ देकर भी, किसी ना किसी चीज के लिए _

_ फकीर बना कर ही रखती है..

किसी ने पूंछा … फकीर कौन होता है … !!

मैंने कहा …जिसका कोई नहीं और … जो सबका …

फ़कीरों की सोहबत में बैठा कीजिए साहब,

बादशाही का अन्दाज़ ख़ुद ब ख़ुद आ जायेगा.

दुसरो की शर्तों से सुल्तान बनने से अच्छा, _

_खुद की खुशी से फकीर बनना ज्यादा बेहतर है.

हमें मंजूर नही था तेरी शर्तों पर सुल्तान बनना, _

_ इसलिए मै अपनी सल्तनत का फकीर बन गया…

कभी फ़क़ीर, कभी शाह, कभी दिलनशीं की तरह.. _

_ जिन्दगी, हमसे रोज मिलती है अजनबी की तरह..

जिसका ये एलान है कि वो मजे में है,

_ या तो वो फ़कीर है या नशे में है..!!!

मैं खुल कर हंस रहा हूं फकीर होते हुए,

वो मुस्करा भी नहीं पाया अमीर होते हुए.

खुद से मिलना है तो दिल से फकीर बन जाओ,_

_ मिट सके ना जो वो पत्थर की लकीर बन जाओ..

मंजिल उनको मुबारक जिन्हें होड़ है कुछ पाने की, _

_ हम तो अल्हड़ फ़क़ीर हैं जो हर दम सफ़र करते हैं !!

ज़लील कर के जिस फ़क़ीर को किया तूने रुखसत… _

_ वो भीख लेनें नहीं…. तुझे दुआएँ देने आता था.. 

फ़कीराना तबियत हैं…मिले तो बाँट देते हैं,

_ हमसे तो दुआओं की जमाखोरी नहीं होती….!!

फकीरी ला देती है हुनर चुप रहने का,

अमीरी जरा सी भी हो तो शोर बहुत करती है.

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