आदमी खुद के सच की तलाश से दूर रहना चाहता है.
_ वो दिखावे के ऐसे झांसे में फंस जाता है कि पूरी ज़िंदगी झूठ में गुजार देता है.
_ ऐसे में होता क्या है ?
_ आदमी पूरी ज़िंदगी झूठ के साथ गुजार कर खुद गुजर जाता है.
_ हम जो हैं, वैसा हम दिखाना नहीं चाहते.
_ हम जो सोचते हैं, वैसा भी हम दिखाना नहीं चाहते.
_ हम जो नहीं हैं, उसे हम दुनिया के सामने रखना चाहते हैं.
_ क्या विडंबना है.
_ हम पूरी ज़िंदगी झूठ के साथ गुजार देते हैं.
_ अपने सच को कभी स्वीकार ही नहीं करना चाहते हैं.
_ हर किसी को अपने हिस्से का सच समझना चाहिए.
_ हर किसी को अपने सच को स्वीकार करना चाहिए और हर किसी को ज़िंदगी के सच को जीना आना चाहिए.
_ मुझे इस पर आपत्ति नहीं कि आदमी पूरी ज़िंदगी झूठ को जीता है.
_ मुझे आपत्ति इस बात पर है कि वो इस झूठ के चक्कर में अपनी ज़िंदगी जी नहीं पाता.
_ ज़िंदगी सत्य को जीने का नाम है.. असत्य को ढोने का नहीं.
_ हैरानी- मैं बहुत बार हैरान होता हूं, आदमी किस कदर खुद को उलझा कर सारी उम्र झूठ की बंद तिजोरी में जीता रह जाता है.
_ आइए, आज से कोशिश करें, सत्य को जीने का साहस दिखला पाने का.
_ झूठ से सत्य कहीं अधिक खूबसूरत होगा..!!
– Sanjay Sinha