_ हम अपनी नासमझी के कारण रोज – रोज मरते हैं.
_थोड़ा कम जी लेंगे _ मगर किसी का मोहताज़ न करना ..!
_ कि उनकी सोच कितनी ” छोटी ” है ..
घर चाहे कैसा भी हो
उसके एक कोने में
खुलकर हंसने की जगह रखना…
सूरज कितना भी दूर हो
उसको घर आने का रास्ता देना…
कभी कभी छत पर चढ़कर
तारे अवश्य गिनना…
हो सके तो हाथ बढा कर
चांद को छूने की कोशिश करना…
अगर हो लोगों से मिलना जुलना
तो घर के पास पड़ोस जरूर रखना…
भींगने देना बारिश में..
उछल कूद भी करने देना..
हो सके तो बच्चों को…
एक कागज़ की किश्ती चलाने देना…
घर के सामने रखना एक पेड़
उस पर बैठे पंछियों की बातें अवश्य सुनना…
घर चाहे कैसा भी हो
उसके एक कोने में
खुलकर हंसने की जगह रखना…
चाहे जिधर से गुज़रिये
मीठी सी हलचल मचा दिजिये…
उम्र का हरेक दौर मज़ेदार है
अपनी उम्र का मज़ा लीजिये…
ज़िंदा दिल रहिए जनाब
ये चेहरे पे उदासी कैसी
वक़्त तो बीत ही रहा है
” उम्र की ऐसी की तैसी “