सुविचार – आध्यात्म – 098

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आध्यात्मिक प्रगति पूरी तरह से जीवन को सरल बनाने और ज़रूरी बातों पर केन्द्रित होने के बारे में है.
जिसको ये दिख गया कि भीतर की बेचैनी का इलाज बाहर की ओर ज़ोर-आज़माइश करके नहीं होना है ;

_ उसकी आध्यात्मिक यात्रा शुरू हो गई.

” तन को रोटी और मन को शांति चाहिए “

जो तन को रोटी और मन को शांति देने के इच्छुक होते हैं, _ अध्यात्म उनके लिए है.

आध्यात्मिकता में आप ही प्रयोग हैं, आप ही प्रयोगकर्ता हैं और आप ही परिणाम हैं.
आध्यात्मिकता, अनावश्यक को खत्म करने का अनुशासन है.
अध्यात्म ….. शनै शनै __ आनंद की ओर प्रस्थान..
खरा आध्यात्मिक जीवन दूसरों को सुख बांटने में होता है, उसमें आनंद और खुलेपन का अनुभव होता है.
आध्यात्मिकता का मतलब जीवन से सन्यास लेना नहीं है; यह पूरी तरह से जीवन जीने की कला है.
जो भाव हमें अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाता है, वह भाव अध्यात्म है.
एक आध्यात्मिक प्रक्रिया में सभी स्तरों पर प्रयासों की ज़रूरत पड़ती है.
संसार दूसरे के प्रेम में पड़ने की यात्रा है, अध्यात्म अपने प्रेम में पड़ने की.
आध्यात्मिकता की राह निर्भीक और साहसी लोगों के लिए है.
आध्यात्मिक विकास के लिए परिवर्तन नितान्त आवश्यक है.
अपने रवैये में अड़ियलपन को छोड़कर लचीलापन लाएँ,

फिर देखें, आपकी आध्यात्मिक प्रगति कितनी तेज़ी से होती है.

कोई बड़ी नही _ बस _ इत्तू सी ही तो बात है,

_ जैसे हो वैसा दिखना ही तो … अध्यात्म है..

अध्यात्म मात्र जागरण की यात्रा है, कुछ पाना नहीं है, बस स्वयं को उघाड़ना मात्र है.

जैसे अंगारा राख में ढक जाता है, और अपनी चमक खो देता है, बस उसकी राख को झाड़ना है, तांकि उसका प्रकाश उपलब्ध हो जाये.

ज्ञान….

यदि आप अधिक सांसारिक ज्ञान एकत्रित करते है तो आप में अहंकार-घमण्ड भी आ सकता है

किन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना ज्यादा अर्जित करते है उतनी नम्रता -सहजता और सरलता आती है !!!

आध्यात्मिकता की खोज में जुटे व्यक्ति के लिए ज़रूरी चीजों में से एक है – समभाव.

इसका अर्थ है सभी इन्द्रियों व प्रणालियों में संतुलन.

जीवन के सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों पछ, आध्यात्मिक लछ्य तक पहुँचने में हमारी मदद करते हैं इसलिए दोनों ही जरुरी है. हम जितना ज्यादा उन्हें सहज और संतुलित कर पायेंगे, उतनी ही ज्यादा सफलता प्राप्त कर सकेंगे.
अध्यात्म तो उनके लिए है, जिन्हें कुछ ऐसा मिल गया है, जिसके उपरांत उन्हें सुखी होने की आवश्यकता नहीं महसूस होती और दुखी होने से डर नहीं लगता।

दुःख के लिए तैयार रहो। सुख की अपेक्षा मत कर लेना। सत्य ने कोई दायित्व नहीं ले रखा है तुम्हें सुख देने का,

और सुख और आनंद में कोई रिश्ता नहीं। सत्य में आनंद ज़रूर है। सुख नहीं।

जो व्यक्ति आध्यात्मिक जीवन पर चलता है, वह हमेशा प्रसन्न रहता है ; ऐसा व्यक्ति, न तो कभी किसी बात पर ‘शोक’ करता है, और न कभी किसी प्रकार की, कामना ही करता है.

” अपने अंतस में, प्रत्येक जीव के प्रति, समान व्यवहार का भाव जागृत होना …….. आध्यात्मिकता की प्रमुख पहचान है “

हमारा आध्यात्मिक प्रशिछण तभी प्रभावी कहलाता है जब उसके अभ्यास से हमारे अंदर स्वाभाविक रूप से आंतरिक शांति और हल्कापन पैदा हो.
अपने खुद के खर्चे के लिए कमाना संसार है या अध्यात्म ?

संसार में रहो या आश्रम में, आपका खाना, कपड़ा, रहना
ये सब का खर्च कौन देगा ?
क्या आप बिना खाने के, बिना कपड़े के और बिना घर के रह सकते हैं ?
क्या आप जैसा भगवान बुद्ध ने बताया, _ ऐसे भिक्षा माँग कर खा सकते हैं ?
और फिर भिक्षा में जो मिलेगा, उसके लिए भी तो किसी को ना किसी को, कमाई करनी पड़ेगी.
तो अपना खर्चा खुद कमाने में क्या समस्या है ?
आप शांति पाने चलें और आपके खर्चे के लिए कोई और कमाई करें,
ये कैसी आध्यात्मिकता ?

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